‘जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन चूल्हा नहीं जलता’

Anil ChaudharyAnil Chaudhary   22 Sep 2017 12:03 PM GMT

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‘जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन चूल्हा नहीं जलता’काम की तलाश में खड़ें मजदूर।

पीलीभीत। जिला मुख्यालय पर रोज सुबह एक मंडी लगती है, जहां सैकड़ों मजदूर अपने श्रम को बेचने के लिए इस उम्मीद से आते हैं कि आज उन्हें काम मिलेगा और वो 200 रुपए की मजदूरी करके अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा कर सकेंगे, लेकिन पूरे माह में 8-10 दिन ही ऐसे होते हैं, जिसमें उन्हें काम मिलता है।

बाकी के दिन उन्हें काम न मिल पाने के कारण मायूस होकर घर लौटना पड़ता है। यदि किसी अन्य कार्य से कोई भी राहगीर इस स्थान पर रुक जाता है तो तमाम मजदूर उसे ऐसे घेर लेते हैं कि शायद यह कोई खरीदार आया है, जो हमारे श्रम को खरीदेगा और हमारी दिनचर्या की आवश्यकता की पूर्ति संभव हो सकेगी।

गाँव कनेक्शन की टीम ने सुबह आठ बजे गैस चौराहा स्थित इस स्थान पर पहुंचकर मजदूरों से बात की। जिला मुख्यालय से 10 किमी. दूर बसे गाँव सरांय सुंदरपुर के (30 वर्ष) मजदूर सचिन कुमार ने बताया, “हर रोज काम की तलाश में यहां आता हूं, लेकिन महीने में केवल 5-7 दिन ही मजदूरी मिल पाती है, जिसमें प्रतिदिन 8-9 घंटे काम करना पड़ता है। जिसकी मजदूरी मात्र 200 रुपए मिलती है, जबकि सरकार ने न्यूनतम मजदूरी 230 रुपए निश्चित की है।

महीने में केवल 6-7 दिन काम मिलने से परिवार आर्थिक संघर्ष से गुजर रहा है। जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन घर जाने पर परिवार के सदस्य एक आस भरी दृष्टि से देखते हैं और सोचते हैं कि आज मजदूरी न मिल पाने के कारण घर का चूल्हा किस तरह जलेगा।” इसी प्रकार जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर स्थित सैदपुर गाँव के (40 वर्ष) मजदूर जगदीश प्रसाद ने बताया, “मेरे परिवार में पांच सदस्य हैं। मेरे पास जमीन बिल्कुल भी नहीं है।

मैं अपने गाँव से प्रतिदिन पैदल ही मजदूरी करने आता हूं, लेकिन पिछले नोटबंदी के समय से मकानों का बनना करीब-करीब बंद हो गया है, जहां हम मजदूर लोग मिस्त्री के साथ मजदूरी किया करते थे। पिछली उत्तर प्रदेश सरकार में मजदूरों को साइकिल बांटी थी लेकिन मेरा रजिस्ट्रेशन श्रम ऑफिस में न होने के कारण मुझे साइकिल भी नहीं मिल पाई। अब महीने में 7-8 दिन ही काम मिल पाता है।”

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क्या कहते हैं मजदूर

इसी तरह की बात पिपरिया कॉलोनी के (45 वर्ष) दीपक मिस्त्री ने बताई जो राजमिस्त्री का काम करते हैं। उन्होंने कहा, “हाईकोर्ट द्वारा खनन पर रोक लग जाने के कारण व नोटबंदी का प्रभाव अभी भी निर्माण कार्य पर जारी है। करीब-करीब निर्माण कार्य बंद ही हो चुके हैं। क्योंकि ओवर लोडिंग बंद हो जाने के कारण मोटा रेता, बजरी, सीमेंट के भाव अपने चरम सीमा पर पहुंच गए हैं।

जिसके कारण काम मिलने में परेशानी हो रही है। अब मैं पीलीभीत छोड़कर नोएडा या गुड़गांव जाकर परिवार का पालन पोषण करूंगा।” इस बारे में जब जनपद के श्रम विभाग के श्रम प्रवर्तन अधिकारी फिरोज खान से बात की गई और उनसे पूछा गया कि जनपद में कितने मजदूरों ने अपना पंजीयन आपके श्रम विभाग में कराया है और कितने ऐसे मजदूर है जो बगैर पंजीयन के काम कर रहे हैं? तो इस पर उन्होंने बताया, “करीब 65 हज़ार श्रमिकों का पंजीयन हमारे विभाग में है, लेकिन अभी जनपद में बहुत सारे श्रमिक ऐसे हैं जिन्होंने अपना पंजीयन हमारे विभाग में नहीं कराया है। सरकार की योजनाओं का लाभ केवल पंजीकृत श्रमिकों को ही मिलता है। इसलिए पंजीयन के लिए जागरुकता अभियान विभाग द्वारा चलाया जा रहा है।”

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करीब 65 हज़ार श्रमिकों का पंजीयन हमारे विभाग में है, लेकिन अभी जनपद में बहुत सारे श्रमिक ऐसे हैं जिन्होंने अपना पंजीयन हमारे विभाग में नहीं कराया है।
फिरोज खान, श्रम प्रवर्तन अधिकारी, पीलीभीत

वो आगे बताते है, “सरकार की योजनाओं का लाभ केवल पंजीकृत श्रमिकों को ही मिलता है। इसलिए पंजीयन के लिए जागरुकता अभियान विभाग द्वारा चलाया जा रहा है।”

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