स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत : लखनऊ में एक डॉक्टर के भरोसे तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   1 July 2017 11:43 PM GMT

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स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत : लखनऊ में एक डॉक्टर के भरोसे तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रसामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रदेश सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि तीन-तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ एक डॉक्टर पर निर्भर है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इंटौजा पर अल्ट्रासाउंड करवाने आए सुनील कुमार (32 वर्ष) बताते हैं, “हम यहां पर अपने पेट का अल्ट्रासाउंड करवाने आए थे, लेकिन यहां के कर्मचारी बता रहे हैं कि अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टर आज नहीं आएंगे क्योंकि उनकी ड्यूटी दूसरे स्वास्थ्य केंद्र पर है।अब हम मजबूरी में प्राइवेट अल्ट्रासाउंड करवाएंगे।”

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स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सात हजार डॉक्टर और 18 हजार पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। वहीं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2015 के अनुसार, देश में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 83 फीसदी चिकित्सा पेशेवरों और विशेषज्ञों की कमी है।

बख्शी का तालाब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉ. केडी मिश्रा बताते हैं, “मैं अकेला हूं और मुझे सामुदायिक स्वास्थ्यकेंद्र बख्शी का तालाब, इटौंजा और काकोरी में अल्ट्रासाउंड के लिए जाना पड़ता है। डॉक्टरों की कमी है इसलिए मैंने अपना काम दो-दो दिनों में बांट लिया है। इनमें मैं लगभग 300 मरीज तो देखता ही हूं।“

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इंटौजा के अधीक्षक संदीप सिंह बताते हैं, “अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टर आज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बख्शी कातालाब पर हैं। इटौंजा स्वास्थ्य केंद्र में उनकी ड्यूटी मंगलवार और शुक्रवार को होती है। अब इन दोनों दिनों के बाद जो भी मरीज आता है, उसका अल्ट्रासाउंड नहीं हो पाता है। ये समस्या है अब डॉक्टर की कमी है तो हम कुछ कर भी नहीं सकते हैं।“

इंडियास्पेंड की विश्लेषण के मुताबिक, भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में तत्काल निवेश और ध्यान देने की आवश्यकता है। देश भर के सीएचसी केंद्रों में 76 फीसदी प्रसूति और स्त्रीरोग विशेषज्ञों की कमी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में भारत का मातृ, नवजात शिशु एवं शिशु मृत्यु के मामले में खराब प्रदर्शन है।

वर्ष 2012 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित भारतीय लोक स्वास्थ्य मानकों के अनुसार एक आदर्श सीएचसी 30 बिस्तरों वाला अस्पताल है, जो चिकित्सा, प्रसूति और स्त्री रोग, सर्जरी, बाल चिकित्सा, दंत चिकित्सा, आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) में विशेषज्ञ देखभाल उपलब्ध कराता है।

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डॉक्टरों की कमी के कारण ऐसा करना पड़ता है। जल्दी ही डॉक्टरों की कमी को खत्म किया जाएगा, जिससे डॉक्टरों की ऊपर का बोझ कम होगा।
जीएस बाजपेई, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, लखनऊ

इंडियास्पेंड के विश्लेषण वर्ष 2015 रिपोर्ट के अनुसार, सीएचसी में उत्तर प्रदेश में 85.5 प्रतिशत कमी है। वहीं चिकित्सकों की 86.7 प्रतिशत कमी है। इसके अलावा बाल रोग विशेषज्ञों की 80.1 प्रतिशत और रेडियोग्राफर की 89.4 प्रतिशत कमी है। बख्शी का तालाब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर अपना अल्ट्रासाउंड करवाने आए राकेश गौतम (30 वर्ष) बताते हैं, “मंगलवार को अपनाअल्ट्रासाउंड करवाने आये थे, लेकिन यहां आकर पता चला कि हम डॉ. आज के दिन यहां बैठते ही नहीं तो मैं लौट गया था। आज अल्ट्रासाउंड केलिए आया हूं।”

      

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