भारत में यौन गुलामी का केंद्र पश्चिम बंगाल

Update: 2016-06-04 05:30 GMT
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कोलकाता। वर्ष 2005-06 से नौ वर्षों में, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 76% बढ़ा है, इसके साथ वे नकारात्मक बदलाव छिप गए जो इस आर्थिक कायापलट के साथ उभरे थे।

इनमें से एक मानव तस्करी में 20 फीसदी की वृद्धि है जो “वेश्यावृति के उद्देश्यों” से संबंधित थी- बच्चों और व्यस्कों को यौन गुलामी के लिए मजबूर करने की आपराधिक प्रक्रिय- इसी अवधि के दौरान, पिंकी और आमीना की कहानियों द्वारा एक पारस्परिक संबंध सामने आया। उनके जीवन, जैसा कि हम देखते हैं, उस राज्य में एक ही समय चल रहे थे जो इस तरह के मामलों के 20 प्रतिशत का योगदान देता है और भारत के मानव-तस्करी उद्योग का केंद्र है पश्चिम बंगाल।

मां ने इस पेशे में धकेला

“मैं मुंबई में चार वर्ष के उस दर्द भरे अनुभव के बारे में बात नहीं करना चाहती। वे वर्ष मेरे जीवन का सबसे काला दौर हैं।” पिंकी (उसका वास्तविक नाम नहीं) 16 वर्ष की, शर्मीली और घबराई हुई लड़की है। धीरे-धीरे, वह कुछ जानकारी देती है। लगभग 18 महीने पहले, उसे मुंबई में मानव-तस्करी रोधी यूनिट ने पूर्वी मुंबई के बाहरी हिस्से में मौजूद उल्हासनगर से बचाया था- जो पश्चिम बंगाल में उत्तर 24 परगना जिले में उसके घर से 1,900 किमी से अधिक दूर है।

1 वर्ष की होने पर, उसने अपनी मां के साथ पश्चिमी हिस्से की यात्रा की, उसकी मां “काम करती थी”- जैसा पिंकी कहती है, वेश्यावृति के लिए सभ्य भाषा का इस्तेमाल करते हुए- मुंबई में। पिंकी को उल्हासनगर के वेश्यालय में एक अज्ञात रकम में बेचा गया था। पिंकी से जबरदस्ती यौन कार्य की शुरुआत कराई गई। जब मुंबई एएचटीयू ने वेश्यालय पर छापा मारा, उसकी मां भाग गई। पिंकी को तब से उसके बारे में जानकारी नहीं है।

देशभर में तस्करों की बंधक लड़कियों में से 42 फीसदी पश्चिम बंगाल से 

हमारी आमीना, पिंकी के साथ मुलाकात मध्य कोलकाता से 17 किलोमीटर दूर, नरेद्रपुर में एक एनजीओ, संलाप की ओर से चलाए जा रहे घर में हुई थी। उनका भविष्य अनिश्चित है, लेकिन यौन गुलामी में बेची गई हजारों अव्यस्क लड़कियों को ये सुविधाएं भी नहीं मिलती, विशेषतौर पर पश्चिम बंगाल में नहीं, जो निर्धन परिवारों की लड़कियों के लिए काफी खतरनाक है। इसके परिणाम स्वरूप, मध्य कोलकाता में सोनागाची को एशिया में वेश्यालयों का सबसे बड़ा ठिकाना बताया जाता है, जो तस्करी कर लाई गई बहुत सी लड़कियों का गंतव्य है, इनमें से अधिकतर के पास बच निकलने की बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं है। वर्ष 2014-15 में- नवीनतम वर्ष जिसके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं- भारत में पिछले वर्ष की तुलना में मानव तस्करी में 38.7 फीसदी की वृद्धि हुई थी, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार। प. बंगाल ने इसमें 1,096 मामलों के साथ भारत के कुल मामलों में 20.1 फीसदी का योगदान दिया।

टेक्नोलॉजी से दे रहे पुलिस को चकमा

पश्चिम बंगाल में पुलिस की जांच से खुलासा हुआ है, कम आयु की लड़कियों और युवा महिलाओं की तस्करी में शामिल लोगों में एक प्राइवेट ट्यूटर, एक फार्मासिस्ट और एक जीवन-बीमा सेल्समैन जैसे लोग भी थे। यह कहानी काफी हद तक पूरे भारत में एक जैसी है। वर्ष 2013 में, मानव तस्करी के 3,940 मामलों की रिपोर्ट मिली। 2014 में, यह संख्या बढ़कर 5,466 हो गई। तमिलनाडु की 509 और कर्नाटक की 472 के साथ क्रमशः 9.3 फीसदी और 8.6 फीसदी मामलों की हिस्सेदारी रही, इनका स्थान पश्चिम बंगाल के बाद दूसरा और तीसरा था। बेंगलुरु में, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी उद्योग द्वारा बन रही संपत्ति तस्करों के लिए एक चुंबक का काम कर रही है और इसके रूपों में विविधता आई है।”

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