By Neetu Singh
By गाँव कनेक्शन
एक तरफ जहां पूरा भारत कोरोना संकट, टिड्डी हमले और कुछ अन्य क्षेत्रों में आई बाढ़ झेल रहा है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के किसान सेब में लग रहे फंगल बीमारी से परेशान हैं।
एक तरफ जहां पूरा भारत कोरोना संकट, टिड्डी हमले और कुछ अन्य क्षेत्रों में आई बाढ़ झेल रहा है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के किसान सेब में लग रहे फंगल बीमारी से परेशान हैं।
By Arvind Shukla
साहूकार, बेईमान बनिया और सेठों के बीच पिसते किसानों की जिंदगी पर बनी मदर इंडिया फिल्म को आए दशकों हो गए। इन सालों में दुनिया बदल गईं, आदमी चांद पर पहुंच गया, कई सरकारें आईं, चली गईं लेकिन सुक्खी लाला कहीं नहीं गए। वो चेहरा और नाम बदलकर आज भी किसानों का खून चूस रहे हैं, ज़मीनें हड़प रहे हैं। बुंदेलखंड की ये कहानी कुछ वैसी ही है।
साहूकार, बेईमान बनिया और सेठों के बीच पिसते किसानों की जिंदगी पर बनी मदर इंडिया फिल्म को आए दशकों हो गए। इन सालों में दुनिया बदल गईं, आदमी चांद पर पहुंच गया, कई सरकारें आईं, चली गईं लेकिन सुक्खी लाला कहीं नहीं गए। वो चेहरा और नाम बदलकर आज भी किसानों का खून चूस रहे हैं, ज़मीनें हड़प रहे हैं। बुंदेलखंड की ये कहानी कुछ वैसी ही है।
By Nidhi Jamwal
दक्षिण बिहार में आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आ गया है, वो अब अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं, क्योंकि उनके शहद का व्यवसाय अच्छे से चल रहा है। पिछले साल, महामारी के बीच, उन्होंने बांका मधु किसान उत्पादक संगठन का गठन किया और मुंबई तक सात टन शहद की आपूर्ति की।
दक्षिण बिहार में आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आ गया है, वो अब अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं, क्योंकि उनके शहद का व्यवसाय अच्छे से चल रहा है। पिछले साल, महामारी के बीच, उन्होंने बांका मधु किसान उत्पादक संगठन का गठन किया और मुंबई तक सात टन शहद की आपूर्ति की।
By Nidhi Jamwal
हथकरघों की कानों में घुलने वाली वो आवाजें, जो सुंदर तसर सिल्क के बनने का अहसास कराती थीं, अब और नहीं सुनी जा सकेंगी। बांका के पारंपरिक बुनकरों का भविष्य एक पतले से धागे पर लटका हुआ नजर आ रहा है। पहले पावरलूम, और अब महामारी ने इनकी स्थिति भयावह बना दी है। आज यह कला लुप्त होने के कागार पर है।
हथकरघों की कानों में घुलने वाली वो आवाजें, जो सुंदर तसर सिल्क के बनने का अहसास कराती थीं, अब और नहीं सुनी जा सकेंगी। बांका के पारंपरिक बुनकरों का भविष्य एक पतले से धागे पर लटका हुआ नजर आ रहा है। पहले पावरलूम, और अब महामारी ने इनकी स्थिति भयावह बना दी है। आज यह कला लुप्त होने के कागार पर है।