पीएम के संसदीय क्षेत्र में मंडलीय पशु चिकित्सालय बन कर तैयार

Vinod Sharma | Sep 23, 2017, 15:32 IST
Chief Veterinary Officer
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। जिले के आराजीलाइन ब्लाक स्थित शाहंशाहपुर ग्राम सभा इन दिनों खूब चर्चा में है। कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के मद्देनजर जिला प्रशासन ने इसे खूब सजा-संवार दिया है। यही नहीं, साढ़े तीन एकड़ में मंडलीय पशु चिकित्सालय का निर्माण किया गया है। साथ ही गंगातीरी गो-संवर्धन एवं विकास केंद्र भी बनकर तैयार है। यहां पशुओं की लाइव सर्जरी के लिए ऑपरेशन थिएटर बनाया गया है।

जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर शाहंशाहपुर गांव स्थित राजकीय पशुधन एवं कृषि प्रक्षेत्र 188 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां वर्तमान में 350 पशु हैं। इसके अलावा 36 नियमित कर्मचारी व 30 से 40 अनियमित श्रमिक कार्यरत हैं। शाहंशाहपुर ग्राम सभा में मौजूदा पशुधन प्रक्षेत्र का नाम गोकुल गांव रखा गया है।

इन सबके बावजूद ग्रामीणों में कोई खुशी नहीं है। गाँव के गोपाल सिंह (उम्र 32 वर्ष) कहते हैं, “अब तक तो इस क्षेत्र से किसानों, पशुपालकों और ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं है। न ही लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी है। हां, शायद क्षेत्रीय किसानों व पशुपालकों को कुछ लाभ मिल सके।” प्रक्षेत्र के मैनेजर अशोक कुमार सिंह ने बताया, “यह गायों का संरक्षण केंद्र है, जिससे ग्रामीणों का इससे कोई सीधा सरोकार नहीं है। यहां चारा व ब्रीड तैयार कर सीधे पशुपालन विभाग को भेज दिया जाता है। मंडलीय पशु चिकित्सालय में पशुओं के हर प्रकार के इलाज का लाभ जरूर प्राप्त होगा।”

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. वीबी सिंह ने बताया, “पशुओं की लाइव सर्जरी की टीम में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के डाक्टर और स्थानीय चिकित्सक शामिल रहेंगे।”

कई मायनों में ऐतिहासिक शाहंशाहपुर

गंगा किनारे बसा यह गाँव कई मायनों में ऐतिहासिक है। इसी गाँव के नीलरतन सिंह पटेल नीलू अपना दल (एस) से विधायक हैं। प्रधानमंत्री द्वारा गाँवों को गोद लिए जाने की शुरुआत में चयनित जयापुर गाँव यहां से महज चार किलोमीटर दूर है। गंगा किनारे बसे जिले के इस अंतिम गांव में मुगल बादशाह हुमायूं ने अपने लाव-लश्कर के साथ एक रात के लिए पड़ाव डाला था। 15वीं शताब्दी में चौसा में हुए युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने जब हुमायूं का पीछा किया तो हुमायूं ने चुनार किले के नजदीक से गंगा को पार कर यहीं पनाह ली थी। जब हुमायूं को दोबारा शासन करने का मौका मिला तो उसने इस गाँव का पता लगवाया।

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