चुनौतियों से लड़कर आगे बढ़ रही शाबिस्ता

Update: 2015-11-05 05:30 GMT

उन्नाव। शाबिस्ता के साथ कुदरत ने क्रूर मजाक किया है। पन्द्रह वर्ष की शाबिस्ता दोनों हाथ पैरों से अक्षम है। हालांकि होश संभालने के बाद से शाबिस्ता ने अक्षमता को अपने लिए अभिशाप नहीं माना बल्कि उसे चुनौती के तौर पर स्वीकार करते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहने का प्रण लिया। 

शहर के मोहल्ले कंजी में रहने वाली शाबिस्ता (15 वर्ष) बताती है, ''मैं अक्षम जरूर हूं। मुझे दो कदम बढ़ाने के लिए भाई का सहारा ज़रूर लेना पड़ता है लेकिन मैं हार नहीं मान सकती।" शाबिस्ता कक्षा दस की छात्रा है और ठीक वैसे ही पढ़ाई कर रही है जैसे अन्य बच्चे करते हैं। हाथों से अक्षम होने के बाद भी वह दर्शनीय सुलेख लिखती है। शिक्षक भी शाबिस्ता के हुनर को देखकर हैरान रह जाते हैं।

शाबिस्ता यूनिटी पब्लिक स्कूल में पढ़ती हैं। हाथों व पैरों से अक्षम होने के बाद भी वह अपनी दिनचर्या के सभी काम आसानी से कर लेती है। पढ़ाई के साथ ही शाबिस्ता मोबाइल भी चलाती है और आने वाले दिनों में वह एक अच्छे भविष्य की तलाश में वकील बनने की इच्छा रखती है। शाबिस्ता ने उन लोगों के लिए मिशाल पेश की है जो बहुत जल्द जिंदगी से हार मान लेते हैं। शाबिस्ता के पिता शरीफ कहते हैं, ''मुझे आज इस बात का जरा सा भी अफसोस नहीं है कि मेरी बेटी अक्षम है। मुझे इस बात की खुशी है कि उनकी बेटी आज दूसरों को जीने का तरीका सिखा रही है। प्राइवेट नौकरी से मैं किसी तरह अपने परिवार का खर्च चला रहा हूं लेकिन मैं अपनी बेटी के जज़्बे को देखते हुए उसकी हर एक मांग को पूरा करने की कोशिश करता हूं।"

शाबिस्ता पूरे मोहल्ले के लिए प्रेरणा बन चुकी है। उसकी लगन से सब प्रभावित है। उसके स्कूल के शिक्षक जाहिद बताते है, ''वो अक्षम जरूर है लेकिन कभी उसके चेहरे पर इस बात की शिकन तक नहीं आई है। क्लास में सभी बच्चों के साथ वो पूरी तरह से घुल-मिल चुकी है। उसकी राइटिंग भी बहुत अच्छी है।" शाबिस्ता की मां मोहसिना खातून कहती हैं, ''मेरी बेटी का सपना वकील बनने का है लेकिन सपनों की मंजिल तक पहुंचने की राह पर न तो उसके कदम हैं और न ही उसे रास्ता दिखाने वाले लोग। मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो सके, जिससे उसका सपना पूरा हो पाए।" शाबिस्ता की छोटी बहन और भाई उसको पढ़ाने में भरपूर सहयोग देते हैं।

रिपोर्टर- श्रीवत्स अवस्थी

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