कानपुर में बन्द होती फैक्ट्रियों से रोज़गार के अवसर पर संकट

कानपुर में बन्द होती फैक्ट्रियों से रोज़गार के अवसर पर संकटकानपुर स्थित म्योर मिल।

मंगलम् भारत, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

कानपुर । जनपद में बन्द होती औद्योगिक इकाइयों से रोज़गार के अवसर भी प्रभावित हो रहे हैं। देश के बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से कानपुर का अपना एक अलग स्थान था, लेकिन एक दशक से लगातार फैक्ट्रियों के बंद होने का सिलसिला शुरू हो चुका है। कानपुर की चमड़ा मिल और जूट मिलका व्यापार सिर्फ़ देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी होता था।

फैक्ट्रियों के बंद होने से जिले में रोजगार के अवसरों पर संकट खड़ा हो गया है। अस्सी और नब्बे के दशक में कानपुर देश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र हुआ करता था। यहां का चमड़ा उद्योग, जूट उद्योग और कपड़ा उद्योग प्रमुख था। कानपुर को पूरब का मैंचेस्टर भी कहा जाता था।

कानपुर स्थित जूट मिल।

कानपुर स्थित जेके जूट मिल को बन्द हुए सालों हो गए हैं। मालिक और मज़दूरों के आपसी झगड़े के कारण मिल बन्द हो गई। मालिकों का मज़दूरों के ऊपर 160 करोड़ रुपया भी बकाया है। कॉटन मिल के एक कर्मचारी का कहना है, “कंपनी नए कामगारों को कम आय देकर काम कराना चाहती थी। जबकि कर्मचारी अपना काम छोड़ने को तैयार नहीं थे। इस वजह से मालिकों और कामगारों के बीच झगड़ा बढ़ा। कर्मचारी चाहते हैं कि मिल को वापस से शुरू कर मज़दूरों का पैसा चुकाया जाए।”

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चुन्नीगंज स्थित म्योर मिल के पूर्व कर्मचारी जगदीश पाण्डेय बताते हैं, “1886 में शुरू हुई म्योर मिल कानपुर की बड़ी मिलों में से एक है। इस मिल मेंस्पिनिंग से लेकर कपड़ा बनाने का पूरा काम होता था। 2002 में यह मिल बन्द हुई। वीआरएस लेकर सारे कर्मी निकल गए। जिन लोगों ने वीआरएस नहीं लिया, वो 5 से 6 लोग आते रहते हैं। राष्ट्रीय टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन की प्रदेश के 11 ज़िलों में ये मिलें हैं और सभी बन्द पड़ी हैं। सप्लाई नहीं है, सारा काम ठप पड़ा है।”

जगदीश आगे बताते हैं, “कानपुर में लाल इमली स्थित मिल का कपड़ा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। मिल में ऊन और धागा, दोनों का ही काम होता था।”

चमड़ा मिल को लेकर जगदीश का कहना है, “टेब्को (TABCO) की चमड़ा मिल का भी यही हाल है। पनकी, दादानगर, जाजमऊ से लेकर पूरे उन्नाव में चमड़े की मिलें हैं, लेकिन एक दो के अलावा सब बन्द हैं। टेनरी चल रही है, लेकिन मिलें बन्द हैं।”

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तीन साल की मोदी सरकार की रिपोर्ट उठाकर देखें तो सरकार नौकरी देने के मामले में पूरी तरह से विफल रही है। सरकार का प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा विपक्ष ने जमकर भुनाया है और सरकार भी इस मुद्दे पर घिरती दिखाई दे रही है। इन कंपनियों के चलने से रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे। साथ ही नौकरियों की तलाश में होने वाले पलायन की घटनाओं में भी कमी आएगी।

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