माहवारी में लापरवाही से हो सकती हैं कई गंभीर बीमारियां

गाँव कनेक्शन | May 28, 2017, 18:25 IST
माहवारी
मोहम्मद आमिल, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

एटा। "किशोरियों व महिलाओं को होने वाली माहवारी पर जरा सी लापरवाही उनकी जान की दुश्मन बन सकती है, अगर माहवारी के दौरान साफ़-सफाई के प्रति सावधानी नही बरती तो उससे ल्यूकोरिया व कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से सामना हो सकता है।" ये जानकारी रविवार को विश्व माहवारी दिवस पर गाँव कनेक्शन फाउंडेशन द्वारा एटा जनपद के मारहरा कस्बा में आयोजित हुए जागरूकता कार्यक्रम में स्वास्थ्य विभाग की स्वास्थ्य निरीक्षका सुनील कुमारी ने कार्यक्रम में उपस्थित महिलाओं और किशोरियों को दी।

जागरुकता कार्यक्रम में कस्बा की लगभग 50 किशोरियां और महिलाएं मौजूद रहीं। कार्यक्रम में जानकारी देतीं हुयीं सुनील कुमारी ने बताया, "माहवारी के दौरान हमें कोई शर्म नही करनी चाहिए, जब माहवारी हो तो किशोरी अपनी माँ या बड़ी बहन को इस बारे में बताए। साथ ही माहवारी के वक़्त कपड़ा इस्तेमाल करने से बचें, सेनेटरी नेपकीन का अधिक इस्तेमाल करें।"

महिलाओं को पैड वितरित कर जागरूक भी किया गया। कार्यक्रम में आंगनवाड़ी कार्यकत्री गीता ने बताया, "जब हम किसी सफर में जाएं तो इस बात का ख़ास ख्याल रखें, अक्सर देखा जाता है कि सफ़र के दौरान जब माहवारी की समस्या होती है तो जल्दी-जल्दी में हम कपड़ा या अन्य चीज इस्तेमाल कर लेते हैं जो हमें नही करना चाहिए, सफ़र के वक़्त हमें माहवारी की समस्या से निपटने के लिए सेनेटरी नेपकीन पहले से रख लेनी चाहिए।"

कहा से लाएं हर महीने 30 रुपए

ग्रामीण क्षेत्र की अधिकतर किशोरियां आज भी माहवारी के वक़्त कपड़ों का इस्तेमाल करतीं हैं, और करें भी क्यों न नेपकीन व पैड खरीदने के लिए उनका कमजोर बजट उनके सामने खड़ा हो जाता है, जब कार्यक्रम में सेनेटरी नेपकीन का वितरण किया गया तो कार्यक्रम में मौजूद किशोरियों ने उन्हें शर्माते हुए हाथों हाथ लिया, इस दौरान कुछ किशोरियों से जब स्वास्थ्य निरीक्षका सुनील कुमारी ने माहवारी के वक़्त कपड़े के स्थान पर पैड इस्तेमाल करने की सलाह दी तो कई किशोरियां मायूस होते हुए बोली कि "हर महीने 30 रुपए कहां से लाएं?"

वहीं स्वास्थ्य विभाग की ओर से कभी कोई सेनेटरी नेपकिन किशोरियों को उपलब्ध नही कराई जातीं, इसका उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब हमने स्वास्थ्य विभाग से सेनेटरी नेपकीन लीं तो उन्होंने हमें वर्ष 2016 की अखिलेश सराकर वाली नेपकीन उपलब्ध करायीं, जिससे मालूम हुआ कि जिस योजना के तहत यह नेपकीन बंटने आयीं थीं उसमे लापरवाही बरती गई! और यह नेपकीन बच गयीं।

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