होली की 200 साल पुरानी परंपरा: जहाँ टूट जाती हैं जाति-धर्म की दीवारें

जैदी मंजिल में गुझिया की महक, ढोलक और मजीरा की थाप पर भांग की ठंडाई में डूबे रंग बिरंगे होरियारो के 'बिरहा गीतों' की महफ़िल सजती है; जो एक दूसरे को गले लगकर होली मुबारक के साथ पूरी होती है।

Update: 2024-03-24 14:51 GMT

भले ही सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में साम्प्रदायिकता का रंग चढ़ा हुआ है; सुबह से शाम तक न्यूज चैनल पर कहीं हिन्दू तो कहीं मुस्लिम खतरे में दिखाए जा रहे हैं, लेकिन इन सब से अलग कुछ ऐसा भी हो रहा है, जिन्हें पढ़कर आपको अच्छा लगेगा।

चलिए आपको ले चलते हैं उत्तर प्रदेश के संगम की नगरी प्रयागराज! जहाँ आपसी सद्भाव के रंग में अभी भी वही रौनक है जो दशकों पहले हुआ करती थी।

प्रयागराज मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में हंडिया प्रयागराज तहसील में है, उतराव गाँव; यहाँ की होली दूर-दूर तक मशहूर है। यहाँ स्थित लगभग चार बीघे में फैली 'जैदी मंजिल' ने पिछले दो सौ सालों से अधिक होली के त्यौहार देखे हैं, होली के त्यौहार में जैदी मंजिल में गुझिया की महक के साथ ढोलक और मजीरा की थाप पर भांग की ठंडाई में डूबे रंग बिरंगे होरियारो के 'बिरहा गीतों ' की महफ़िल अपने पूरे शबाब पर जाकर एक दूसरे के गले लगकर होली मुबारक के साथ पूरी होती है।

सही से पता नहीं कब हुई इस परम्परा की शुरुआत

जैदी मंजिल के वारिस सैय्यद खादिम अब्बास जैदी बताते हैं, "ये सही बता पाना कि हमारे यहाँ इस परम्परा की शुरुआत कब से हुई थोड़ा मुश्किल है; लेकिन ये परम्परा दो सौ साल से अधिक पुरानी है। हमारे पर दादा सैय्यद वाहिद बख्श को होली की ये परम्परा उनके पिता सैय्यद मीर बख्श हुसैन से मिली और मीर साहब को उनके वालिद से , इसके बाद हम जैदी मंजिल में होने वाले होली के जलसे को विरासत की संभाले चले आ रहे हैं।"


वो आगे कहते हैं, "हमारे परिवार के सदस्य अलग अलग राज्यों में काम के सिलसिले में रहते हैं, लेकिन जब से होश संभाला है यही देखते आये हैं कि होली पर पूरा परिवार साल में एक बार जरुर इकट्ठा होता है और होली का त्योहर पूरे धूम धाम के साथ मनाया जाता है। हमारी दिली इच्छा है कि हमारे पूर्वजो की बनाई हुई ये परम्परा हमारी अगली पीढ़ी भी वैसे ही सहेजे और संभाले जैसे हम लोग अब तक करते आए हैं।"

बारह ग्राम पंचायतों से निकलती है होरियारों की बारात

जैदी मंजिल के वारिश सैय्यद अहमद अब्बास जैदी उतराव में ही रहते हैं, अहमद बताते हैं, “हमारे यहाँ बारह ग्राम पंचायत जिनमें समोधी पुर , नौबाज़ार , दौडन, निमिथारिया , रमगढ़ा, बोबतपुर, महमजिया, करूहुआ, चका, डूढवा, महरूफ पुर ग्राम पंचायतों में होलिका दहन के दूसरे दिन होरियारों की बारात ढोल नगाड़ों और रंगों की गठरियों की साथ निकलती है जो हर गाँव में जाती है। पूरा दिन रंग खेलकर शाम के वक्त इस बारात का समापन जैदी मंजिल के प्रांगन में होता है।"

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जैदी मंजिल में हफ़्तों पहले शुरू हो जाती है होली की तैयारियाँ

अहमद बताते हैं, "घर और आँगन की साफ़ सफाई हफ़्तों पहले शुरू कर दी जाती है। साल में एक बार होली पर ही पुताई और रंग रोगन का काम कराया जाता है। पापड़ बन्ने का काम आलू की खुदाई के साथ ही शुरू हो जाता है, होरियारों को खिलाई जाने वाली गुझिया और मिठाई घर पर ही हलवाई लगाकर बनाई जाती है।"

"होली में हर साल लगभग एक हजार से ज्यादा होरियारों की बारात आती है, ख़ुशी के बात ये है कि ये संख्या हर साल बढती रही है। होरियों का स्वागत अबीर, गुलाल, दूध और हल्की भांग से बनी ठंडाई, पापड़, गुझिया आदि से किया जाता है। फिर होरी (होली के पारंपरिक गीत ) गाये जाते हैं और गले मिलकर एक दूसरें को होली की मुबारकबाद देने के बाद एक दूसरे के घर जाकर होली मिलने का रिवाज है जो हमेशा पूरा किया जाता है, "उन्होंने आगे कहा।

बचपन से जाते हैं जैदी मंजिल

उतराव गाँव निवासी लगभग 85 वर्षीय पृथ्वी पाल रावत बताते हैं, “जैदी मंजिल में होली का जलसा और होरियारो की 12 पंचायतों की बारात यहाँ के लिए कोई नई बात नहीं है। मैं बचपन में अपने पिताजी के साथ हर साल होली के त्योहार में पहली बार गया था और शायद मेरे पिताजी मेरे बाबा के साथ गए होंगे। हमारे यहाँ होली की बारात जैदी मंजिल जाए बिना पूरी नहीं मानी जाती है।

साम्प्रदायिक तनाव में भी धूमधाम से मनाई गयी होली

पौडन गाँव के 90 साल के ननकू महाजन साल बताते हैं, "साल 2014-15 की बात होगी, कई जगह साम्प्रदायिक दंगे हो गये थे। लगभग पूरे प्रदेश में तनाव का माहौल था; लेकिन हमारे 12 पंचायतों की होली और जैदी मंजिल पर होने वाले जलसे पर इसका कोई प्रभाव नहीं था।"

हँसते हुए बताते हैं, 'जैदी साहब की तरफ से पापड़ , गुझिया और ठंडाई में कोई कटौती नहीं की गयी थी। पुलिस अधिकारी इस बारात पर नजर और सुरक्षा के लिए लगे हुए थे लेकिन यहाँ होली हमेशा की तरह उतने ही प्रेम और उत्साह के साथ मनाई गयी। हमारे यहाँ की होली की खासियत ही यही है कि हम होली के दिन गिले शिकवे भूल कर एक दूसरे को गले लगा लेते हैं और बच्चों को सिखाते हैं कि त्यौहार का रंग कभी फीका न पड़ने देना।"

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