बसंतकालीन गन्ने की बुवाई का सही समय

Update: 2016-03-24 05:30 GMT
गाँवकनेक्शन

लखनऊ। जानकारी के अभाव में किसानों को कई बार नुकसान उठाना पड़ता है, इस समय बसंतकालीन गन्ने की बुवाई का सही समय है। भारतीय गन्ना शोध संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सिंह बता रहे हैं कैसे इस मौसम गन्ने की उन्नत बुवाई कर सकते हैं।

गन्ने की प्रजातियों का चयन

अपने क्षेत्र  के हिसाब से स्वीकृत प्रजातियों का चयन करना चाहिए। सम्पूर्ण गन्ना क्षेत्रफल का 30-35 प्रतिशत हिस्सा शीघ्र पकने वाली व 65-70 प्रतिशत मध्य देर से पकने वाली प्रजातियों के अर्न्तगत रखना चाहिए।

खेत की तैयारी

खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। उसके बाद तीन-चार जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करना चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें, जिससे मिट्टी नम व भुरभुरी हो जाये। भूमि में पर्याप्त नमी के लिए बुवाई से पहले सिंचाई करें। खेत की तैयारी के दौरान शुरू में केवल नालियां खोदना चाहिए, अन्य सभी कार्य जैसे बीज गन्ना काटना, उर्वरक एवं कीटनाशकों का छिड़काव तथा गड्ढे में मिट्टी भराई आदि कटर प्लान्टर से करें।

उन्नत बीज का चुनाव

उन्नतशील प्रजाति होते हुये भी यदि बीज की स्वस्थता का ध्यान नहीं रखा गया तो उस प्रजाति की उपज क्षमता होने के बावजूद भी अच्छी उपज नहीं मिल सकती है। बुवाई के लिए जहां तक हो सके, गन्ने के ऊपरी एक-तिहाई से दो तिहाई भाग को ही चुनना चहिए क्योंकि इसका जमाव शीघ्र व अधिक होता है। गन्ने की उन्नतशील प्रजाति के बीज का स्वस्थ बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी बुवाई से पूर्व बीज की छंटाई तक विशेष ध्यान रखना चाहिए। गन्ना कटाई के तुरन्त बाद बुवाई कर देना चाहिए। गन्ने को 10-12 घण्टे तक पानी में भिगोने के बाद बुवाई करें। 

बुवाई का समय व बीज की मात्रा

गन्ने के उत्तम जमाव के लिए बुवाई के समय 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम होना चाहिए। यह तापक्रम उत्तर प्रदेश व उत्तर भारत के अन्य राज्यों में 15 फरवरी से मार्च तक तथा सितम्बर 15 से अक्टूबर रहता है। जिसमें गन्ने की बुवाई करने पर अधिकतम जमाव प्राप्त होता है। गन्ने की मोटाई के अनुसार 60-70 कुन्तल प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। 

बीज व मिट्टी का उपचार

गन्ने को बीजजनित बीमारियों से बचाने के लिए ऊष्मोपचारित बीज की ही बुवाई करना चाहिए। इसके लिए  आर्द्र-ऊष्ण वायु यंत्र में गन्ने को 54 डिग्री सेन्टीग्रेड पर ढाई घण्टे तक उपचारित करते हैं। इससे बीज जनित बीमारियों जैसे- लाल सड़न, उक्ठा, कंडुवा, पेड़ीकुंठन, व घासीय प्ररोह के प्रकोप की सम्भावनायें बहुत कम हो जाती हैं। इस यंत्र की सुविधाएं सभी चीनी मिलों में उपलब्ध है। इसके बाद गन्ने को तीन आंखों में टुकड़े काटकर बावस्टीन की 200 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में घोलकर गन्ने के टुकड़ों को 15-20 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। गन्ने के बीज को दीमक व कंसुवों से बचाने के लिए बुवाई करते समय क्लोरपायरीफॉस की पांच ली. मात्रा को 1500-1600 ली. पानी में घोलकर गन्ना टुकड़ों के ऊपर फव्वारे द्वारा छिड़कना चाहिए।

गन्ने की बुवाई विधि समतल विधि 

बसंतकालीन में 75 सेमी और गड्ढे की गहराई 7 से 10 सेमी रखते हैं। नत्रजन की एक तिहाई मात्रा, तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढों में मिला देते हैं। इसके बाद बुवाई के लिये गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को फफूंदी नाशक रसायन जैसे बावस्टीन का 200 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में घोलकर 15-20 मिनट तक डुबाने के बाद बोते हैं। कटे हुये तीन आंख वाले गन्ने के टुकड़ों को गड्ढे में सिरे से सिरा या आंख से आंख  मिलाकर इस प्रकार बुवाई करते हैं कि प्रतिमीटर गड्ढे की लम्बाई में 4-5 टुकड़े आ जाये। बुवाई के बाद गड्ढे में बोये गये टुकड़ों के ऊपर क्लोरोपाइरीफास की पांच लीटर मात्रा का 1500-1600 लीटर पानी में घोल बनाकर हजारे द्वारा प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें और इसके बाद गड्ढे को देशी हल या कुदाली से ढककर पाटा लगा देना चाहिये। 

नाली विधि

समतल विधि में कम सिंचाई मिलने से गन्ने का अंकुरण लगभग 30 प्रतिशत तक ही होता है। सिंचाई की कमी की अवस्था में नाली विधि काफी उपयोगी होती है, नाली विधि में बुवाई के बाद गन्ने का जमाव अपेक्षाकृत अधिक होता है। नाली विधि द्वारा गन्ना बुवाई करने के लिए 20 सेमी गहरी और 40 सेमी चौड़ी नालियां बनायी जाती हैं। एक नाली और दूसरी समानान्तर नाली के केन्द्र से केन्द्र की दूरी 90 सेमी रखते हैं। नालियों में गोबर कम्पोस्ट या प्रेसमड खाद डालकर अच्छी तरह मिला देते हैं। गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों की बुवाई नालियों में करते हैं, इसके बाद 4-5 सेंटीमीटर मिट्टी डालकर ढक देते हैं। बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई नालियों में करते हैं, और ओट आने पर एक अन्धी गुड़ाई कर देते हैं, इससे जमाव काफी अच्छा होता है। 

कटर प्लान्टर से गन्ने की बुवाई

संस्थान द्वारा विकसित कटर प्लान्टर से बुवाई करने पर एक दिन में लगभग 1.5-2.0 हेक्टेयर खेत की बुवाई हो जाती है। इस यंत्र द्वारा गन्ना बुवाई एक साथ कई काम हो जाता है। जैसे गड्ढा खुलना, उर्वरक का पड़ना, गन्ने के टुकड़े कटकर गिरना, कीटनाशी रसायनों का पड़ना, गड्ढे का ढकना तथा पाटा होना एक साथ हो जाता है। इस यंत्र से 35-40 प्रतिशत तक बुवाई लागत में कमी हो जाती है। 

उर्वरक प्रबन्धन

100 टन की पैदावार के लिए गन्ने की फसल 208 किग्रा नत्रजन, 53 किग्रा फास्फोरस, 280 किग्रा पोटेशियम, 3.4 किग्रा लोहा, 1.2 किग्रा मैंगनीज, 0.6 किग्रा जस्ता एवं 0.2 किग्रा तांबा आदि तत्वों को मृदा से ग्रहण करती है। इस प्रकार मिट्टी जांच के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। साधारणतय: गन्ने की भरपूर उपज लेने के लिए 150 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर संस्तुत किया गया है। फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की एक-तिहाई मात्रा को बुवाई के समय में और शेष नत्रजन की मात्रा को बराबर-बराबर दो बार में टॉप ड्रेसिंग द्वारा बुवाई के 90 दिनों के अन्दर डाल देना चाहिए। यदि समेंकित पोषक तत्व प्रबन्धन किया जाये तो गन्ने की उपज में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ भूमि  की उर्वरता भी कायम रहती है। 

जल का उचित प्रबन्धन

उत्तर भारत में गन्ने की फसल से भरपूर उपज लेने के लिए पांच सिंचाई बरसात के पहले और दो सिंचाई बारिश के मौसम के बाद करने की आवश्यकता रहती है।

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