दुंबा भेड़ पालन से मालामाल हो सकते हैं किसान जानिए कैसे

जयपुर, राजस्थान में पढ़ाई के दौरान नबीबुल ने देखा था कि दुंबा नस्ल की भेड़ पालने से लोगों ने अपनी आमदनी में अच्छी-खासी बढ़ोतरी कर ली थी। जब कोविड महामारी ने उनके परिवार पर आर्थिक असर डाला तो उन्होंने भी पाँच दुंबा भेड़ खरीद ली। आज उनका एक फलता-फूलता व्यवसाय है।

Update: 2023-10-13 12:03 GMT

बाँकुरा, पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल के नबीबुल को यह नहीं पता था कि जिस मोटी पूँछ वाली दुंबा नस्ल की भेड़ को उन्होंने कई साल पहले देखा था, वह उनके लिए जीवनरक्षक बन जाएगी। दरअसल जब वह राजस्थान की राजधानी जयपुर में दारुल उलूम देवबंद जकिया मदरसा में पढ़ रहे थे, तो उन्हें दुंबा भेड़ों के बारे में पता चला था।

जब कोविड-19 महामारी फैली, तो केरल के मलप्पुरम में एक मस्जिद में मौलवी के रूप में काम करने वाले नबीबुल को पश्चिम बंगाल के बाँकुरा जिले में अपने गाँव अँगारिया लौटना पड़ा। उनके पास कोई काम नहीं था। सो, उनके लिए खर्चों को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन गई।

वह 26 साल के एक पढ़े-लिखे नौजवान थे। लेकिन वह बेरोज़गार थे। सबसे बड़ी बात दूर- दराज़ के इलाके में बसे उनके गाँव में आमदनी का कोई ज़रिया भी नहीं था। उनके पिता, लोकमन अली खान के पास एक बीघे से भी कम ज़मीन थी। उसी ज़मीन पर होने वाली आय से ही उन्हें अपनी पत्नी, चार बेटों और तीन बेटियों के परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता था। अपने परिवार के सबसे छोटे बेटे यानी नबीबुल के लिए यह करो या मरो की स्थिति थी।


विश्वास के साथ नबीबुल ने फैसला किया कि वह उस दुंबा भेड़ को खरीदेंगे जिसे उन्होंने 1,500 किलोमीटर दूर, देश के दूसरे छोर पर राजस्थान में देखा था। दुंबा ने जयपुर में इन्हें पालने वाले मालिकों को भारी मुनाफा दिलाया था।

लेकिन पश्चिम बंगाल के बांकुरा में भेड़ पालने के नबीबुल के 'पागल' विचार पर लोग हँसे। पहले किसी गाँव वाले ने ऐसा प्रयास नहीं किया था। उनके गाँव की 1,500 लोगों की ज़्यादातर आबादी मज़दूरी के काम में लगी हुई थी।

बिना डरे, नबीबुल ज़ोखिम लेने के लिए तैयार थे। उन्होंने चार लाख रुपये उधार लिए। एक लाख अपने बड़े भाई से, जो मवेशियों का व्यापार करते थे और बाकी पैसे पड़ोसियों और दोस्तों से। फिर उन्होंने जयपुर, राजस्थान से पाँच दुंबा भेड़े खरीदीं।

तीन साल बाद, उनकी पाँच भेड़ों की संख्या बढ़कर 18 हो गई है और नबीबुल ने अपना कर्ज़ भी चुका दिया है। युवक ने खुशी से कहा, "मेरी भेड़ों की बाज़ार में कीमत पंद्रह लाख रुपये है और वे अब मेरे परिवार की आय का प्राथमिक स्रोत हैं।"

दुंबा एक साहसी भेड़ है और गर्म अर्ध-शुष्क जलवायु परिस्थितियों में रहती है। इसमें उच्च प्रजनन क्षमता, तेज़ी से बढ़ने और काफी ज़्यादा दूध देने की क्षमता है।


आईसीएआर-सेंट्रल शीप एंड वूल रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, “उद्यमियों या पशु व्यापारियों के इन जानवरों को पालने और रखने का खास मकसद ईद त्योहार के दौरान बड़ी रकम कमाना है। क्योंकि इनकी सुंदरता का धार्मिक महत्व ज़्यादा है। वयस्क नर भेड़ की बाज़ार में कीमत 90,000 से 150,000 रुपये है। तो वहीं मादा भेड़ की कीमत 70,000 रुपये है। मेमने 15,000 से 30,000 रुपये की दर से बिकते हैं।'

नबीबुल ने कहा, "जानवरों को खरीदने से पहले, मुझे अपने बूढ़े पिता के साथ खेतों में मज़दूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बदले में बेहद कम पैसे मिला करते थे। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) का काम भी दो-तीन साल से से नहीं मिल रहा था।"

उन्होंने आगे बताया, “तभी मैंने दुंबा के बारे में सोचा। मुझे याद आया कि दुंबा के स्वादिष्ट मांस के चलते राजस्थान में मालिकों ने काफी मुनाफा कमाया था, खासकर बकरीद के दौरान।”

नबीबुल ने जयपुर से चार मादा और एक नर दुंबा खरीदा। और जल्द ही मादा दुंबा ने प्रजनन करना शुरू कर दिया।

नबीबुल ने कहा, “एक मादा दुंबा छह साल के अंतराल में दस बच्चों को जन्म दे सकती है। चार महीने के मेमने का वजन 35-40 किलोग्राम होता है और वह बेचने लायक हो जाता है। एक साल की उम्र तक इसका वजन एक क्विंटल (100 किलोग्राम) तक हो जाता है।”

ज़िंदा दुंबा 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकते हैं जबकि उनका मांस 3,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक जाता है। उन्होंने बताया, “मैंने इन तीन सालों में पंद्रह दुंबा बेचे हैं और 15 लाख रुपये की कमाई की है। पड़ोसी राज्य झारखंड, ओडिशा से लोग यहाँ दुंबा खरीदने आते हैं।''


युवा किसान ने कहा, “मूल रूप से एक रेगिस्तानी वातावरण से दुंबा हमारे पर्यावरण में अच्छे से ज़िंदा बनी रह पाती हैं। उन्हें दिन में तीन बार खाने की ज़रूरत होती है। मैं गेहूँ, भूसी और घास के चारे के लिए रोज़ाना प्रति दुंबा अस्सी रुपये खर्च करता हूँ ” उनकी नियमित मेडिकल चेकअप और उन्हें विटामिन आदि भी दिए जाते हैं।

नबीबुल ने अपने घर की मरम्मत के अलावा अपनी भेड़ों के लिए एक शेड भी बनाया है। उन्होंने कहा, अब उनके पास 18 दुंबा हैं, जिनकी बाज़ार में कीमत 15 लाख रुपये से अधिक है।

परिवार का सबसे छोटा बेटा नबीबुल हमेशा से मौलवी बनना चाहता था। परिस्थितियों ने उन्हें एक उद्यमी और दुंबा किसान बना दिया। लेकिन, युवक और उसका परिवार खुश है।

नबीबुल के पिता, 70 वर्षीय लोकमान अली खान ने कहा, "हमें खाने तक के लाले पड़ गए थे। गाँव के अधिकांश परिवारों की तरह, मुझे जो भी काम मिला, मैंने कर लिया।" परिवार को अब संघर्ष नहीं करना पड़ता है और दुंबा की बदौलत हम एक अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं।

दुंबा प्रजनन से नबीबुल को मिली सफलता को देखते हुए, अंगारिया गाँव के कई अन्य लोग अब इसे अपनाने की योजना बना रहे हैं।

प्रवासी मज़दूर हैदर अली खान और गुलज़ार मोल्ला और खेतीहर मज़दूर सबूर अली खान और जियाउल खान इस बारे में अधिक जानने के लिए नियमित रूप से नबीबुल के घर जाते हैं।

हैदर अली खान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैंने हैदराबाद में अपनी नौकरी छोड़ दी और इस साल दुंबा की खेती शुरू करने की योजना बनाई है।" उन्होंने कहा, "मैंने पैसे बचाना शुरू कर दिया है और नबीबुल ने मुझे अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद करने का वादा किया है।"

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