जन्मदिन विशेष: हंसी के पर्याय थे काका हाथरसी , पढ़िए एक कविता

गाँव कनेक्शन | Sep 18, 2017, 16:09 IST
birthday
लखनऊ। हंसी का पर्याय माने जाने वाले काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को उनका जन्म हुआ था और 18 सितंबर को 1995 को निधन। जब काका 15 साल के थे तब उनके पिता का प्लेग बीमारी से देहांत हो गया और उनकी मां उन्हें लेकर मायके इगलास चली गईं।

काका ने अपनी पढ़ाई इगलास में पूरी की और यहीं उनकी पहली नौकरी लगी जहां उन्हें अनाज की बोरियों व उनके वजन का हिसाब रखना होता था। काका को पहली नौकरी में हर महीने छह रुपये का वेतन मिलता था। उनकी पहली पुस्तक 'काका की कचहरी' 1946 में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में काका की रचनाओं के अतिरिक्त कई अन्य हास्य कवियों की रचनाओं को भी संकिलत किया गया था। काका को अपनी दाढ़ी से बहुत प्यार था, उन्होंने इस पर एक कविता भी लिखी थी ...

काका' दाढ़ी साखिए, बिन दाढ़ी मुख सून।

ज्यों मसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून।

व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा।

दाढ़ी से ही प्रगति, कर गए संत विनोबा।।

मुन वशिष्ठ यदि दाढ़ी, मुँह पर नहीं रखाते।

तो क्या भगवान राम के गुरु बन जाते?

1985 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 'पद्मश्री' की उपाधि से नवाजा। काका ने फ़िल्म 'जमुना किनारे' में अभिनय भी किया था। काका हाथरसी के नाम पर ही कवियों के लिये 'काका हाथरसी पुरस्कार' और संगीत के क्षेत्र में 'काका हाथरसी संगीत' सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी की लिखी कुछ अन्य रचनांए...

पुलिस-महिमा...

पड़ा - पड़ा क्या कर रहा, रे मूरख नादान

दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान

निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले

झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले

कहँ ' काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती

चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती

कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान

मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान

डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं

इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं

कहँ ' काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी

ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी

शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास

गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास

नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ

बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ

' काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के

' रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के

मुर्ग़ी और नेता...

नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल

हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल

मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती

मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती

नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे

मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे

जम और जमाई

बड़ा भयंकर जीव है , इस जग में दामाद

सास - ससुर को चूस कर, कर देता बरबाद

कर देता बरबाद , आप कुछ पियो न खाओ

मेहनत करो , कमाओ , इसको देते जाओ

कहॅं ' काका ' कविराय , सासरे पहुँची लाली

भेजो प्रति त्यौहार , मिठाई भर- भर थाली

लल्ला हो इनके यहाँ , देना पड़े दहेज

लल्ली हो अपने यहाँ , तब भी कुछ तो भेज

तब भी कुछ तो भेज , हमारे चाचा मरते

रोने की एक्टिंग दिखा , कुछ लेकर टरते

' काका ' स्वर्ग प्रयाण करे , बिटिया की सासू

चलो दक्षिणा देउ और टपकाओ आँसू

जीवन भर देते रहो , भरे न इनका पेट

जब मिल जायें कुँवर जी , तभी करो कुछ भेंट

तभी करो कुछ भेंट , जँवाई घर हो शादी

भेजो लड्डू , कपड़े, बर्तन, सोना - चाँदी

कहॅं ' काका ', हो अपने यहाँ विवाह किसी का

तब भी इनको देउ , करो मस्तक पर टीका

कितना भी दे दीजिये , तृप्त न हो यह शख़्श

तो फिर यह दामाद है अथवा लैटर बक्स ?

अथवा लैटर बक्स , मुसीबत गले लगा ली

नित्य डालते रहो , किंतु ख़ाली का ख़ाली

कहँ ' काका ' कवि , ससुर नर्क में सीधा जाता

मृत्यु - समय यदि दर्शन दे जाये जमाता

और अंत में तथ्य यह कैसे जायें भूल

आया हिंदू कोड बिल , इनको ही अनुकूल

इनको ही अनुकूल , मार कानूनी घिस्सा

छीन पिता की संपत्ति से , पुत्री का हिस्सा

' काका ' एक समान लगें , जम और जमाई

फिर भी इनसे बचने की कुछ युक्ति न पाई

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

संबंधित खबरें-

Tags:
  • birthday
  • Samachar
  • Special story
  • hindi samachar
  • kaka hathrasi

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.