प्रिय कोहली, आप कभी कुंबले जैसा ‘विराट’ नहीं हो सकते

Mithilesh Dhar | Jun 24, 2017, 19:29 IST
विराट कोहली
लखनऊ। ऐसा बहुत कम ही होता है कि शानदार प्रदर्शन कर रही टीम के कोच को बदल दिया जाए। वो भी तब कोच खुद उस खेल के महान खिलाड़ियों में से एक हो। वो भी तब उसके जैसा कोई दूसरा विकल्प दूर-दूर तक मौजूद न हो। लेकिन ऐसा कोई अगर कर सकता है तो वो है बीसीसीआई। क्योंकि बीसीसीआई को ऐसा हेड कोच चाहिए जो उसकी आवाभागत के अलावा खिलाड़ियों को मनमानी करने की पूरी इजाजत दे। फिर यही बोर्ड हार का ठीकरा कोच पर मढ़ने से भी नहीं चूकता।

एक साल में पांच में से पांच टेस्ट सीरीज में जीत, 17 टेस्ट मैचों में से 12 जीत, 4 ड्रॉ और सिर्फ एक हार। कुंबले के कार्यकाल के दौरान ही टीम इंडिया ने आईसीसी रैंकिंग में नंबर-1 पायदान हासिल किया। ये आंकड़े बताते हैं कि अनिल कुंबले दिग्गज कोच क्यों हैं। ऐसे ही नहीं इन्हें बेहतरीन स्पिनर और शानदार खिलाड़ी की संज्ञा दी गई है। ये रिकॉर्ड खुद बताते हैं कि बतौर कोच कुंबले की पारी कितनी शानदार रही। लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को कुंबले का यह शानदार प्रदर्शन नहीं दिखा। दिखा तो बस अपने कप्तान के प्रति उनका अनुशासनात्मक रवैया।

प्रिय कोहली, आपके कहने पर कुंबले को कोच पद से तो हटा दिया गया लेकिन सच्चाई तो ये है कि आप जंबो जैसा विराट नहीं हो सकते। अपनी स्पिन और गुगली पर दुनियाभर के बल्लेबाजों को नचाने वाला गेंदबाज आपकी तुनकमिजाजी पर घूम नहीं आया। दरअसल ये आपकी जीत नहीं, ये एक महान खिलाड़ी की बिना खेले हार है। ये हार वैसी है जैसे 2003 के वर्ल्ड कप के क्वार्टरफाइनल में बारिश ने अफ्रीका को हरा दिया था। ये हार वैसी ही है जैसे 2007 के वर्ल्ड कप में बांग्लादेश ने भारत को हराकर बाहर कर दिया था। इन दोनों मैचौं में जीत से ज्यादा हारने वाले की चर्चा हुई थी।

प्रिय कोहली, आपको वो मैच तो याद ही होगा जब 2002 में कुंबले टूटे जबड़े के साथ वेस्टइंडडीज की टीम के खिलाफ बॉलिंग करने उतरे थे और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज ब्रायन लारा का विकेट लिया था। कुंबले मैदान पर नहीं भी उतरते तो भी उनको अगले मैच में खिलाया ही जाता। लेकिन क्योंकि कुंबले का दिल विराट था। इसलिए जंबो मैदान पर था। ऐसे में जब कोई खिलाड़ी टीम के साथ मैदान पर होता है तो साथी खिलाड़ियों का मनोबल दोगुना बढ़ जाता है।

प्रिय कोहली, आप आईपीएल में आरसीबी की कप्तानी कई बार कर चुके हैं। मैं 2017 के प्रदर्शन के बारे में तो बात ही नहीं करूंगा। इससे पहले भी आपकी टीम केवल एक बार ही फाइनल तक पहुंच पाई है। जबकि आपकी टीम में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं। लेकिन जब इसी टीम के कप्तान अनिल कुंबले थे तब टीम बहुत ही औसत थी। बावजूद इसके आरसीबी कुंबले की कप्तानी में 2009 के सीजन में फाइनल तक पहुंची, फाइनल में उसे 6 रनों से हार का सामना करना पड़ा था। अगले सीजन में कुंबले टीम को सेमीफाइनल तक ले गए। उसके बाद कुंबले ने आईपीएल से संन्यास ले लिया। तब से अब तक टीम की कमान कोहली के पास है। कोहली की कप्तानी में आरसीबी केवल एक बार ही फाइनल में पहुंच पाई है।

प्रिय कोहली, 2007 में हमारी टीम इंग्लैड के दौरे पर गई थी। तीन मैचों की श्रृंखला में भारत ने वो सीरीज 1-0 से जीती थी। पूरी सीरीज में भारत की ओर से मात्र एक शतक लगा था। वो शतक लगाने वाला कोई और नहीं बल्कि कुंबले थे। जबकि टीम में द्रविड़, सचिन, गांगुली और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी थे।

प्रिय कोहली, इंग्लैंड में आपका प्रदर्शन कैसा है ये आंकड़े बताते हैं। इंग्लैंड में इंग्लैंड के खिलाफ 5 टेस्ट मैचों में आपका औसत 13.40 का है जबकि कुंबले का एवरेज से बेहतर 18.50 का है। आपका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 39 का है जबकि कुंबले को उच्चस्कोर 114 है।

प्रिय कोहली, अनिल कुंबले टेस्ट मैच की एक पारी में पूरे 10 विकेट चटकाने का कारनामा करने वाले भारत के पहले गेंदबाज तो वहीं वर्ल्ड क्रिकेट में ऐसा ऐतिहासिक कारनामा करने वाले केवल दूसरे गेंदबाज कुंबले हैं। कुंबले ने 4 फरवरी 1999 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच की एक पारी में 10 विकेट लेकर नया इतिहास लिख दिया था। अनिल कुंबले से पहले ऐसा कारनामा इंग्लैंड के जिम लेकर ने साल 1956 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट मैच में किया था। अनिल कुंबले ने अपने टेस्ट करियर में 619 विकेट केवल 2.69 के इकोनॉमी के साथ चटकाए हैं। अपने टेस्ट करियर के दौरान कुंबले ने 8 बार एक टेस्ट मैच में 10 विकेट तो वहीं 35 दफा 5 विकेट तो वहीं 34 बार 4 विकेट चटकाए हैं। सबसे ज्यादा विकेट लेने के मामले में कुंबले भारत में नंबर एक जबकि दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं। जबकि आपको अभी बहुत लंबा सफर तय करना है।

2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मंकी प्रकरण के बाद पर्थ में सायमंड्स को आउट करने के बाद जश्न मनाते जंबो। प्रिय कोहली, आप बहुत एग्रेसिव हैं। अच्छी बात है। लेकिन एग्रेशन खेल में दिखाना चाहिए। 2008 इंडिया जब ऑस्ट्रेलिया गई थी तब मैच से ज्यादा अंपायरों के फैसले ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ियों का बर्तावा ज्यादा चर्चा में था। सिडनी टेस्ट में हार के बाद कुंबले ने प्रेस काँफ्रेंस में अंपायरों को आड़े हाथों तो लिया ही था साथ ही ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ियों के व्यवहार पर सवालिया निशान लगा दिए थे। कुंबले बस बोलने जक नहीं रहे। कुंबले की ही कप्तानी में भारत ने ऑस्ट्रेलिय के पर्थ टेस्ट में हराकर बदला लिया था। उस मैच में कुंबले ने 8 विकेट लिए थे।

प्रिय कोहली, आपकी तुलना अक्सर सचिन होती रही है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि आप बड़े मैचों के खिलाड़ी नहीं हैं। वनडे के अन्य मैचों में आपका एवरेज भले ही 54 के आसपा रहा हो लेकिन जब नॉकआउट मैचों (क्वार्टर फाइनल, सेमी फाइनल और फाइनल) की बात होती है तो आपका ऐवरेज 23 का है। वहीं सचिन का ओवरऑल ऐवरेज 45 की है जबकि नॉक मैचों में उनका एवरेज लगभग 53 का है।

सौरव गांगुली के साथ अनिल कुंबले। प्रिय कोहली, आपने कुंबले को हटवाकर अपना जंबो नुकसान किया है। पूरे घटनाक्रम में शांत रहकर कुंबले एक बार फिर विराट साबित हुए हैं, लेकिन आपकी साख को बहुत नुकसान हुआ है। ज्यादा लड़ाकू व्यवहार घर के लिए भी नुकसानदायक होता है। जिस खिलाड़ी को कुंबले से परेशानी हो सकती है तो भला वो अपने समकालीन रोहित शर्मा, अंजिक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा और अश्विन जैसे खिलाड़ियों को कैसे संभालेगा जो भविष्य में उनकी कप्तानी को अलग-अलग फॉर्मेट में चुनौती दे सकते हैं।

कुंबले से कभी तेंदुलकर, द्रविड़, श्रीनाथ, गांगुली और लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों को समस्या नहीं हुई। फिर आपके साथ ऐसा क्यों हुआ ये अपने आप में एक बड़ा रहस्य है जिस पर पर्दा शायद भविष्य में खुद आप ही हटाएं। प्रिय कोहली, आपको ये समझना होगा कि रास्ते से भटके हुए खिलाड़ी को कुंबले जैसे ही कोच की जरूरत होती है।

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