आवारा पशुओं के लिए खुला गेस्टहाउस, मुफ्त चारा-पानी की व्यवस्था

Update: 2016-05-30 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

बड़ोखर खुर्द (बांदा)। सूखे और पानी संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड में मवेशियों की जान बच सके, इसके लिए एक गाँव में गाय गेस्ट हाउस खोला गया है। यहां की खासियत ये है कि यहां कोई भी जानवर आकर चारा-पानी कर सकता है। लगातार सूखे के चलते छुट्टा जानवरों की संख्या बांदा समेत पूरे बुंदेलखंड में बहुत बढ़ गई है।

 बांदा जिले मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर दूर कर्वी रोड चलने पर बडोखर खुर्द गाँव के प्रगतिशील किसान ने कुछ लोगों के साथ मिलकर काउ गेस्ट हाउस खोला है। यहां एक साथ 100 जानवरों के खाने और पानी पीने का प्रबंध है। प्रेम सिंह की बगिया में करीब एक एकड़ में अस्थायी तौर पर बनाए गए इस गेस्ट हाउस में ड्रमों को काटकर नांदें बनाई गई हैं तो बाग के चारों तरफ नालियां खोदकर पानी भरा गया है। प्रेम सिंह (57 वर्ष) बताते हैं कि दो साल से सूखा है, किसानों की फसलें हुई नहीं हैं।

खुद के पास खाने का संकट है, पशुओं का क्या खिलाएगा। इसलिए लोगों ने बहुत सारे जानवर छोड़ दिए हैं। वैसे भी ये अन्ना (छुट्टा और आवारा) जानवर फसलों का नुकसान पहुंचाते हैं, क्योंकि लोगों ने इनके चारे की जगह नहीं छोड़ी। अपनी बात को जारी रखते हुए सिंह बताते हैं, “ये बाग था और इसमें कुछ घास उगी थी, इस कारण कई जानवर यहां आते थे। हालांकि जब से ये व्यवस्था शुरू की गई है तब से सैकड़ों जानवर यहां आने लगे। किसी-किसी दिन 100-150 जानवर आ जाते हैं। इससे फायदा ये हुआ कि आसपास के जिन किसानों की थोड़ी बहुत फसल थी, उनको जानवरों ने नुकसान पहुंचाना कम कर दिया। इससे आस-पास के करीब 10-12 गाँव के लोगों को लाभ मिल रहा है।”

19वीं पशुगणना के अनुसार बांदा जिले में दस लाख 25 हजार से ज्यादा पशु हैं (इसमें जंगली जानवर शामिल नहीं हैं।) इसमें सबसे ज्यादा संख्या 3,54,789 गोवंश की है। बुंदेलखंड की सबसे बड़ी समस्या अन्ना प्रथा आवारा और छुट्टा जानवर हैं, जिनमें सांड और दूध न देने वाली गाय-भैस शामिल हैं। तीन महीने पहले शुरू की गई इस मुहिम के बारे में प्रेम सिंह बताते हैं, “अभी तक इस पर 54 हजार रुपए का खर्च आया है, जिसमें से 34 हजार रुपए का दान मिल गया था। ये व्यवस्था कुछ दिनों की है, बारिश होते ही जमीन और जंगल सब हरे-भरे हो जाएंगे तो इसे बंद कर देंगे। जरूरत पड़ी तो अगले साल भी चलाएंगे।”

अन्ना जानवर समस्या न बनें इसका उपाय क्या है इस पर खुद दर्जन भर सहवाल नस्ल के गोवंश पालने वाले प्रेम सिंह बताते हैं, “कम खर्चे में बेहतर मुनाफे के लिए किसान को अपनी जमीन का एक तिहाई पशुओं के लिए सुरक्षित रखना होगा।” प्रेम सिंह ने खुद अपनी जमीन को तीन भागों में बांट रखा है, एक हिस्से में फलदार बाग लगी है तो दूसरे में गोवंश के लिए चरने का इंतजाम है जबकि बाकी एक तिहाई हिस्से में वो जैविक तरीके से खेती करते हैं। इस खेती को उन्होंने आवर्तनशील खेती नाम दिया है। इसे सीखने दुनियभर से लोग उनके फार्म हाउस (कृषि गुरुकुल) आते हैं।

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