लखनऊ। क्या आपको पता है कि कुलभूषण जाधव की तरह वीर सावरकर का केस भी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चल चुका है। आज वीर सावरकर का जन्मदिवस है तो हम आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं।
एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक व कवि वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 में हुआ था। इन्हें हिंदुत्व का रचयिता कहा जाता था। इन्होंने भारत से जाति व्यवस्था हटाने पर जोर दिया और हिंदुत्व की तरफ लौटने की बात कही।
इन्होंने आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई। 1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे।
वीर सावरकर, रूसी क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे। लंदन में रहने के दौरान सावरकर की मुलाकात लाला हरदयाल से हुई। लंदन में वे इंडिया हाउस की देख-रेख भी करते थे। मदनलाल धींगरा को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने 'लंदन टाइम्स' में भी एक लेख लिखा था। उन्होंने धींगरा के लिखित बयान के पर्चे भी बांटे थे।
1909 में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857' में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित किया।
9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। आजादी के माध्यमों के बारे में गांधीजी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था।
दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
ब्रिटेन और फ्रांस ने ली थी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की मदद
मार्च 1910 में ब्रिटिश पुलिस ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को ब्रिटिशर्स के खिलाफ सक्रिय होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। जैसे ही सावरकर पेरिस से सवार होकर लंदन पहुंचे पुलिस ने उन्हें व्यापारी पोत के जरिए भारत वापस भेज दिया। एसएस मोरिया को उन पर मुकदमा चलाना था। अगसी सुबह मोरिया सात जुलाई 1910 को मार्सैय के फ्रेंच बंदरगाह में पहुंचे लेकिन सावरकर वहां से भाग निकले। बाद में एक फ्रेंच ब्रिगेडियर ने कुछ लोगों की मदद से उन्हें पकड़कर दोबारा जहाज में भेजा।
फ्रांस और ब्रिटेन ने सावरकर की गिरफ्तारी को लेकर जो तथ्य और कानून पर सवाल उठाए जा रहे थे उसे अदालत में पेश करने के लिए सहमति जताई। न्यायाधिकरण ने फैसला किया कि सावरकर को गिरफ्तार करने में और उन्हें ब्रिटिश पुलिस को सौंपने पर अनियमितता दिख रही हैं। इस तरह की परिस्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय कानून पारित करने का कोई नियम नहीं है इसलिए अब ब्रिटेन को सावरकर को फ्रांस भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।