लखनऊ। रेलवे स्टेशन पर खोए हुए बच्चों की मदद करने के लिए रेलवे विभाग ने एहसास एनजीओ के साथ मिलकर नई पहल की है। स्पेशल रेलवे चाइल्डलाइन नाम के इस प्रोजेक्ट के तहत चारबाग स्टेशन पर बूथ बनाया गया है। इस बूथ में मौजूद लोग खोए हुए बच्चों की जानकारी के आदान-प्रदान का काम करते हैं।
अपने घरों से बिछड़ चुके बच्चों के लिए यह संस्था जहां उनको घर तक पहुंचाने का काम करती है, वहीं उन्हें शिक्षित करने का भी काम बखूबी कर रही है। प्रदेश की राजधानी के चारबाग स्टेशन में खो जाने वाले बच्चों को यह संस्था पढ़ा लिखा कर उन्हें अच्छा इंसान भी बनाती है। इस मुहिम में इनके साथ रेलवे पुलिस भी इनका पूरा सहयोग करती है।
चाइल्ड लाइन की महासचिव सची सिंह बताती हैं, “हाल ही में एक बच्चा ट्रेन में जहरखुरानी का शिकार हुआ था। रेलवे पुलिस की सूचना पर बच्चे को अस्पताल ले जाकर इलाज करवाया गया और उसके बाद उसे परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया।” उन्होंने बताया कि इसी माह में एक 13 वर्ष का बच्चा अपने घर से नाराज होकर लखनऊ स्टेशन पहुंच गया था। इसके बाद वह घबरा गया और स्टेशन से परिजनों को फोन किया। इसके बाद परिजनों ने हम लोगों को फोन किया। काफी मशक्कत के बाद उसे हम लोग ढूंढ पाए।
चारबाग स्थित एहसास नाम की इस संस्था की शुरुआत वर्ष 2002 में हुई थी। इसकी सहायता से रेलवे विभाग ने मिलकर 31 अगस्त 2015 को रेलवे चाइल्ड लाइन प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी।
इसमें उनके साथ लगभग 20 अन्य निजी संस्थाएं काम कर रही हैं। टीम चाइल्ड की सदस्य बबीता बताती हैं, “यहां नवजात से लेकर 18 उम्र तक के बच्चों को लाया जाता है। इन बच्चों को ढूंढने के लिए वेंडर या संस्था की टीम स्टेशन पर घूमती रहती है, जिनकी सहायता से यह बच्चे इस संस्था में लाए जाते हैं।” वो बताती हैं कि खोए हुई लड़कियों को लीलावती आवास गृह, राजकीय बालिका गृह, नवजागृति और नई आशा गृह में रखा जाता है। लड़कों को राजकीय बाल गृह और राजकीय शिशु गृह में रखा जाता है। चाइल्ड लाइन की महासचिव सची सिंह ने बताया कि बीते छह माह में नार्थ रेलवे में 398 और नार्थ ईस्टर्न रेलवे में 105 मामले आए। कुल 503 बच्चों के मामले सामने आए।
रिपोर्टर - दीक्षा बनौधा