कश्मीर की ये लड़कियाँ घर से निकल कर बड़े बदलाव का काम क्यों कर रही हैं?

जम्मू-कश्मीर के गाँवों में लड़कियाँ आजकल पीरियड्स, शिक्षा और सोलर एनर्जी जैसे विषयों पर लोगों को जागरूक कर रही हैं।

Update: 2024-04-27 10:44 GMT

जम्मू-कश्मीर के कई जिलों में इन दिनों लड़कियाँ अपने घर और गाँवों में घूम-घूम कर लोगों को सोलर एनर्जी के फायदे गिनाती हैं, यही नहीं अब तो कई लोगों ने उनकी बात मानकर अपने घरों में सोलर पैनल लगवा भी लिया है। इन लड़कियों को आगे बढ़ा रही हैं अहंगर ज़ाहिदा।

बारामुला के पट्टन की रहने वाली 27 साल की अहंगर ज़हिदा के लिए ये सब इतना आसान नहीं था। कॉलेज के दिनों से जागरूकता के लिए काम करने वाली ज़ाहिदा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "पीरियड्स के दौरान मुझे पुराने कपड़े के टुकड़ों को सैनिटरी नैपकिन के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता था, और इससे मुझे बहुत परेशानी होती थी; मैंने ये महसूस किया कि कश्मीर में महिलाएँ पीरियड्स पर बात करने से हिचकती हैं, इसलिए साल 2016 में मैंने स्टैंड फॉर कश्मीरी यूथ (स्काई) की शुरुआत की।"

पुरुष प्रधान समाज में महिला के हक़ की बात करना भले मुश्किल हो, ज़ाहिदा ने अपनी समस्याओं को सामने रखा। उन्होंने बचपन से ही भेदभाव का सामना किया, चाहे वो उनका घर हो या स्कूल। ज़ाहिदा बताती हैं, "एक वक्त था जब कश्मीर के लोगों की रोजी रोटी उनके कला पर निर्भर करती थी, लेकिन औद्योगीकरण के बाद सब कुछ खत्म हो गया; जब बात आजीविका पर आई तो लोगों ने भी अपनी पारंपरिक कामों को छोड़ कर औद्योगीकरण के साथ चलना बेहतर समझा।"

उनकी ये संस्था महिलाओं और युवाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने पर काम करती है। आज उनके साथ 150 वालंटियर जुड़े हुए हैं। ये जर्नी फेलोशिप की तरह होती हैं तीन महीने से लेकर एक साल तक की; जिसमे पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, मेंटल हेल्‍थ, महिला उद्यम, जैसे विषयों पर जागरुक किया जाता है। इससे कश्मीर में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल रहा है।


'क्लाइमेट फ्रेंड्स फेलोशिप' के साथ वह जलवायु परिवर्तन में युवा महिलाओं की क्षमताओं का निर्माण करने के साथ-साथ उन्हें जीवन में आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं।

मरियम युसूफ ने साल 2019 से स्काई फाउंडेशन ज्वाइन किया था। पहले वो वॉलंटियर थी, लेकिन अब ग्राउंड कोऑर्डिनेटर के तौर पर SKY फाउंडेशन में काम कर रही हैं। उन्हें शुरुआत में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता था, वो बताती हैं, "पहले हमें ही नहीं पता था कि क्लाइमेट चेन्‍ज क्या होता है; मैंने इस फाउंडेशन की मदद से अपने में एक बदलाव देखा कम्युनिटी में कैसे बात की जाती है, लोगों की रुट प्रोब्लेम्स को समझा और उन पर काम करना शुरू किया, इस काम में मेरे घर वालों का साथ मिला तो काम करने की लगन और भी बढ़ गई।"

ग्रीन एंटरप्रेन्योर प्रोग्राम के जरिए ज़ाहिदा कश्मीर में सौर ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देना चाहती हैं। वह वर्तमान में जलवायु संकट, सौर ऊर्जा के लाभों और जलवायु संकट को कैसे कम कर सकते है, इसके बारे में जागरूकता पर काम कर रही हैं।

ज़ाहिदा आगे ये भी बताती हैं कि सौर उत्पाद महँगे हैं और स्थानीय लोगों के पास सौर ऊर्जा अपनाने के साधन नहीं हैं।


हालाँकि सरकारी योजनाएँ मौजूद हैं, लेकिन उनका लाभ उठाना पूरी तरह से एक और चुनौती है। इसलिए ज़ाहिदा जलवायु समाधान और सौर ऊर्जा अपनाने पर काम कर रहे सरकारी विभागों और स्थानीय संगठनों के साथ संबंध बनाने की कोशिश कर रही है। पहले उनका ध्यान पर्यावरण पर था, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन को स्काई ट्रस्ट में एक अलग कार्यक्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया है।

बिंदी इंटरनेशनल द्वारा प्रदान किए गए सौर ऊर्जा के बारे में तकनीकी प्रशिक्षण के अलावा, जाहिदा ने 10 महिला साथियों को भी प्रशिक्षित कर दिया है।

बांदीपोरा के नौगाम में रहने वाली 21 साल की सौर सखी ज़रीना अख्तर भी उन्हीं में से एक हैं। वो बताती हैं, "पहले मैं सिलाई का काम करती थी फिर एक दिन स्काई फाउंडेशन से कुछ लोग अवेयरनेस कैंप के लिए आये थे तो मैने भी कैंप में हिस्सा लिया और ट्रेनिंग पर भी गई। SKY फाउंडेशन ने मुझे सोलर पैनल बनना सिखाया अब मैं और लोगों को भी सीखा सकती हूँ।"

इन महिला साथियों ने अपने समुदायों में युवा समूह शुरू किए हैं और प्रत्येक युवा समूह में 10-15 युवा शामिल हैं। वे महीने में एक बार एक साथ मिलते हैं और जलवायु परिवर्तन, लिंग और जाति जैसे मुद्दों पर काम करते हैं।

यह आत्मविश्वास उनके समुदायों में अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित करने और लंबे समय में उनके साथ जुड़े अधिक जीवन को रोशन करने के लिए नेतृत्व की भूमिका निभाने की नींव रखता है। ज़ाहिदा के नेतृत्व में सौर सखियाँ जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अपनी भूमिका निभा रही हैं। समाज महिलाओं और जलवायु परिवर्तन को एक घटना के रूप में कैसे देखता है, इसमें बदलाव भी ला रही हैं।

आखिर में ज़ाहिदा कहती हैं, "महिलाओं की स्थिति को बनाए रखने के मामले में कश्मीर की संस्कृति को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।"

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