जब दादी ने कूल गाने से शुरू की पढ़ाई।
हमका क ख ग घ ङ प्युं सिखाये देत्यु ना तनी सिखाये देत्यु ना, कैसे डारब हम ओटऊ, कैसे बूझब सबसे बतिया, तनी समझाई देत्यु ना। हमका क ख ग घ ङ प्युं सिखाये देत्यु ना, तनी सिखाये देत्यु ना। कैसे बूझब सबसे बतिया, कैसे समझब सबकी बतिया, तनी समझाई देत्यु ना। यह गीत उन दिनों की याद दिलाता है जब महिलाएं शिक्षा और साक्षरता से दूर थीं लेकिन सीखने की इच्छा रखती थीं। यह एक अद्भुत लोकगीत है जो एक ऐसी स्त्री की यात्रा को दर्शाता है जो पढ़ना-लिखना चाहती है और अपने जीवन को समझना चाहती है। इस गीत में स्वर देने वाली नीरमला मिश्रा, नीलेश मिश्रा की माता हैं, जिनकी आवाज़ इस गीत को एक अनूठा और गहरा रंग देती है। नीलेश मिश्रा ने कहानी कहने की शैली, ग्रामीण जीवन के अनुभवों, समाज की भावनाओं और बदलाव की सोच को अपनी कृतियों में स्थान दिया है। उनकी रचनाएं रेडियो, विविध प्रसारण माध्यमों और अनेक मंचों पर सुनी जाती हैं और वे लोगों को सरल, धीमी और अर्थपूर्ण जीवनशैली की ओर लौटने का संदेश देते हैं। उन्होंने एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की है जो जिंदगी की छोटी और खूबसूरत खुशियों की ओर लौटने का प्रयास है। उनका उद्देश्य लोगों को सरल जीवन, धीमे अनुभवों और सच्चे आनंद से जोड़ना है, जिससे वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और भागदौड़ भरी जिंदगी में खोई हुई संवेदनाएं पुनः प्राप्त कर सकें। नीलेश मिश्रा की कोशिश है कि लोग फिर से उन अनुभवों, स्वादों और एहसासों से जुड़ें जिन्हें तेज़ रफ्तार की दुनिया में पीछे छोड़ दिया गया है।