गन्ने की उपज और मिठास बढ़ाने के लिए ऐसे करें खरपतवार नियंत्रण

गन्ने का ज्याद उत्पादन पाने के लिए किसान समय से गन्ने की बोआई, सिंचाई, खरपतवार पर नियंत्रण, कीट नाशक पर ध्यान दें तो काफी फायदा होगा

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गन्ने की उपज और मिठास बढ़ाने के लिए ऐसे करें खरपतवार नियंत्रण

लखनऊ। दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय (गरम और नमी से भरे) क्षेत्रों में जन्मा गन्ना चीनी का मुख्य स्त्रोत बन चुका है। वैसे तो दुनिया में गन्ने का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश ब्राज़ील है, पर गन्ना हमारे देश का एक प्रमुख नकदी फसल है। इससे चीनी, गुड़, शराब, स्पिरिट आदि का निर्माण होता हैं। हमारे देश में हर अवसर पर "कुछ मीठा हो जाए" की परम्परा है जो चीनी, गुड या इनसे बने उत्पादों के बिना अधूरा है। चीनी का प्रयोग दुनिया में सबसे अधिक भारत में है, परंतु यदि प्रति व्यक्ति उपयोग को ध्यान में रखा जाए तो प्रथम स्थान अमेरिका का है।

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गन्ने की फ़सल में कुछ ऐसे खरपतवार होते हैं जो बहुत तेज़ी के साथ बढ़ते हैं और साधारण सस्य क्रियायों से घटने का नाम नहीं लेते। उदाहरण के तौर पर दूब, मोथा, गाजर घास और स्ट्राइगा। ये खर पतवार गन्ने के विकास में बाधा बनते हैं और उसकी गुण और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। गन्ने की बुवाई के साथ ही, प्रारंभिक 90-100 दिनों की अवधि में मिट्टी और सूरज की रोशनी आदि फ़सल द्वारा कम उपयोग होती हैं और यही वह समय होता है जब खरपतवार इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए शानदार ढंग से बढ़ते हैं और गंभीर क्षति का कारण बनते हैं। ये खर पतवार प्रारंभिक हफ़्तों में ही, गन्ने के खेतों में डाली जाने वाली नाइट्रोजन एवं फ़ोस्फोरस का चार गुना और पोटाश का ढाई गुना ह्रास करते हैं जो गन्ने के समुचित बढ़त के लिए अत्यंत आवश्यक है। गन्ने के खेतों में यदि घास की समस्या हो तो पानी की खपत भी बढ़ जाती है और इसके पीछे भी घास के पानी को सोख लेने की उत्तम क्षमता है। इसके अलावा ये गन्ने के कटाई के समय बाधक होते हैं और गन्ने के कई रोगों के लिए वैकल्पिक पोषक होते हैं।

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गन्ना में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण/प्रबंधन का तरीका

बुवाई से पूर्व गहरी जुतायी और साथ ही बचे हुए घासों को हाथों से निकालना एक पुरानी पर प्रभावी विधि है और आज भी यह काफ़ी लोकप्रिय है। दो बार जुतायी मिट्टी में गहरे घास के बीजों को दबा कर उन्हें उगने में निष्क्रिय बनाता है। पारम्परिक तरीक़ों जैसेफसल का चक्रिकरण, प्रतियोगी फ़सलों को उगाना, या फ़सल के बीच ट्रैप फ़सल ( जो खरपतवार के बीज अंकुरण को प्रेरित करती है, परंतु उन्हें फैलने से रोकते हैं) से भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। फसल चक्रिकरण प्रथा खरपतवार के विनाश में मदद करती हैं। जैसे की धान के बाद गन्ना उगाना हमेशा फ़ायदेमंद रहता है क्योंकि गीली मिट्टी खरपतवार को बढ़ने से रोकने में बाधक होती है।

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उपरोक्त उपायों के बावजूद, ये देखा गया है कि गन्ने के खेत में खर पतवार नियंत्रित नहीं हो पाते, इन्हीं कारणों ने केमिकल उपायों की आवश्यकता की ओर ज़ोर दिलाया। उपरोक्त तरीके प्रारम्भिक तौर पर खरपतवार को नियंत्रित कर सकते हैं, पर समय समय पर अगर चूक हुयी तो खरपतवार एक समस्या के तौर पर उग आते हैं और गन्ने के साथ पोषक तत्वों एवं जल के लिए उपलब्धिता के लिए प्रतियोगी हो जाते है। खर पतवार के उगने से पहले 2किलो/ हेक्टेयर सिमाजिन का उपयोग मोनोकॉट (एकबीजपत्री) और डाईकॉट (द्वीबीजपत्री) खरपतवार पर कामगर पाया गया है।

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मेट्रीबजीन, डाईयूरोन , मेटोजोरोन , 2, 4-D सोडीयम सॉल्ट , दालपोन , पैराक्वेट, आइसोप्रोटरोन , आइसोयूरोन और ग्लाईफ़ोसेट खरपतवार नाशी दवाएँ भी गन्ना के खेत में प्रभावी होती है। देश व्यापी प्रयोगों ने यह सुझाया है कि गन्ना की एकल फसल के लिए एट्राज़िन की 2.0 से 5.0 किलों/हेक्टेयर तक की मात्रा सबसे प्रभावी खरपतवार नाशी है। खरपतवारों के उगने से पहले ही इन दवाओं के प्रयोग से इनका प्रारंभिक नियंत्रणकिया जा सकता है। दवाओं का छिड़काव प्रारम्भ में गन्ना रोपण केतीसरे या चौथे दिन से और बाद में25 से 30 दिनों पर करने से खरपतवार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। इन दवाओं की मात्रा मिट्टी के प्रकार के साथ बदलती है। साधारणत: भारी मिट्टी को हल्की मिट्टी की तुलना में अधिक खुराक की आवश्यकता होती है। खरपतवारों के उभरने के बाद नियंत्रण के लिए आमतौर पर उनके पत्तों पर दवाओं का घोल बना कर स्प्रे किया जा सकता है।

रिपोर्ट डॉ. प्रीति उपाध्याय

(दिल्ली विश्वविद्यालय में कृषि आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधानरत हैं)

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