नई दिल्ली (आईएएनएस)। देश के एक तिहाई परिवारों को पिछले एक वर्ष में किसी न किसी तरह के भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा है, इसके बावजूद छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में गिरावट दर्ज हुई है। हाल ही में आए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।
नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय द्वारा गुरुवार को जारी किए गए सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अध्ययन 'इंडियन करप्शन स्टडीज' में कहा गया है कि 2017 में 31 फीसदी परिवारों को जनसेवाएं हासिल करने में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा है, जबकि 2013 में यह 53 फीसदी था।
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रिपोर्ट में कहा गया है, ''2005 से 2017 के बीच जनसेवाओं के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के बीच मान्यताओं और अनुभवों में निश्चित तौर पर कमी आई है।'' देश के 20 राज्यों में 200 ग्रामीण एवं शहरी बस्तियों के 3,000 परिवारों को इस अध्ययन में शामिल किया गया। इसके अलावा अध्ययन में जनसेवा के 10 क्षेत्रों- बिजली, स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा, जल आपूर्ति, बैंकिंग, पुलिस, न्याय व्यवस्था, आवास और कर सेवाएं - को शामिल किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, ''2017 में देश के 20 राज्यों में परिवारों को 10 तरह की जनसेवाएं हासिल करने के लिए रिश्वत के तौर पर 6,350 करोड़ रुपये देने पड़े, जबकि 2005 में यह राशि 20,500 करोड़ रुपये थे।'' राज्यवार परिवारों द्वारा भ्रष्टाचार का सामना करने के मामले में कर्नाटक में 77 फीसदी के साथ सबसे ऊपर रहा, जबकि आंध्र प्रदेश में 74 फीसदी, तमिलनाडु में 68 फीसदी, महाराष्ट्र में 57 फीसदी, जम्मू एवं कश्मीर में 44 फीसदी और पंजाब में 42 फीसदी परिवारों को भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा।
सीएमएस के चेयरमैन एन. भास्कर राव ने बताया कि जनसेवाएं हासिल करने के लिए रिश्वत देने के पीछे 2005 से लेकर 2017 तक मूल कारण वही हैं और यह संकेत करता है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार पर रोकथाम की ओर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। रिपोर्ट जारी करते हुए देबरॉय ने कहा कि इस अध्ययन में लोगों द्वारा दैनिक कार्यो के दौरान जिन भ्रष्टाचारों का सामना करना पड़ता है, उसे ध्यान में रखा गया। उन्होंने कहा कि वृहत स्तर के भ्रष्टाचार अमूमन चुनावी सुधार और प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन से जुड़े होते हैं।
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