101 कोल्डचेन परियोजनाओं को मिली मंजूरी, 2.6 लाख किसानों को होगा मुनाफा

Update: 2017-03-29 11:23 GMT
परियोजनाओं से खाद्य प्रसंस्करण को मिलेगा बढ़ावा।  

लखनऊ। देश में खाद्य उत्पादक केन्द्रों को कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण उद्योग से जोड़ने के लिए खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय ने 101 नई एकीकृत कोल्‍डचेन परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। 3,100 करोड़ रुपए की लागत वाली ये परियोजनाएं फलों और सब्जियां, डेयरी, मछली, मांस, समुद्री उत्‍पाद, मुर्गीउत्‍पाद, खाने और पकाने के लिए तैयार (रेडी टू कुक) खाद्य पदार्थों के लिए हैं।

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वैसे तो भारत खाद्य उत्पादों के साथ फलों और सब्जियों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसके बावजूद यहां केवल 2.2 प्रतिशत फलों और सब्जियों का प्रसंस्‍करण ही किया जाता है। यही वजह है कि सरकार ने खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए देशभर में कोल्डचेन परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। केन्द्र सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम से सब्जी और फलों के साथ दुग्‍ध प्रसंस्‍करण और गैर-बागवानी खाद्य उत्‍पादों के प्रसंस्करण खाद्य उद्योगों को भी एक अच्छा अवसर मिल रहा है।

इससे पहले मंत्रालय ने मई, 2015 में 30 कोल्‍डचेन परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। वहीं इस बार जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कोल्‍ड चेन परियोजनाओं का विस्तार किया गया है। परियोजनाओं को मंजूरी मिलने के बाद देशभर में कोल्ड स्टोरेज का फैलाव किया जाएगा। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा, 21 कोल्डचेन प्रोजेक्ट बनाए जाएंगे। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में 14, गुजरात में 12 और आंध्र प्रदेश में आठ परियोजनाऐं लगेंगी। वहीं पंजाब और मध्य प्रदेश में 6-6 का प्रस्ताव रखा गया है। इन सभी कोल्डचेन परियोजनाओं की कुल क्षमता 2.76 लाख मीट्रिक टन है। किसानों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े लगभग 60 हजार लोगों को भी कोल्डचेन परियोजनाओं के जरिए रोजगार मिलेगा।

इस तरह से किसानों को होगा फायदा, बढ़ेगी आय

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के निदेशक एसपी जोशी का कहना है, “इन परियोजनाओं में प्रसंस्करण के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल (कृषि उत्पाद) किसान अपने खेतों से ही कंपनियों को उपलब्ध करा सकते हैं। किसानों को अपना उत्पाद स्टोर तक पहुंचाने में भी ट्रांसपोर्टेशन के दौरान होने वाली दिक्कतों का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।” उन्होंने बताया कि ऐसा अक्सर होता है कि किसान अपने उत्पाद को कोल्ड स्टोरेज तक ले तो जाते हैं लेकिन उन्हें नुकसान हो जाता है। रास्ते में उचित व्यवस्था न होने से उत्पाद खराब हो जाता है। इस समस्या का निवारण करेगी रेफर वैन (रेफ्रिजिरेटेड वैन)।

उत्पादों का अगर ज्यादा से ज्यादा प्रसंस्करण किया जाए तो उनकी खपत भी बढ़ेगी। इस तरह उत्पादन अगर बढ़ भी जाता है तो किसानों को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा। बाकी देशों में लगभग हर उत्पाद का प्रसंस्करण किया जाता। हमारे देश में ऐसा नहीं है। प्रसंस्करण होता है लेकिन बहुत कम। 
एसपी जोशी, निदेशक (उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र) 

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के महासंघ के अध्यक्ष बलराम सिंह ने बताया, “रेफर वैन के जरिए किसान अपना उत्पाद सुरक्षित तरीके से जहां चाहें वहां ले जा सकते हैं। ये वैन रेफ्रिजिरेटेड होगीं।” उन्होंने बताया कि भारत सरकार किसानों को अनुदान देगी जिससे किसान अपने लिए रेफर वैन खरीद सकेंगे। अनुदान के लाभार्थियों के लिए ‘उद्यानिक विपरण संघ’किसानों का चयन करेगा। इसके बाद चयनित किसानों को अनुदान दिया जाएगा। रेफर वैन के जरिए किसान अपने खेतों से ही उत्पाद उठा सकते हैं और कम समय में बिना किसी नुकसान के कंपनियों को भी प्रसंस्करण के लिए कच्चे माल के तौर पर दे सकते हैं।

अब नहीं फेके जाएंगे आलू, किसानों को मिलेगी उचित कीमत

इसबार यूपी समेत देश के कई राज्यों में आलू की बंपर पैदावार ने आलू किसानों को खून के आंसू दिए। उनकी फसल को न तो खरीदार मिले और न ही खेत तक कारोबारी पहुंचे। प्रदेश के सभी कोल्ड स्टोरोज भी फुल हो चुके थे। ऐसे में कहीं किसान आलू को माटी मोल बेचने को मजबूर हुए तो कुछ ने अपने उत्पाद की उचित कीमत और खरीददार न मिलने पर सड़कों पर उत्पाद फेंककर विरोध जताया। हालात ऐसे हुए कि आलू का भाव दो रुपए प्रति किलो तक हो गया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इन परियोजनाओं के आने से किसान अपने बचे हुए उत्पाद कोल्ड स्टोरेज में रखकर बाद में उसे अधिक दाम में बेच सकेंगे। ऑफ सीजन में बेचने की वजह से किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी।

अच्छा कदम उठाया है। किसानों के लिए बढ़िया है। तराई क्षेत्रों में तो अगर समय पर स्टोर नहीं किया गया तो उत्पादन जल्दी खराब हो जाता है और कोल्ड स्टोरेज में जगह भी कहां मिलती है।
श्वेतांक त्रिपाठी, किसान (सीतापुर)

इसके अलावा किसान अपने उत्पाद को प्रसंस्करण के लिए भी बेच सकते हैं जहां उनका पूरा उत्पादन हाथों-हाथ बिक जाएगा। इस तरह कृषि आपूर्ति श्रृंखला में बर्बादी कम हो जाएगी। लगभग 2.6 लाख किसानों को फायदा पहुंचेगा। किसानों को उनके उत्‍पाद की बेहतर कीमत उपलब्‍ध होगी। उन्हें अपने सभी उत्पादों को स्टोर करने के लिए पर्याप्त जगह मिल सकेगी।

कृषि उत्पादों के लिए रहेगी अलग श्रेणी

परियोजनाओं में शामिल कोल्ड चेन में केवल स्टोरेज की ही सुविधा नहीं है बल्कि इसमें तीन चरण होंगे। इनमें किसानों के उत्पादों को अलग जगह मिलेगी। भंडारण करने के साथ बाद में उन उत्पादों का प्रसंस्करण भी किया जाएगा। प्रसंस्करण के बाद इन उत्पादों को उपभोक्ताओं तक रेफर वैन के जरिए ही पहुंचाया जाएगा

उत्तर प्रदेश में मौजूद हैं केवल दो राजकीय कोल्ड स्टोरेज

इस समय कोल्ड स्टोरेज की सुविधा केवल कुछ राज्यों में ही केंद्रित है। जहां एक तरफ कोल्ड स्टोरेज की कमी है वहीं दूसरी ओर 80 से 90 फीसदी स्टोरेज का उपयोग केवल आलू भंडारण के लिए ही किया जाता है। इससे बाकी उत्पादों को कोल्ड स्टोरेज में जगह नहीं मिल पाती है। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो यहां केवल दो राजकीय स्टोरेज ही हैं। पहला लखनऊ में जिसकी भंडारण क्षमता (मी.टन) 4000 है और दूसरा मेरठ में बना हुआ है जिसकी भंडारण क्षमता 2000 (मी.टन) है। यूपी में कोल्ड स्टोरेज की इस कमी से कोल्ड स्टोरेज मालिक क्षमता से अधिक भंडारण कर रहें हैं। कानपुर के कटियार कोल्ड स्टोर में भीषण आग लगने की यही वजह रही कि वहां क्षमता से अधिक भंडारण किया गया।

इन योजनाओं को भी मिली मंजूरी

फ्रोज़न और कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला में 115 टन क्विक फ़्रीजिंग, 56 लाख लीटर प्रतिदिन दुग्ध प्रसंस्करण, 210 टन ब्लास्ट फ़्रीजिंग के साथ ही इंसुलेटेड या रेफ़्रिजिरेटेड वाहनों को जोड़ने की योजना को भी मंत्रालय की तरफ से मंजूरी दे दी गई है।

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