बिक रही प्रतिबंधित जहरीली मछली

Update: 2016-03-22 05:30 GMT
गाँवकनेक्शन

लखनऊ। मछली मंडी में सबसे ज्यादा दिखने वाली थाई मांगुर मछली पर प्रतिबंध है। लेकिन यह मछली थोक से लेकर हर छोटी दुकान पर बिकती है। सेहत के लिए हानिकारक होने के बावजूद मत्स्य पालन विभाग इस पर कोई कार्रवाई नहीं करता।

नदी, तालाब के परिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक इस मछली पर वर्ष 2000 में केंद्र ने प्रतिबंध लगा दिया था। थाई मांगुर की बिक्री, पालन, संवर्धन पर प्रतिबंध है। लेकिन सस्ती और टिकाऊ होने से बिक्री जारी है।

लखनऊ स्थित दुबग्गा मछली मंडी में मंडी के अध्यक्ष शौकत अली बताते हैं, ‘‘बाजार में यह सस्ते दामों में मिल जाती है गरीब व्यक्ति भी इसको आराम से खरीद के खा लेता है और बेचने वाले को इसलिए आसानी है क्योंकि और मछलियों की अपेक्षा कम खर्च में यह जल्दी बिक्री के लायक हो जाती है।

बिक रही प्रतिबंधित... 

इस पर रोक लगी हुई है लेकिन अब विभाग द्वारा ही नहीं रोका जाता तो हमको बेचने में कोई दिक्कत नहीं होती है।''

वो आगे बताते हैं, ''इस मछली को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। मंडी से लखनऊ की हर मछली बाजार में इसको बेचा जाता है। हर रोज 500 से 600 बड़े कारोबारी और किसान मछली खरीदने के लिए मंडी में आते है।''

राष्टीय मत्स्य आंनुवशिकी ब्यूरो के तकनीकी अधिकारी अखिलेश यादव बताते हैं, ''इसका सेवन मुनष्यों के लिए सेहत के काफी खराब है इससे मनुष्यों में कई घातक बीमारियां हो सकती है। लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है लेकिन बाजारों में कोई रोक-टोक न लगने के कारण इसकी बिक्री आसानी से की जा रही है।'' 

अपनी बात को जारी रखते हुए यादव आगे बताते हैं, ''लखनऊ के आस-पास के गाँव में लालच के चक्कर में इसका पालन किया जा रहा है लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है।'' 

थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे हैं क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है। 

इस मछली में 80 फीसदी लेड एवं आयरन के तत्व पाए जाते हैं। थाईलैंड में विकसित की गई मांसाहारी मछली की विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है। जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती हैं, यह जीवित रहती है। 

थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है। ''इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्वारा  वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। यह मछली मांसाहारी है यह इंसानों के सड़े-गले शवों भी मांस खा सकती है। ऐसे में इसक सेवन सेहत के लिए भी घातक है इसी कारण इस पर रोक लगाई गई थी।'' उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के अनुसंधान अधिकारी डॉ हरेंद्र प्रसाद बताते हैं। 

लखनऊ स्थित मत्स्य विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ एसके. सिह ने बताया, ''इसका पालन बाग्लादेश में ज्यादा किया जाता है। वहीं से इस मछली को भारत में भेजा जाता है। कई बार में छापे भी मारते हैं पर कोई कानून न होने की वजह से काई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है। यह मछली जहां मिलती है वहां इसको मार कर गाड़ दिया जाता है।''

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