बिना रसायन का इस्तेमाल किए भी कर सकते हैं कीट प्रबंधन

Update: 2016-06-08 05:30 GMT
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लखनऊ। जहां पूरे विश्व में जैविक खेती करने के लिए जोर दिया जा रहा है, वहीं ट्राइकोग्रामा इसके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि बिना रसायन के कीट प्रबंधन का सटीक दवा है। ट्राइकोग्रामा की 18वीं प्रजाति का नाशीजीव प्रबंधन में प्रयोग होता है।

बिना रसायन के कीट नियंत्रण का एकमात्र तरीका है, जो कीट को अंडे की अवस्था में ही मारकर फसल की रक्षा करता है। इसके प्रयोग से कीटनाशक दवाओं का खर्च से बचा जा सकता है, व जहरमुक्त खाद्य, सब्जियां उगाई जा सकती है। हमारे देश में मुख्य रूप से दो प्रजातियों (ट्राइकोग्रामा केलोनिस , ट्राइकोग्रामा जापोनिकम) का प्रयोग होता है। 

ट्राइकोग्रामा केलोनिस का प्रयोग धान सब्जियों एवं अन्य फसलों में ज़्यादा प्रभावी है। ट्राइकोग्रामा जापोनिकम प्रायः गन्ने की फसल में पाए जानेवाले बिभिन्न प्रकार के बोरर (ताना छेदक एवं सुंडी) की अंडे की अवस्था में अपना अंडा डालकर जैविक चक्र चलाकर मार देता है, जिससे नुकसान करने वाले बोरर (एक परजीवी का नाम) की संख्या में भरी कमी आ जाती है। जैविककारकों में ट्राइकोग्रामा प्रजाति का फसलों के नाशीजीव प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान है। ट्राइकोग्रामा प्रजाति ट्राइकोग्रेमेटीड कुल में आता है। यह विभिन्न फसलो पर छेद करने वाले कीट का अंडा परजीवी है।

फसल पर नुकसान करनेवाले कीट के अंडे में अपना जननांग से अंडा दल देता है। शत्रु कीट के अंडे के अन्दर का तरल पदार्थ खाकर मार देता है। इसके द्वारा इसका जीवन चक्र चलता है, यह छोटा सा मित्र कीट का आकार 0.8  से 0.9 मिमी. का होता है। इसका पूरा जीवनचक्र आठ से दस दिन का होता है। यह विभिन्न कीट की 200 कीट प्रजाति को 80-90 दिन तक खेत में नियंत्रित करता है। इसका प्रयोग गन्ना, धान, मक्का, अरहर व विभिन्न प्रकार की सब्जियों, फलों और फूलों में प्रयोग किया जाता है।

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