एक लाख गाँवों में चल रहा जल संरक्षण अभियान 

Neetu SinghNeetu Singh   5 Jun 2017 3:50 PM GMT

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एक लाख गाँवों में चल रहा जल संरक्षण अभियान जल संरक्षण के लिए तालाब खोदतीं महिलाएं। 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। बढ़ता शहरीकरण, उद्योग धंधों का विस्तार पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। घटता जलस्तर इसी का दुष्परिणाम है। इसी समस्या को देखते हुए नाबार्ड द्वारा 45 दिनों का जल संरक्षण अभियान देश के एक लाख गाँवों में चलाया जा रहा है। नौ मई से शुरू हुआ यह अभियान 15 जून तक चलेगा। इस अभियान के तहत प्रदेश के करीब 6,000 गाँवों को चयनित किया गया है।

मास्टर ट्रेनर के साथ-साथ सैकड़ों जलदूत और हजारों ग्रामीण जल सहायक इस अभियान को गति दे रहे हैं। सोनभद्र जिला मुख्यालय से 135 किलोमीटर दूर दुद्धी ब्लॉक के महुआरिया गाँव में रहने वाले जल सहायक अनूप कुमार शर्मा (19 वर्ष) का कहना है, “पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से हमारे यहां पानी की हमेशा किल्लत रहती है, जलस्तर इतना नीचे चला जाता है कि नल के हैंडल को सौ बार चलाते हैं तब कहीं जाकर पानी निकलता है।” वो आगे बताते हैं, “जबसे ये अभियान शुरू हुआ है मैं गाँव में जल सहायक बना हूं।

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हमारी ये कोशिश है कि वर्षा का पानी बर्बाद न हो ये वापस भूगर्भ में जाए, जिससे यहां का जलस्तर अच्छा हो सके और पर्यावरण बेहतर हो सके। हमारे गाँव के 11 लोग जल सहायक बने हैं जो लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक कर रहे हैं।” अनूप की तरह हर जिले में 5500 जल सहायक तैयार किये गए हैं जो अपने-अपने गाँव में पानी की किल्लत से बचने के लिए ग्रामीणों को न सिर्फ जागरूक कर रहे हैं बल्कि श्रमदान भी कर रहे हैं।

प्रदेश के जिन जिलों में पानी की सबसे ज्यादा किल्लत है, वो जिले ललितपुर, झांसी, जालौन, हमीरपुर, मिर्जापुर, कौशाम्बी, बांदा, महोबा, सोनभद्र, चित्रकूट, बहराइच और बस्ती हैं। इन 12 जिलों का चयन करके हर जिले से एक मास्टर ट्रेनर तैयार किया गया है जो हर जिले में 40 जलदूत और 5500 जल सहायक तैयार करेंगे। ये अभियान नौ मई को झांसी में शुरू किया गया है, जो प्रदेश के 6000 गाँव में 15 जून तक चलाया जाएगा।

भारत सरकार की नाबार्ड योजना के सहायक महाप्रबंधक नवीन कुमार राय का कहना हैं, “इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है कि लोग पानी की किल्लत से जूझने के लिए खुद जागरूक हों, कम पानी में कृषि शुरू करें, श्रमदान करें। बरसात के पानी को संरक्षित करें और अपने आसपास पौधे लगाएं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहे।” वो आगे बताते हैं, “इस अभियान के बाद ग्रामीण श्रमदान के लिए मोटिवेट हो रहे हैं। सैकड़ों ग्रामीणों ने खुद पानी संरक्षण के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया है, ये इस अभियान की बड़ी सफलता है। हमारी ये भी कोशिश है कि जो तालाब सूखे पड़े हैं उन्हें सरकार की किसी भी योजना के अंतर्गत ठीक कराया जाए।”

इस अभियान के सोनभद्र जिले के मास्टर ट्रेनर चंदन शुक्ला का कहना है, “हर गाँव में एक दिन का पूरा कैम्प करते हैं। लोगों को पहले से सूचना दे देते हैं। उसी गाँव के अलग-अलग समुदाय से 11 जलदूत चुनते हैं जो गाँव में रैली निकालने और लोगों को एकत्रित करने में मदद करते हैं। महिलाओं के साथ चर्चा पर खास जोर देते हैं क्योंकि पानी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा वही करती हैं।”

प्रतीकात्मक: तस्वीर

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सोनभद्र के नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक रईश अहमद का कहना है, “हर गाँव का एक रिसोर्स मैप बनाते हैं, जिसमें वर्तमान में पानी के क्या संसाधन हैं, पहले क्या थे और नये क्या हो सकते हैं इस पर ग्राम प्रधान सहित पूरे गाँव के लोगों के साथ बैठकर जल संवाद करते हैं, इस दौरान जो समस्याएं निकल कर आती हैं उसे श्रमदान और सरकार की किसी योजना के तहत कैसे मदद हो उस समस्या के समाधान की कोशिश की जाती है।”

इस अभियान के तहत किसानों को कम पानी में खेती करने की सीख भी दी जा रही है। तालाब में बरसात के पानी का संरक्षण और मेड़बन्दी से खेतों के पानी को रोकना भी इस मुहिम का हिस्सा है। बहराइच जिले में नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक एमपी वर्नवाल बताते हैं, “किसान फसल की सिंचाई के दौरान पानी बर्बाद न करें इस पर खास जोर दिया जा रहा है। मेड़बंदी, सोख्ता गड्ढा, श्रमदान ग्रामीण खुद करें ये इस अभियान का मुख्य उद्देश्य है।”

सोनभद्र के प्रत्यूष त्रिपाठी (25 वर्ष) गाँव के कृषि जलदूत हैं उनका कहना है, “प्राकृतिक रिसोर्स खत्म न हों इससे घट रहे जलस्तर में सुधार होगा, अगर पानी रहेगा तो आसपास हरियाली और पेड़-पौधे रहेंगे इससे पर्यावरण बेहतर होगा।”

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