यूपी के एक थाने में लगती है दो थानेदारों की कुर्सियां

Abhishek Pandey | Dec 15, 2017, 12:28 IST
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में एक ऐसा भी थाना है, जहां थाने का कोतवाल अपनी कुर्सी पर ना बैठकर बगल में ही दूसरी कुर्सी लगवाकर बैठता है। इसके पीछे वाराणसी निवासियों को आस्था बताई जाती है। इसके पीछे सदियों से चली आ रही धार्मिक आस्था मानी जाती है, जिसका पालन पूरी शिद्दत से वाराणसी पुलिस और आम जनता निभाती है।

दरअसल ये थाना है वाराणसी कोतवाली का, जहां का पहला कोतवाल बाबा कालभैरव को कहा जाता हैं। यही नहीं आज तक इस थाने का निरीक्षण किसी डीएम या एसएसपी ने नहीं किया है, क्योंकि वो तो खुद ही अपने ज्वाइनिंग से पहले यहां आशीर्वाद लेने आते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि, जिसके ऊपर से बाबा का आर्शिवाद हट गया वह नगरी में लंबे समय कार्य नहीं कर पाता है।

वाराणसी विशेश्वरगंज इलाके में शहर का कोतवाली थाना है और इसी थाने के ठीक पीछे बाबा कालभैरव का मंदिर है। वर्तमान प्रभारी संजीव मिश्रा ने बताया कि ये परंपरा आज की नहीं है। ये परंपरा सालों से चली आ रही है, कोतवाली थाने के इस इंस्पेक्टर के ऑफिस में दो कुर्सियां लगाई गई हैं। जिसमे जो मेन चेयर है उसपर बाबा काल भैरव विराजमान होते हैं और इस थाने का इंस्पेक्टर बगल की कुर्सी पर बैठता है। यही नहीं संजीव मिश्रा ने कहा की, इस थाना क्षेत्र में अपराध से लेकर सामाजिक कार्यों और फरियादियों की फरियाद का निस्तारण बाबा करते हैं। इसीलिए इन्हें विश्वनाथ की नगरी का कोतवाल भी कहा जाता है।

जिस भी अधिकारी की तैनाती शहर में होती है या इस थाने में जिस भी पुलिस वाले की तैनाती होती है वो बाबा काल भैरव की पूजा करने के बाद ही अपना कामकाज शुरू करता है। थाने पर तैनात सिपाही सूर्य नाथ चंदेल ने बताया कि, मैं 18 साल से खुद इस थाने में तैनात हूं। मैंने अभी तक किसी भी थानेदार को अपनी कुर्सी पर बैठते नहीं देखा। बगल में चेयर लगाकर ही प्रभारी निरीक्षक बैठते हैं। हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की, ये कोई नहीं जानता। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के समय से ही ये परंपरा चली आ रही है।

साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर को बनवाया था। वास्तुशास्त्र के मुताबिक बना ये मंदिर आज तक वैसा ही है। बाबा काल भैरव मंदिर में रोजाना दर्शन करने जाने वाली पूजा श्रीवास्तव बताती हैं कि, यहां हमेशा से एक खास परंपरा रही है। काल भैरव मंदिर में रोजाना 4 बार आरती होती है। रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मगर उस दौरान पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है। वहीं एडीजी जोन वाराणसी के स्टाफ अफसर राजेश श्रीवास्तव बताते हैं कि, मेरी पोस्टिंग जैसे ही वाराणसी हुई तो सबसे पहले बाबा काल भैरव के मंदिर जाकर दर्शन किया, उसके बाद ही अपना कार्यभार संभाला।

काल भैरव बाबा की विशेषता

बटुक भैरव मंदिर महंत विजय पुरी ने बताया कि ब्रह्मा ने पंचमुखी के एक मुख से शिव निंदा की थी। इससे नाराज काल भैरव ने ब्रह्मा का मुख ही अपने नाखून से काट दिया था। काल भैरव के नाखून में ब्रह्मा का मुख अंश चिपका रह गया, जो हट नहीं रही था। भैरव ने परेशान होकर सारे लोकों की यात्रा कर ली, लेकिन ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिल सकी। तब भगवान विष्णु ने कालभैरव को काशी भेजा। काशी पहुंचकर उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली और उसके बाद वे यहीं स्थापित हो गए, तब से देशवासियों की आस्था इस मंदिर से जुड़ पड़ी।



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