काम की ख़बर : जानिए पौधों के विकास के लिए कौन कौन से पोषक तत्व हैं जरुरी

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काम की ख़बर : जानिए पौधों के विकास के लिए कौन कौन से पोषक तत्व हैं जरुरीसमझिए पौधों की जरुरत।

पौधे भी इंसानों की तरह विकास करने के लिए पोषक तत्व का उपयोग करते हैं। पौधों को अपनी वृद्धि, प्रजनन, तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । इन पोषक तत्वों के उपलब्ध न होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधों की मृत्यु हो जाती है ।

रायबरेली जिले की खुशहाली कृषि केन्द्र के कृषि सलाहकार अनूप शंकर मिश्रा पौधों को शक्ति प्रदान करने वाले तत्वों के बारे में बता रहे हैं। वो बताते हैं, "पौधे भूमि से जल और खनिज-लवण शोषित करके वायु से कार्बन डाई-आक्साइड प्राप्त करके सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपने लिए भोजन का निर्माण करते हैं। पौधों को 17 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास और प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं, लेकिन इनमें कुछ मुख्य तत्व इस प्रकार हैं, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। इनमें से प्रथम तीन तत्व पौधे वायुमंडल से ग्रहण कर लेते हैं।"



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पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है-

  • मुख्य पोषक तत्व

नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश।

  • गौण पोषक तत्व

कैल्सियम, मैग्नीशियम व गन्धक।

  • सूक्ष्म पोषक तत्व

जिंक, मैग्नीज, बोरान।

नाइट्रोजन-

  • नाइट्रोजन से प्रोटीन बनती है, जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है। यह पर्ण हरित के निर्माण में भी भाग लेती है। नाइट्रोजन का पौधों की वृद्धि और विकास में योगदान इस तरह से है।
  • यह पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है ।
  • वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है ।
  • अनाज तथा चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है ।
  • यह दानों के बनने में मदद करता है
  • सभी जीवित ऊतकों यानि जड़, तना, पत्ति की वृद्दि और विकास में सहायक है।
  • क्लोरोफिल, प्रोटोप्लाज्मा प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों का एक महत्वपूर्ण अवयव है।
  • पत्ती वाली सब्जियों की गुणवत्ता में सुधार करता है|

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में यह साबित किया गया है कि पौधे सहचारी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हैं।

नत्रजन-कमी के लक्षण-

  • पौधों मे प्रोटीन की कमी होना व हल्के रंग का दिखाई पड़ना । निचली पत्तियाँ पड़ने लगती है, जिसे क्लोरोसिस कहते हैं।
  • पौधे की बढ़वार का रूकना, कल्ले कम बनना, फूलों का कम आना।
  • फल वाले वृक्षों का गिरना। पौधों का बौना दिखाई पड़ना। फसल का जल्दी पक जाना।

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फॉस्फोरस

  • फॉस्फोरस की उपस्थिति में कोशा विभाजन शीघ्र होता है। यह न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स वफाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
  • यह कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है।
  • फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदाहोता है तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है।
  • फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा सुद्दढ़ होती हैं । पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती हैं।

फॉस्फोरस-कमी के लक्षण-

  • पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों का रंग हल्काबैगनी या भूरा हो जाता है।फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं।
  • दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं ।
  • पौधो की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी-कभी जड़े सूख भी जाती हैं।
  • अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना, फल व बीजका निर्माण सही न होना।

पोटेशियम

  • जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
  • स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है।
  • अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलो की गुणवत्ता में वृद्धि करता है । आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है । मृदामें नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है।
  • एंजाइमों की क्रियाशीलता बढाता है।
  • ठण्डे और बादलयुक्त मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है।

पोटैशियम-कमी के लक्षण

  • पत्तियां भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं।
  • पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़तेहैं।
  • इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारोंपर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है!
  • पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।

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