महिलाओं के हक़ की के लिए कार्यरत आली के हुए दो दशक सम्पूर्ण

"यदि महिला होने के नाते हमारे शरीर पर ही हमारा अधिकार नहीं होगा तो और क्या उम्मीद कर सकते हैं।"

Update: 2018-11-18 13:12 GMT

लखनऊ। "रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रेम से भेदभाव का तज़ुर्बा लगभग हर लड़की को होता है। प्रेम से भेदभाव मतलब जब सुरक्षा, प्यार और चिंता का हवाला देकर लड़कियों को शाम के वक़्त घर से बाहर निकलने से मना कर, कई और तरीकों से घरेलु स्तर पर भेदभाव किया जाता है। जब देश की लगभग 50% आबादी- महिलाऐंं ही पुरुषों से पीछे रह जाएंगी तो कहाँ से होगा हमारा विकास?" आली संस्थान की निर्देशक रेनू मिश्रा ने कहा।

उत्तर प्रदेश और झारखंड में प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होकर देश भर में मानवाधिकार संगठनों के लिए कार्यरत संस्थान, आली के 18 नवम्बर को दो दशक पूरे होने पर दो-दिवसीय आयोजित संगोष्ठी के पहले दिन महिला हक़ और अपराधों के लिए कार्य करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गयी।


कार्यक्रम के पहले दिन महिलाओं के हक़, सिमटते दायरे और लगातार बढ़ते संघर्षों की चर्चा के साथ ही उनके समाधान पर भी विमर्श हुआ जिसमें देश के कई प्रांतों से आये वकील और नारीवाद विचारधाराओं वाले लोग सम्मिलित हुए और अलग-अलग समस्याओं व चुनौतियों पर बात की। ग्रामीण महिलाओं के अधिकार, हक़ और जानकारी की कमी पर विशेष ध्यान देते हुए मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार पर ज़ोर दिया गया। "यदि महिला होने के नाते हमारे शरीर पर ही हमारा अधिकार नहीं होगा तो और क्या उम्मीद कर सकते हैं," रेनू आगे कहती हैं।

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19 नवम्बर को देश और विदेश से आयीं नेतृत्वकारी महिलाएं अधिकारों के ज़मीनी सच्चाई से अवगत करा कर मार्जिनल क्षेत्रों की महिलाओं की अनुभव साँझा करेंगी। बीस वर्षों से महिला मुद्दों व अधिकारों के लिए कार्यरत आली के आखिरी सत्र में कुछ नए आंकड़े भी साँझा किये जायेंगे जो चुनौतियों के साथ महिला अधिकारों पर केंद्रित होंगे।

सन 1998 में स्थापित संस्थान आली देश के कई प्रांतों में विभिन्न समूहों के साथ मिल कर महिलाओं के बेहतर भविष्य के लिए कर कर रहा है।  

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