फीफा वर्ल्ड कप 2017: खिलाड़ियों में कोई दर्जी का बेटा है तो कोई बढ़ई का, किसी की मां फुटपाथ पर सामान बेचती है
Mithilesh Dhar 23 Sep 2017 1:04 PM GMT
लखनऊ। फीफा अंडर-17 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चुने गये खिलाड़ियों की कहानी किसी संघर्ष से कम नहीं है। टीम में शामिल खिलाड़ियों में कोई दर्जी का बेटा है, कोई बढ़ई का तो किसी की मां रेहड़-पटरी पर सामान बेचती है। टीम के 21 खिलाड़ियों में से ज्यादातर ने अपने अभिभावकों को संघर्ष करते देखा है, लेकिन इसके बावजूद भी वे इस खेल में देश का प्रतिनिधित्व करने के अपने सपने को पूरा करने के करीब हैं।
सिक्किम के 17 वर्षीय कोमल थाटल के पास फुटबाल खरीदने के लिये पैसे नहीं थे और वह प्लास्टिक से बनी गेंद से खेलते थे। थाटल ने बताया ''मेरे अभिभावक दर्जी है और मेरे पैतृक गांव में उनकी छोटी सी दुकान है। बचपन में मैं कपड़े या प्लास्टिक से बनीं गेंद से फुटबाल खेलता था।" थाटल के पिता अरुण कुमार और मां सुमित्रा अपनी थोड़ी सी कमाई में से उनके लिये फुटबाल किट खरीदने के लिये पैसे जमा किये।
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इसके बाद उन्होंने कहा, "अपने अभिभावकों से फुटबाल खरीदने के लिए कहना काफी मुश्किल था। लेकिन वे हमेशा मेरा साथ देते थे। मेरे फुटबाल किट के लिये वे पैसे बचाते थे। इसमें मेरे कुछ दोस्तों ने भी मदद की।" थाटल 2011 में ‘नामची खेल अकादमी’ से जुड़े और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इसके मुख्य कोच ने 2014 में उन्हें एआईएफएफ के शिविर में गोवा भेजा जहां से उन्होंने विश्व कप टीम में जगह बनाई। पिछले साल ब्रिक्स कप में उन्होंने ब्राजील के खिलाफ गोल भी किया था जिसमें टीम को 1-3 से हार मिली थी।
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संघर्ष की कुछ ऐसी ही कहानी अमरजीत सिंह कियाम की भी है जिनके अंडर-17 विश्व कप टीम का कप्तान बनाये जाने की उम्मीद है। अमरजीत के पिता मणिपुर के छोटे से शहर थाबल में खेती और बढ़ई का काम करते है. उनकी मां वहां से 25 किमी दूर इंफाल में मछली बेचती है। अमरजीत ने कहा, ''मेरे पिता किसान है और खाली समय में खेती करते हैं। मां मछली बेचती है लेकिन खेल से मेरा ध्यान ना भटके इसलिए वे मुझे कभी भी काम में हाथ बटाने के लिए नहीं कहते थे।" अमरजीत ने कहा "मेरे चंडीगढ़ फुटबाॅल अकादमी में आने के बाद माता पिता से बोझ थोड़ा कम हुआ क्योंकि वहां रहने, खाने और स्कूल का खर्च भी अकादमी ही वहन करती है।"
टीम के एक अन्य सदस्य संजीव स्टालिन की मां फुटपाथ पर कपड़े बेचती है। स्टालिन ने कहा, "मेरे पिता हर दिन मजदूरी की तलाश में यहां-वहां भटकते रहते थे इसलिए मेरी मां रेहड़ी पटरी पर कपड़े बेचती थी ताकि घर का खर्च चल सके।
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बचपन में मुझे पता नहीं चलता था की मेरे जूते कहां से आ रहे हैं लेकिन अब मुझे पता है कि मेरे अभिभावकों को इसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी।" खुमांथेम निंगथोइंगानबा की मां इंफाल में मछली बेचती है तो वहीं कोलकाता के जितेन्द्र सिंह के पिता चौकीदार है. इन सभी खिलाड़ियों में जो बात समान है वह ये है कि ये सभी देश को विश्व कप का तोहफा देना चाहते है।
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