पोल्ट्री फार्मिंग में किसान कैसे लागत कम करके अधिक मुनाफा कमा सकते हैं; एक्सपर्ट से जानिए

मुर्गी पालन से देश का एक बड़ा तबका जुड़ा हुआ है, मुर्गी पालन में सबसे अधिक खर्च फीड का ही आता है, साथ वैक्सीनेशन को लेकर भी लोगों में जागरुकता कमी है। ऐसे में लोगों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे उनकी लागत कम हो जाए; गाँव पॉडकास्ट ऐसी ही कई जानकारी दे रहे हैं पोल्ट्री एक्सपर्ट डॉ प्रवीण कुमार सिंह।

Update: 2024-04-15 11:29 GMT

पोल्ट्री इंडस्ट्री के बारे में बताइए, इसमें कितने तरह के व्यवसाय होते हैं।

जब पोल्ट्री इंडस्ट्री की बात होती है तो इसका दायरा बहुत बड़ा होता है। ज़्यादातर जब पोल्ट्री इंडस्ट्री के बारे में बात करते हैं तो लोग चिकन के बारे में सोचते हैं; लेकिन ये चिकन तक सीमित नहीं है। भारत में भी छोटे स्तरों पर अलग अलग तरह की फार्मिंग होती है, जैसे कि बतख फार्मिंग होती है, गिनी फाउल फार्मिंग और बटेर फार्मिंग होती है, लेकिन ये एक सीमित क्षेत्र में ही होती है।

अगर चिकन की बात करते हैं तो इसे आप दो तरीके से देख सकते हैं; एक जो बैकयार्ड फार्मिंग सिस्टम है जो छोटे परिवारों के लिए ये फार्मिंग बहुत उपयोगी है। लेकिन इसमें आप बर्ड के ऊपर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है, वो घर की रसोई से निकलने वाले कचरे को खा कर भी ग्रो करती हैं और एक छोटे परिवार को आजीविका का साधन देती हैं।

वहीं दूसरी तरफ पोल्ट्री इंडस्ट्री इतनी बड़ी होती है, जहाँ आप लाखों करोड़ों बर्ड्स की बात करते हैं।

इसमें दो तरह की इंडस्ट्री होती है, एक ब्रायलर जो कि मीट के लिए पाली जाती है, जबकि दूसरी लेयर जो अंडा उत्पादन के लिए तैयार की जाती है। इन दो के अलावा ब्रीडर बर्ड फार्मिंग की जाती है, जहाँ लेयर और ब्रायलर के चूजे तैयार किए जाते हैं।

पोल्ट्री फार्मिंग से मक्का और सोयाबीन उगाने वाले किसानों को कैसे फायदा होता है?

खेती के बहुत सारे बायप्रोडक्ट होते हैं जो इंसानों के लिए नहीं होता है, इसी को पोल्ट्री फीड के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मक्का, सोयाबीन की खली, सरसों की खली पोल्ट्री फीड के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

किसान मुर्गियों की ग्रोथ के लिए क्या करें?

जब कोई छोटा किसान पोल्ट्री फार्मिंग शुरु करता है तो उसे चाहिए किसी अच्छी कंपनी का फीड खरीद ले। ऐसा फीड जिसे पहले लोग इस्तेमाल कर रहे हों और उसे मोटेलटी कम हो रही हो।


रही बात मैनेजमेंट की तो पोल्ट्री में मैनेजमेंट की बहुत ज़रुरत होती है। इसके लिए किसी भी एक्सपर्ट की सलाह ले सकते हैं वो आपको मैनेजमेंट की पूरी जानकारी दे देगा कि आपको किन बातों का ध्यान रखना है। वैक्सीनेसन ने लेकर फीड तक की पूरी जानकारी उपलब्ध करा देंगे। बस आपको सीखते रहना चाहिए।

फीड का खर्च कैसे कम किया जा सकता है?

शुरुआत में किसान किसी दूसरे पर आश्रित होता है, जो उसे फीड उपलब्ध कराता है। ऐसे में सिर्फ यही कह सकते हैं कि अच्छी गुणवत्ता का फीड खिलाएँ भले ही हो अधिक मँहगा।

समय के साथ जैसे-जैसे ग्रो करते जाते हैं; अपना खुद का फीड बनाना शुरु कर सकते हैं। ख़ासकर वो लोग जो पोल्ट्री के साथ खेती भी करते हैं और अपने खेत में ही फीड के लिए अनाज उगा सकते हैं।

कितने तरह के फीड होते हैं और इनमें किस तरह का अंतर होता है?

फीड दो तरह के होते हैं; एक कच्चा यानी मैश फीड और एक पैलेट फीड। आप मैश फीड से शुरुआत कर सकते हैं, नहीं तो आप खुद फसल उगाते हैं तो किसी कंपनी में प्रोडक्शन कॉस्ट देकर पैलेट फीड बनवा सकते हैं।

रही बात दोनों में अंतर की तो मैश फीड एक तरह का कच्चा दाना होता है, इसमें कई बार बर्ड्स ऊपर का मक्का खा लेती हैं, पाउडर नीचे रह जाता है। रही बात तो पैलेट फीड ज्यादा बेहतर होता है, जो कि ये प्रोसेस्ड होता है।

पोल्ट्री फार्मिंग में वैक्सीनेशन कितना ज़रुरी होता है?

पोल्ट्री फार्मिंग में सबसे ज़रूरी वैक्सीनेशन ही होता है, अलग-अलग समय में अलग-अलग बीमारियाँ आती हैं। अगर ब्रायलर की बात करें तो इनकी लाइफ साइकिल 35-45 दिनों की होती है। इसलिए इसमें कुछ चुनिंदा बीमारियाँ होती हैं, अगर वैक्सीन का इस्तेमाल करते हैं तो आपके बर्ड्स पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं।

लेयर और ब्रीडर लंबे समय के लिए होती हैं तो उनको बचाने के लिए वैक्सीन सबसे ज़रूरी होती है। इनको बचाने के लिए बायो सिक्योरिटी बहुत ज़रूरी होती है, लेकिन ये सभी के लिए संभव नहीं होता है। बायो सिक्योरिटी अगर नहीं कर पाते हैं तो बीमारियों से बचने के लिए वैक्सीन सबसे अहम हो जाती है।

बायो सिक्योरिटी क्या होती है?

बायो सिक्योरिटी पोल्ट्री फार्मिंग के लिए बहुत ज़रूरी होता है, बायो सिक्योरिटी में बहुत सी बातों का खयाल रखना होता है। बायो सिक्योरिटी का मतलब होता है कि आप पोल्ट्री बर्ड को वायरस और बैक्टीरिया से कैसे बचाएँ।

पोल्ट्री बर्ड में होने वाली बीमारियाँ ऐसी नहीं होती हैं जो हवा के साथ आ जाएँ। इसमें बीमारियाँ किसी न किसी साधन या व्यक्ति के ज़रिए आती हैं। आपको किसी तरह से ये सुनिश्चित करना है कि किसी भी तरीके से कोई बीमारी न आ पाए।

पोल्ट्री बर्ड में मौसम का असर क्या होता है?

पोल्ट्री फार्मिंग में मौसम भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अहम भूमिका निभाता है। इंडिया का मौसम पोल्ट्री फार्मिंग के लिए बढ़िया माना जाता है। क्योंकि यहाँ पर चार से अधिक सीजन होते हैं; यहाँ दो बार गुलाबी सर्दी आती है। उस समय पोल्ट्री बहुत तेजी से ग्रो करती है। लेकिन साल में दो बार ऐसा भी समय आता है जब वृद्धि धीरे हो जाती है।

एक दिसंबर-जनवरी सर्दी का मौसम और दूसरा गर्मी का समय जो कि कितना बढ़ जाए नहीं पता होता है। इनसे बचने के लिए किसानों को सर्दी और गर्मी से बचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

अगले भाग में पढ़िए क्या मुर्गियों को इंजेक्शन देकर बड़ा किया जाता है? अंडा वेज होता है नॉन वेज?

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