बरसात की बीमारियां: डायरिया और डेंगू से रहें सचेत

बारिश हमेशा खुशहाली का पैगाम लेकर आती है, बारिश जहाँ एक ओर हरियाली और सुंदरता लेकर आती है, दूसरी तरफ यही बारिश बीमारियों की झड़ी लगा जाती है।

Deepak AcharyaDeepak Acharya   22 Jan 2019 6:30 AM GMT

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बरसात की बीमारियां: डायरिया और डेंगू से रहें सचेत

बारिश हमेशा खुशहाली का पैगाम लेकर आती है, बारिश जहाँ एक ओर हरियाली और सुंदरता लेकर आती है, दूसरी तरफ यही बारिश बीमारियों की झड़ी लगा जाती है।

हर तरफ पानी का जमाव, दूषित पेयजल और कीट पतंगों की भरमार कई तरह की बीमारियों को खुला निमंत्रण देते दिखायी देते हैं। ऐसे में हम सब के लिए जरूरी हो जाता है कि बरसात के आनंद के साथ-साथ सेहत की देखरेख पर भी समय दें और रोगों से बचाव के लिए घरेलू उपचारों को अपनाने की कवायद करें।

बरसात की पहली फुहारें मौसम को ठंडा जरूर कर देती हैं लेकिन जैसे ही बरसात थमती है और जमीन पर खिली हुई धूप पड़ती है, मौसम में उमस आ जाती है और यही वो समय होता है जब रोगकारक सूक्ष्मजीवों और कीट- मच्छरों आदि की वृद्धि तेजी से होती है और फिर मलेरिया, डेंगू, हैजा, टायफायड, पीलिया और खाज-खुजली जैसे रोग होने की संभावनाएं भी प्रबल हो जाती है।

इन सभी रोगों के होने का मुख्य कारण यह है कि बारिश के कारण मौसम में आई नमी, गड्ढों और पोखरों में जमा हुए पानी में बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीव तेजी से पनपते हैं। ऐसे मौसम में जहाँ हवा में ही बैक्टीरिया और रोगजनित कीटाणु फैल रहे हों, कोई भी बीमार हो सकता है।

बच्चों के लिए यह मौसम बारिश की बूँदों का मजा देने के लिए आता है, साथ ही बीमारियों की चेतावनी भी लाता है। ऐसे में जरूरत है थोड़ा सचेत रहने की, खान-पान में सावधानियां बरतने की और हमारे निवास के आस-पास साफ सफाई की।

चलिए इस सप्ताह हम अपने पाठकों को दो ऐसे ही बीमारियों के बारे में बताते हैं जो आमतौर पर बरसाती मौसम में ज्यादा होती हैं और साथ ही हर्बल नुस्खों की जानकारी भी देंगे जिनकी मदद से बरसात के मौसम में होने वाली इन समस्याओं से निपटने में काफी हद तक मदद मिलेगी।

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डायरिया

बरसात में सबसे बड़ी समस्या डायरिया होती है, डायरिया होने पर लगातार दस्त होना और साथ ही उल्टियों का भी सिलसिला बना रहता है। लगातार शरीर से पानी का कम होना हमें और भी तकलीफ में डाल सकता है क्योंकि इस दौरान शरीर से पानी और नमक की मात्रा का स्तर काफी तेजी से कम होता जाता है, और कई बार तकलीफ इस कदर ज्यादा हो जाती है कि मरीज को अस्पताल का रुख करना पड़ता है।

आदिवासियों के अनुसार बरसात में खानपान में हल्का भोजन करना चाहिये और भोजन के साथ में आधा नींबू का रस और अदरख जरूर खाना चाहिये। नींबू और अदरख बरसात समय होने वाली अनेक तकलीफों का निवारण स्वत: ही कर देते है। दो चम्मच कच्ची सौंफ और 5 ग्राम अदरख एक ग्लास पानी में डालकर उसे इतना उबालें कि एक चौथाई पानी बच जाये। एक दिन में 3-4 बार लेने से पतला दस्त ठीक हो जाता है।

लगातार दस्त या डायरिया की शिकायत में कचनार की फल्लियों का चूर्ण (लगभग 3-5 ग्राम) रोगी को दिया जाए तो आराम मिलता है। पातालकोट के आदिवासी चावल को आटे की तरह बारीक पीस लेते हैं और लगभग 250 ग्राम लेकर इसे 1 लीटर पानी में उबालकर पकाते हैं और छानकर स्वादानुसार नमक मिला लेते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इसे बच्चों को 1/2 कप और वयस्कों को 1 कप प्रत्येक घंटे के अंतराल से पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं। बरसात में लगने वाले दस्तों में एक कप नारियल पानी में पिसा जीरा मिलाकर पिलाने से दस्तों में तुरंत आराम मिलता है।

सुपारी के छोटे-छोटे टुकड़े लगभग 20 ग्राम, 250 मिली पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर पी लें, ऐसा सुबह-शाम रोजाना करने से आमाशय और आंतों की कमजोरी से होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं।

पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार आंव अथवा दस्त लगातार होने की दशा में सूरनकंद को सुखाकर, चूर्ण बनाकर इसे घी में सेका जाता है और फिर रोगी को इसमें थोड़ी शक्कर ड़ालकर दिया जाता है। आदिवासियों के अनुसार यह दस्त रोकने का अचूक उपाय है।

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डेंगू

डेंगू रोगग्रस्त व्यक्ति में सामान्यत: तेज बुखार के साथ उल्टी होना, हाथ-पाँव और जोडों में दर्द और खून की जाँच के बाद रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं (WBC) की कमी होना देखा जाता है। चिकित्सक इन्ही लक्षणों को देख डेंगू का संभावित उपचार प्रारंभ कर देते हैं। यदि इस दौरान रोगी को लगातार उल्टियाँ, पेट दर्द, नाक और मल से खून आना, आलस्य और अचानक बेचैनी हो तथा रक्त परिक्षण से ब्लड प्लेट्लेट्स के आँकडों में अचानक गिरावट आना दिखाई दे तो इस रोग के होने संभावना और पुष्ठ हो जाती है।

पातालकोट मध्य प्रदेश के आदिवासी हर्बल जानकार अपने घरों के आस-पास सिताब और तुलसी जैसे पौधे के रोपण की सलाह देते हैं, इनका मानना है कि इन पौधों की गंध मात्र से मच्छर दूर भाग जाते हैं। दक्षिण गुजरात में आदिवासी सरसों के तेल में कपूर मिलाकर शरीर पर लगाते हैं, इनका कहना है कि ऐसा करने से मच्छर मनुष्य की त्वचा के नजदीक नहीं आते हैं।

इसी तरह कुछ आदिवासी हलकों में लोग पपीते की पत्तियों के रस के सेवन की सलाह देते हैं, इनके अनुसार पपीते की कच्ची हरी और ताजी पत्तियों को कुचल लिया जाए और सेवन किया जाए तो काफ़ी आराम मिलता है। पातालकोट के हर्रा का छार नामक गाँव में आदिवासी कालमेघ पौधे के काढे के सेवन की सलाह देते हैं, इनके अनुसार कालमेघ बुखार पर पूरी तरह से नियंत्रण करता है, साथ ही रोगी को पपीते के जूस पिलाने की भी बात करी जाती है।

सूखाभाँड-पातालकोट में रह रहे आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार कुटकी, गुडुची, भुई-आंवला, तुलसी और गुड का समांगी मिश्रण डेंगू से बचाव के लिए एक बढिया फ़ार्मूला है। डाँग- गुजरात के आदिवासी रोगियों के रक्त की अशुद्दि या प्लेटलेट्स की कमी होने पर विजयसार की छाल का काढा और मेथी की भाजी का रस पिलाया करते हैं, वहीं कुछ और हर्बल जानकार गुड और प्याज समान मात्रा खाने की सलाह भी देते हैं।

हालांकि इस तरह के पारंपरिक उपचारों से डेंगू रोग की समाप्ति के कोई भी क्लीनिकल प्रमाण उपलब्ध नहीं है फ़िर भी इस ज्ञान को आढ़े हाथों लेना थोडी मूर्खता होगी। जहाँ एक ओर आधुनिक विज्ञान के पास कोई सटीक इलाज नहीं हैं वहीं इन देसी नुस्खों को नकारना ठीक नहीं। आधुनिक विज्ञान से जुडे वैज्ञानिक इन प्राकृतिक उपायों पर और गहन शोध कर कुछ सकारात्मक परिणाम दुनिया के सामने ला सकते हैं ताकि आम जनों तक डेंगू के सफ़लतम उपचार के लिए कारगर दवाएं उपलब्ध हो पाएं।

रोकथाम में मिलती है मदद

हर्बल नुस्खों के जरिये जहाँ हम इन रोगों से काफी हद तक निपट सकते हैं, दूसरी तरफ आवश्यक है कि हम पहले से ही सावधानियां बरतें। कुछ ऐसी वनस्पतियां हैं जिनका सेवन इस मौसम में सीधे या परोक्ष रूप से करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है और कई तरह के रोगों की रोकथाम में मदद भी मिलती है।

नीम: नीम की पत्तियों और छाल का बाहरी उपयोग त्वचा रोगों में लाभदायक होता है। बरसात के मौसम में त्वचा संबंधी कई परेशानियों से निजात पाने के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर उस पानी से नहाएं। नीम का तेल भी त्वचा रोगों में रामबाण का काम करता है।

तुलसी: बारिश में होने वाले कई तरह के बुखारों में ये दवा का काम करती है। तुलसी के पत्तों का पाउडर इलायची के पाउडर के साथ मिलाकर लेने से बुखार में राहत मिलती है। बरसात के मौसम में श्वसन संबंधी समस्याओं में तुलसी का नियमित उपयोग फायदा करता है। सर्दी-खांसी व जुकाम में तुलसी के पत्ते डालकर बनाई गयी चाय पीने से आराम मिलता है।

करेला: बरसात के मौसम में करेले का जूस दाद, खुजली जैसे त्वचा रोगों को दूर करने में मदद करता है। बरसात में अक्सर पेट संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, ऐसे में करेला काफी लाभदायक रहता है।

हल्दी: हल्दी एक एंटीसेप्टिक का काम करती है। यह त्वचा रोगों से निजात दिलाने और घाव के लिए एंटीसेप्टिक की तरह मदद करती है। बरसात के मौसम में भी कई तरह के इंफेक्शंस से बचने में हल्दी मदद करती है।

मक्का: बरसात में मक्के का सेवन शारीरिक शक्ति को बेहतर बनाता है। मक्का में विटामिन ए, बी2, ई, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, ऑरगेनिक अम्ल, नाइसिन फैट और प्रोटीन पाया जाता है तो बरसात के मौसम में इसका भरपूर फायदा क्यों न उठाया जाए।

अदरक: अदरक भी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता और पाचन क्रिया को मजबूत बनाने में मदद करता है। बरसात में भीग जाने पर कई रोग होने की आशंका बनी रहती है, लेकिन अगर अदरक और तुलसी के पत्तों की चाय पी ली जाए तो किसी भी तरह का इंफेक्शन होने का खतरा टाला जा सकता है।

इसके अलावा खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनना चाहिए और शरीर को जितना हो सूखा व फ्रेश रखना जरूरी है तथा ये भी ध्यान रखा जाए कि बारिश में बार-बार भीगने की नौबत ना आए ताकि डायरिया से बचा जा सके और अपने घर के आस-पास पानी का ठहराव ना होने दिया जाए ताकि मच्छरों की पैदावार ना हों, थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो आप सब बरसात का भरपूर आनंद ले पाएंगे।

   

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