झारखंड में बंद हुई डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना पहले भी हो चुकी थी फेल

Update: 2018-08-11 13:30 GMT

झारखंड के रांची जिले के नगरी ब्लॉक में सार्वजनिक वितरण प्रणाली(पीडीएस) के तहत शुरू की गई डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) को भारी विरोध के बाद खत्म कर दिया गया है। इस योजना को पायलट योजना के रूप में इस ब्लॉक में 4 अक्टूबर 2017 को लागू किया गया था। इस योजना के तहत पीडीएस के लाभार्थियों के खाते में अनाज के पैसे सीधे भेजे जाने थे। इसी तरह का पायलट प्रोजेक्ट चंडीगढ़ समेत तीन केंद्र शासित प्रदेशों में फेल हो चुका है।


झारखंड में लागू करते समय बताया गया था कि इससे गरीबों को अनाज आसानी से मिल सकेगा और व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर होगा। लेकिन इसके उलट लाभार्थियों की दिक्कतें बढ़ गईं। योजना लागू होने के लगभग 22 दिनों बाद यानि 26 अक्टूबर को डीबीटी हटाओ राशन बचाओ नारे के साथ मुख्यमंत्री आवास तक रैली निकाली गई। बाद में हुए सर्वे में भी पता चला कि क्षेत्र के लगभग 97 प्रतिशत लोगों ने डीबीटी का विरोध किया था।

योजना लागू होने से पहले राशन की दुकान से लाभार्थियों को 1 रुपए प्रति किलो के हिसाब से राशन मिल जाता था। लेकिन डीबीटी लागू होने के बाद सरकार ने 31 रुपए प्रति किलो के हिसाब से पैसा लाभार्थियों के खाते में भेजना शुरू कर दिया। लाभार्थी बैंक से जाकर पैसा आने की जानकारी लेते, फिर प्रज्ञा केंद्र जाकर यह पैसा निकालते, उसमें अपना 1 रुपया जोड़कर राशन की दुकान से राशन लेते। इसमें उनके समय और पैसे का नुकसान तो हो ही रहा था दूसरी दिक्कतें भी सामने आ रही थीं। जैसे, समय पर पैसा खाते में न आना, मृत व्यक्ति के खाते में पैसा आना, बुजुर्गों के खाते में पैसा आने पर उन्हें बैंक तक जाने में परेशानी होना वगैरह। इस योजना का विरोध करने वालों का कहना है कि जब रांची के नजदीक बसे इस ब्लॉक में इस योजना को लागू करने में इतनी परेशानी आ रही है तब इससे देश के दूर-दराज के इलाकों में रहने वालों को कितनी दिक्कत होती इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

लेकिन यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने इस तरह की योजना लागू की है। केंद्र इससे पहले भी सितंबर 2015 में तीन केंद्र शासित प्रदेशों चंडीगढ़, पुदुचेरी और दादरा नागर हवेली में पायलट के तौर पर डीबीटी लागू कर चुकी है। लभगग एक साल बाद यानि मई 2016 में यह बंद कर दी गई। इसके नतीजे भी झारखंड के नगरी ब्लॉक जैसे ही रहे।  

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