'पचास प्रतिशत लाभांश के साथ मिले फसल का मूल्य'

Update: 2015-12-30 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

लखनऊ। ''भारत सरकार ने 2004 में जो कृषि आयोग बनाया था, उसमें लिखा था कि जो भी किसान की लागत आती है, उसमें 50 प्रतिशत लाभांश जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाना चाहिए जबकि समर्थन मूल्य भारत सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रदेश सरकार के कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान के सलाहकार रमेश यादव ने प्रदेश के किसानों के हित में बात करते हुये ये कहा।

कृषि अनुसन्धान परिषद में आयोजित बैठक में उन्होंने आगे बताया, ''समर्थन मूल्य 2007 में अपनाया गया था लेकिन किसान का दुर्भाग्य ये है कि आज तक उसका पालन नहीं किया गया। 21 अगस्त को मैंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा और लिखा कि जो समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाए, उसमें 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर निर्धारित किया जाए, लेकिन उसके बावजूद जो समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया, उसमें कोई बदलाव नहीं था।" जब प्रदेश कृषि सलाहकार रमेश यादव से पूछा गया कि आपके हिसाब से गेहूं का समर्थन मूल्य कितना होना चाहिए कि उसे 50 प्रतिशत मिल सके? तो इस पर उन्होंने कहा, ''प्रति कुन्तल मूल्य तो नहीं पता है लेकिन उसमें ये सुझाव दिया गया है कि लागत में लाभांश जोड़ कर समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाना चाहिए।"

उत्तर प्रदेश के कृषि अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद सिंह ने केन्द्र सरकार का विरोध करते हुये कहा, ''जब से वर्तमान प्रधानमंत्री आये हैं तब से प्रकृति रूठ गयी है लेकिन वो किसानों के लिये कुछ नहीं कर रहे हैं।" उन्होंने अपने विचार को व्यक्त करते हुये कहा, ''कृषि और उद्योग को शिक्षा की धुरी बनाना चाहिए। आज ऐसे समाज का निर्माण किया जा रहा है जिसमें कुछ लोग काम करते-करते मरे जा रहे हैं और कुछ लोग आराम करते-करते। काम और आराम ये दोनों जीवन के आयाम हैं, हम काम भी करें और आराम भी करें। आजादी के बाद से ये देश बैसाखियों के बल पर चल रहा है और बैसाखियों से कभी किसी देश की तरक्की नहीं हो सकती है।"

''केवल वर्ष 2015-16 के लिये लगभग 35 हज़ार करोड़ रुपए कृषि और एलाइंस के लिये आवंटित किये गये हैं जिसमें से कृषि शिक्षा अनुसंधान के लिये सिर्फ है 253 करोड़ दिये गये।" उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ के महानिदेशक राजेन्द्र कुमार ने कहा, ''हम कृषि अनुसंधान परिषद उत्तर प्रदेश के महानिदेशक के रूप में बिल्कुल असहज हैं क्योंकि हमारी जायज बातें भी नहीं मानी जाती हैं और जो लोग इसे देख रहे हैं वो लोग ये मानते हैं कि राय देना उपकार का काम है उस राय को मानना न मानना हमारा काम है।"

उन्होंने कृषि वर्ष के बारे में बताते हुये कहा कि हम किसान वर्ष मना रहे हैं। उसके मद्देनज़र हम तीन बातों को मान लें। एक तो 58 वर्ष से लम्बी कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम का नया ड्रॉफ्ट बना के शासन को सौंपा गया है, उसको लागू कर दिया जाए। दूसरा प्रदेश में तत्काल प्रभाव से एक ही साल के लिये ही सही किसान आयोग का गठन कर दिया जाए, तीसरी बात है सार्वजनिक और निजी सहभागिता जो कि सैद्धान्तिक तौर पर हम उसको लागू कर चुके हैंं हमने राष्ट्रीय स्तर पर भी उसको एडाप्ट कर रखा है और राज्य स्तर पर भी उसको सैद्धान्तिक रूप से अपना रखा है लेकिन केवल सैद्धान्तिक रूप से अपनाने बात नहीं बनेगी। हमें उसको असली जामा पहनाना होगा।

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