धरती बचाने के लिए छोड़ दी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी

गोंडा का एक युवा अपने कुछ दोस्तों की मदद से स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर जाकर लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा है। पर्यावरण संरक्षण और बेजुबान जावनरों के लिए इस युवा ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ दी

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   4 Sep 2018 7:38 AM GMT

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धरती बचाने के लिए छोड़ दी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी

गोंडा। " पर्यावरण असंतुलन की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वॉर्मिंग है, जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। ऐसे में अगर हमने पर्यावरण को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।" ये कहना है जनपद निवासी एक युवा का, जिसने पर्यावरण संरक्षण और बेजुबान जावनरों के लिए मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ दी।

सिविल लाइंस निवासी अभिषेक दुबे (25वर्ष) लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। अभिषेक ने बताया, " स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही मैं पौधे लगाने लगा था। पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों में लगातार हिस्सा लेता था। लखनऊ में पालीटेक्निक डिप्लोमा में प्रवेश लेने के बाद मैं पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, जानवर आदि विषयों पर अपने मित्रों से काम करने लगा। वर्ष 2010 में मित्रों के साथ मिलकर "नेचर क्लब" नाम की संस्था बनाई जो लोगों को पर्यावरण बचाने का संदेश दे रही है।"

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लोग जुड़ते गएं और कारवां बनता गया

अभिषेक ने बताया, " गर्मियों की छुट्टियों में गोंडा अपने घर आकर अपने मित्रों से गोंडा में भी नेचर क्लब का संगठन खड़ा करने की बात कही। एक-एक करके मेरे मित्र जुड़ते गए। फिर हम लोग घर-घर जाकर अन्य लोगों को भी इस मुहीम से जुड़ने के लिए प्रेरित करने लगे। हम सप्ताह एक बैठक और गोष्ठी का आयोजन करने लगे। इसके बाद हम लोग रैलियां, पर्यावरण प्रतियोगिताएं, स्कूलों-कालेजों में जागरूकता कार्यक्रम, पौधारोपण, प्रकृति भ्रमण, दीवाली में पटाखे के बाजार में खड़े होकर पटाखे न जलाने का अनुरोध किया। लोगों को जानवरों के प्रति दया भावना रखने और घायल जानवरों के उपचार के लिए भी हम लोगों को प्रेरित करते हैं। हम लोग अब तक करीब एक हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। लोगों को हम लोग उपहार में पौधे भी देते हैं।"


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स्कूलों में जाकर बच्चों को करते हैं जागरूक

डिप्लोमा के बाद अभिषेक ने बीटेक किया। इसके बाद लखनऊ में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगे। लेकिन अभिषेक का मन नौकरी में नहीं लगता था। अभिषेक ने बताया, " मैं नौकरी के लिए बना ही नहीं हूं। पारिवारिक कारणों के कारण मुझे नौकरी करनी पड़ी। आफिस में बस मेरा शरीर रहता था, मेरा मन जंगलों और पशु पक्षियों के साथ टहलता था। वर्ष 2017 में मैंने अपना इंजीनियरिंग की नौकररी छोड़ दी। अब मैं 24 घंटे पर्यावरण व जानवरों के लिए कार्य करता हूं। मेरा प्रयास रहता है कि रोज एक स्कूल में जाकर बच्चों को जागरूक करूं, क्योंकि बच्चों को प्रेरित करना आसान होता है। बच्चे हमारी बातों को बड़े ध्यान से सुनते हैं और उस पर अमल भी करते हैं।"

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कास्मेटिक उत्पादों का नहीं करते इस्तेमाल

अभिषेक के साथ काम करने वाले युवा सुधीर श्रीवास्तव (25वर्ष) ने बताया," हम लोग गोंडा, लखनऊ, अयोध्या, बलरामपुर आदि जिलों में जाकर स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर पर्यावरण, जैव विविधता, वीगन जीवनशैली के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। हम लोग गोंडा में एक प्रकृति आश्रम भी बनाना चाहते हैं जहां घायल जानवरों का इलाज और उनकी सेवा कर सकें। पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी साथी अपने जेब खर्च से कुछ पैसे बचाते हैं। उन्हीं पैसों से हम पंफलेट और बैनर पोस्टर छपवाते हैं। हम लोग जानवरों पर परिक्षण किए गए कास्मेटिक उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करते हैं।"


उत्तर प्रदेश की पहली वीगन शादी

मई 2018 में अभिषेक की शादी हुई। इस आयोजन में वीगन व पर्यावरण संरक्षण अभियान को आगे बढाने का निश्चय किया गया। अभिषेक ने बताया, " मेरी शादी उत्तर प्रदेश की पहली वीगन व प्लास्टिक मुक्त शादी थी। भोजन में किसी भी तरह के पशु उत्पादों दूध, पनीर, दही और पर्यावरण के लिए हानिकारक पालिथीन, डिस्पोजल आदि का उपयोग नहीं किया गया। मेहमानों को सोयाबीन के दूध से बने पनीर(टोफू), सोयाबीन के दूध की दही आदि पौधों से आधारित व्यंजनों को परोसा गया।" वीगन वे लोग होते हैं जो पशुओं के लिए जाने वाले किसी भी उत्पाद जैसे मांस, मछली, अंडा, दूध, चमड़ा, शहद, ऊन, रेशम व जानवरों पर परिक्षण किए गए कास्मेटिक उत्पादों को इस्तेमाल नहीं करते हैं।

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