और केरल की महिलाओं ने ये भी करके दिखा दिया...

Update: 2017-05-12 17:21 GMT
नारियल पर चढ़कर लिंगभेद मिटा रही महिलाएं

लखनऊ। केरल में महिलाओं ने वो करके दिखा दिया है, जो अभी तक सिर्फ पुरुषों का काम माना जाता था। साड़ी और सलवार पहनकर नारियल के पेड़ पर चढ़कर ये महिलाएं ना सिर्फ अपने लिए कारोबार के राह खोल रही हैं बल्कि पुरुषों के उस क्षेत्र को भी चुनौती दे रही हैं, जिस पर अब तक सिर्फ उन्हीं का एकाधिकार था। ये महिलाएं नारियल के पेड़ पर चढ़कर सदियों से एक दीवार खड़े कर रहे लिंग भेद को चुनौती दे रही हैं।

देश में अभी तक कहीं भी नारियल के पेड़ पर चढ़ने का काम केवल पुरुष ही करते थे। मेहनत और जोखिम भरा कार्य होने के कारण महिलाओं को इससे दूर रखा जाता था। इस लिहाज से इन महिलाओं को पेड़ पर चढ़ने और परागण करने की ट्रेनिंग देने का श्रेय केन्द्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़ को जाता है। अब महिलाएं पुरुषों की तरह ही नारियल के पेड़ पर आसानी से चढ़कर परागण का काम कर रही हैं।

इस बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान के केंद्रीय रोपड़ फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़ के निदेशक डॉ. पी चौड़प्पा ने बताया, ‘नारियल के मित्र’ नामक कार्यक्रम में महिलाओं को नारियल के पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण देकर उनको परागणकर्ता बनाया गया है। महिलाएं यह काम सीखकर नारियल परागण का काम आत्मविश्वास के साथ कर रही हैं। उन्होंने बताया कि नारियल में अच्छी गुणवत्ता के उत्पादन के लिए कृत्रिम परागण अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए सही वैज्ञानिक प्रक्रिया के साथ ही उचित समय पर मादा फूलों की परागण के लिए निपुण परागणकर्ता भी आवश्यकता पड़ती है।

‘नारियल के मित्र’ नामक कार्यक्रम में महिलाओं को नारियल के पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण देकर उनको परागणकर्ता बनाया गया है। महिलाएं यह काम सीखकर नारियल परागण का काम आत्मविश्वास के साथ कर रही हैं।
डॉ. पी चौड़प्पा, केंद्रीय रोपड़ फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़

चौड़प्पा आगे बताते हैं, ‘इसके लिए परागणकर्ता को पूरी शक्ति, साहस और निपुणता के साथ नारियल की पत्तियों को लांघकर चोटी तक पहुंचना होता है। इसमें नर फूलों से परागकण एकत्र करके तीन से सात दिनों तक मादा फूलों पर परागकण छिड़क कर गुच्छों पर लेबल लगाना होता है। इस काम में परागणकर्ता को महीने में लगभग आठ से दस बार नारियल के पेड़‍ पर चढ़कर परागण का काम करना पड़ता है। संस्थान की ओर से प्रशिक्षित महिलाएं परागण के इस काम को पुरुषों की तरह आसानी से कर रही हैं।’

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रहीं महिलाएं

केरल के कासरगोड़ जिले की केट्टमकुल्ली गांव की राधिका मेनन जो नारियल के पेड़ पर चढ़कर परागण का काम करती हैं, बताती हैं, ‘केन्द्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़ के वैज्ञानिकों ने हमे नारियल के पेड़ पर चढ़ने की ट्रेनिंग दी। क्लाइम्बिंग मशीन का उपयोग करते हमारे समूह की महिलाओं ने 60 लंबे नारियल पेड़ पर चढ़कर परागण का काम सीखा। वहां से ट्रेनिंग पूरी करके अब हम लोग अपने गांव में यह काम करते हुए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनी रही हैं।’

नारियल उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य

निदेशक डॉ. पी चौड़प्पा ने बताया कि नारियल उत्पादन में महिला परागणकर्ताओं की सफलता से अन्य महिलाएं भी इसे आजीविका के लिए अपनाने के लिए उत्साहित हो रही हैं क्योंकि इसमें ज्यादा आय है। इससे उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में इस काम के लिए और ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित कर नारियल का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। महिला को प्रशिक्षित करके महिला परागणकर्ता बनाना, मजदूरों की कमी को दूर करने, महिला सशक्तिकरण, स्त्री-पुरुष समानता, कृषि और ग्रामीण विकास के लिए अच्छा प्रयास है।

यह अन्य नारियल उत्पादक राज्यों के लिए एक अच्छा उदाहरण भी बन रहा है। भारत की गिनती नारियल उत्पादक विश्व के अग्रणी देशों में होती है। देश में केरल का नारियल उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है। देश में कुल नारियल उत्पादन का 24 प्रतिशत केरल के 32 प्रतिशत क्षेत्रफल से प्राप्त किया जाता है।

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