एक शिक्षक का सपना : 'जब आस-पास कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, तब मेरा विद्यालय ऑक्सीजन चैम्बर बनेगा'

अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए एक बार आलोक एक पौधरोपण कार्यक्रम में गए जहाँ उन्होंने अपनी समस्या लोगों के सामने रखी और यहाँ उनके मित्र ने उनकी मदद की।

Update: 2020-09-16 07:55 GMT
अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के साथ लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का आलोक का प्रयास जारी है। फोटो : सचिन तुलसा त्रिपाठी


सतना (मध्य प्रदेश)। "मेरा लक्ष्य है कि यह विद्यालय परिसर कुछ दिनों में ऐसा हो जाए कि लोग देख कर कहें कि इस विद्यालय में पर्यावरण के लिए कितना काम किया गया है, आज जब यहाँ कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, तब हमारा विद्यालय एक ऑक्सीजन चैम्बर बनेगा," अपने विद्यालय के हरे-भरे परिसर को देखते हुए आलोक त्रिपाठी कहते हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर साहावल ब्लॉक में महादेवा गाँव है। इस गाँव में शासकीय पूर्व माध्यमिक (मिडिल) विद्यालय में आलोक त्रिपाठी हेड मास्टर हैं। आलोक का सपना है कि उनका यह विद्यालय पर्यावरण सरंक्षण में अपनी अलग पहचान बनाये।

पहले इस विद्यालय में बाउंड्री नहीं थी, ग्रामीण स्कूल के मैदान में गाय-भैंस चराने के लिए आते थे, जो पौधे लगाये भी जाते तो वो कुछ दिनों बाद ही उखड़ जाते, मगर आज इस विद्यालय में पीपल, बरगद, जामुन, महुआ, कई औषधीय और नवग्रह पौधों समेत अलग-अलग तरह के 250 पेड़-पौधे हैं। इतना ही नहीं विद्यालय की दीवारें भी पत्तियों और फूलों से सजी नजर आती हैं। मगर ये सब इतना आसान नहीं था, आलोक अपना सपना पूरा करने के लिए सालों से मेहनत कर रहे हैं।

स्कूल की दीवारें भी पर्यावरण संरक्षण का दे रही सन्देश । फोटो : सचिन तुलसा त्रिपाठी 

आलोक 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "साल 1986 में जब यह विद्यालय प्राथमिक शाला हुआ करता था, तब पहली बार पांच पौधे रोपे गए थे। इन रोपे गए पौधों को कुछ लोग उखाड़ ले गए। बहुत दुःख हुआ। तब मैंने प्रयास किया कि विद्यालय के चारों ओर बाउंड्री वाल बन जाये।"

"मगर बाउंड्री वाल बनने में कई साल बीत गए, जब बाउंड्री बन भी गई तो नगर निगम और वन विभाग से अनुरोध पर विद्यालय में पौधे रोपने का काम शुरू किया। मगर इनका हश्र भी वैसा ही था जैसा पहले से चला आ रहा था," आलोक बताते हैं।

साल 2000 में इस विद्यालय को मिडिल का दर्जा मिला और तब कई बड़े छात्रों की संख्या विद्यालय में बढ़ गई। पढ़ाई के साथ इन छात्रों को प्रकृति के साथ जोड़ना आसान हो गया। आलोक ने एक बार फिर विद्यालय में पौध रोपण का प्रयास किया, लेकिन फिर भी उनका बचाव नहीं हो सका।

विद्यालय में पौधों को ट्री गार्ड से किया सरंक्षित। फोटो : सचिन तुलसा त्रिपाठी  

अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए एक बार आलोक एक पौध रोपड़ कार्यक्रम में गए जहाँ उन्होंने अपनी समस्या लोगों के सामने रखी और यहाँ उनके मित्र राकेश रैकवार ने उनकी मदद की।

आलोक बताते हैं, "इस कार्यक्रम से ही मुझे प्रेरणा मिली कि बिना ट्री गॉर्ड के पौध रोपण करना बेमानी है। यह बात वर्ष 2018 की है। कार्यक्रम के बाद विद्यालय में तब 27 पौधे लगाए थे। इसमें आम, आंवला, बादाम और बरगद के पौधे लगाए थे और साथ में ट्री गार्ड भी लगाया। आज ये 10 फ़ीट से 12 फ़ीट तक हो गए हैं। इसके बाद से ये सिलसिला चल पड़ा।"

धीरे-धीरे स्कूल में बच्चे भी समय-समय पर पौध रोपण कार्यक्रम करते और लोगों को भी जागरूक करते। यही वजह है कि आज विद्यालय के करीब साढ़े तीन एकड़ मैदान में 250 से भी अधिक अलग-अलग तरह के पौधे लगे हुए हैं।

लॉकडाउन और फिर कोरोना के डर से इन दिनों स्कूल में भले ही बच्चे नहीं आ रहे हैं। मगर अपनी पौधों की देखभाल करने के लिए आलोक लॉकडाउन में भी पास बनवा कर निरंतर विद्यालय आते रहे, ताकि उनके पौधे न सूख जाएँ।

पौध रोपण के साथ बदली विद्यालय की रंगत । फोटो : सचिन तुलसा त्रिपाठी 

आलोक बताते हैं, "इन पौधों के सुरक्षा की ज़िम्मेदारी बड़ी थी इसलिए लॉकडाउन के तीन माह प्रशासन से पास बनवा कर विद्यालय में आकर पौधों की सिंचाई करना और दोनों समयों में देखभाल करना जैसे काम करता रहा। तब कहीं जा कर यह परिसर आज हरा-भरा नजर आता है।"

फिलहाल अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के साथ लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का आलोक का प्रयास जारी है। उन्हें उम्मीद है कि उनका विद्यालय पर्यावरण संरक्षण में अलग मुकाम बनाएगा।

उत्कृष्ट शिक्षक के लिए मिल चुका है राज्यपाल पुरस्कार


मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग ने वर्ष 2017 में आलोक त्रिपाठी को उत्कृष्ट शिक्षक (राज्यपाल) पुरस्कार दिया था। महादेवा में घुमंतू परिवार के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए आलोक को यह पुरुस्कार दिया गया।

आलोक बताते हैं, "महादेवा में ही कुछ ड्रम बनाने वाले घुमंतू कारीगर आया करते थे। इनमें कई परिवार थे जिनके बच्चे पढ़ने-लिखने लायक थे। इस दल के मुखिया से मैंने आग्रह किया कि यहां के बच्चों के नाम स्कूल में लिखा दें। काफी प्रयासों के बाद उन्होंने पहले तीन बच्चे भेजे, फिर दूसरे साल 12 और बाद में अपने दल के 30 बच्चों को भेजने लगे।"

"उनकी तमाम सरकारी रुकावटों को दूर कर विद्यालय में दाखिला दिलाया था। उन्हें बाहर भी अपना व्यापार करने जाना होता था तो उनके बच्चों के लिए परीक्षा पूर्व तैयारी और परीक्षा दिलाने में भी काफी सहायता की थी। इसी को आधार बना कर सरकार ने राज्यपाल अवार्ड दिया।"

शिक्षक आलोक महदेवा के पास ही धवारी में रहते हैं। कोरोना के संक्रमण के खतरे के कारण जब स्कूल बंद हैं छात्रों की छुट्टियां चल रहीं है तब भी वह रोज़ाना सुबह शाम विद्यालय अपने पौधों को देखने आते हैं। वह बताते हैं कि जब तक स्कूल नहीं खुलते तब तक स्कूल को हरा भरा करने में ही समय लगा रहा हूँ। क्योंकि मस्तिष्क को अच्छा काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की जरूरत होती है इसलिये विद्यालयों में पौधे रोपना जरूरी भी है। 

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