भारत में दो तिहाई बच्चों के नहीं लग पाता है समय पर टीका

Update: 2016-06-04 05:30 GMT
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वाशिंगटन। टीकाकरण के क्षेत्र में वैसे तो भारत टीकों का महत्वपूर्ण निर्माता एवं निर्यातक देश है, लेकिन विडंबना यह है कि दो तिहाई भारतीय बच्चों का समय पर टीकाकरण नहीं हो पाता,जो उन्हें बीमारियों के प्रति अति संवेदनशील बनाता है और उनकी असमय मृत्यु का कारण भी बनता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन्स स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए गए अनुसंधान में इस बात का खुलासा हुआ है कि सिर्फ 18 प्रतिशत बच्चों को ही बताए अनुसार डीपीटी के तीन टीके दिए जाते हैं, जबकि सरकार से मदद प्राप्त टीकाकरण अभियान के तहत 10 महीनों में करीब एक तिहाई बच्चों को खसरे का टीका दिया जाता है।

हाल में यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन से महामारी विज्ञान में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने वाली और अध्ययन की मुख्य लेखिका निजिका श्रीवास्तव ने कहा कि यह व्यवस्था संबंधी समस्या है। निजिका फिलहाल स्वास्थ्य एवं पर्यावरण नियंत्रण साउथ कैरोलिना विभाग में हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘बताए गए समय से छह महीने बाद बच्चों का टीकाकरण करना बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए नाटकीय रुप से मुश्किल पैदा कर सकता है।’’      

भारत टीकों का एक बड़ा निर्माता एवं निर्यातक देश है, लेकिन यहां पांच साल से नीचे के बच्चों के मरने की तादाद भी अधिक है और इनमें से अधिकतर बच्चे टीके से नियंत्रित किए जा सकने वाले रोगों के शिकार होते हैं।

खसरे के खतरे को भांपना ज़रूरी

दुनियाभर में हर दिन 450 लोग खसरे के कारण मारे जाते हैं। इनमें बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। भारत में भी इसका आंकड़ा चिंता में डालने वाला है। खसरा एक बेहद संवेदनशील और संक्रमण वाली बीमारी है। भारत मे कुपोषण से जूझ रहे बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता वैसे ही बहुत कम है।

दूसरी और तमाम कोशिशों के बाद भी टीकाकरण का प्रतिशत बहुत तीव्र गति से नहीं बढ़ पा रहा है। इसलिए इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि बच्चों को रोगों से बचाने और सुरक्षित करने के लिए टीकाकरण की पहुंच ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक हो। उन्हें वह सब जरूरी टीके मिलें, जिनसे वह ऐसी बीमारियों के खिलाफ मजबूती से लड़ाई कर पाते हैं।

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