मैं आप लोगों को एक मंत्र देता हूँ। इसे अपने दिल में छाप लो और हर सांस पर इसके निशान दिखने चाहिए। यह मंत्र है करो या मरो। - महात्मा गांधी
8-9 अगस्त 1942 की रात शुरू हुए उस आंदोलन में महात्मा गांधी ने ये शब्द कहे थे थे जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़े हिला कर रख दी थीं। भारत छोड़ो आंदोलन, गांधी की अगुवाई में शुरू हुए इस आंदोलन में कश्मीर से कन्याकुमारी व कच्छ से कामरूप से लोग शामिल हुए थे।। आइए जानते हैं कैसे शुरू हुआ था ये आंदोलन-
आठ अगस्त 1942 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (एआईसीसी) की मीटिंग बॉम्बे (अब मुंबई) में रखी गई। इस मीटिंग का मुख्य एजेंडा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करना था।
उस समय पूरा विश्व द्वितीय विश्व युद्ध से जूझ रहा था वहीं दूसरी ओर भारत आंतरिक लड़ाई से। ब्रिटिश सरकार ने आजादी देने का वादा दोहराए जाने के बाद, भारत अभी भी औपनिवेशिक शासन के अधीन था। इसके मद्देनजर 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भारत से ब्रिटिश शासन के जल्द से जल्द खात्मे का संकल्प लिया।
घोषणा में कहा गया था कि स्वतंत्र भारत ‘स्वतंत्रता के संघर्ष और नाज़ीवाद, फाँसीवाद और साम्राज्यवाद के आक्रमण के खिलाफ अपने महान संसाधनों द्वारा सफलता का आश्वासन देगा।’
भारतीयों के बीच पनप रहे गुस्से को शांत करने के लिए सर स्टैफॉर्ड क्रिप्स को मार्च 1942 में भारत भेजा गया था। क्रिप्स मिशन का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस में एक मैदान में एकत्रित होकर विश्व युद्ध के दौरान भारत के सहयोग को प्राप्त करना था। लेकिन बातचीत असफल रही।
इस तरह आठ अगस्त को एआईसीसी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया।
इस तरह तय हुआ भारत छोड़ो का नारा
इस आंदोलन के दौरान कई नारों का सुझाव दिया गया लेकिन सिर्फ ‘भारत छोड़ो’ ही तय किया गया। इसके अलावा गेट आउट को महात्मा गांधी को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उनके मुताबिक यह शब्द बेहद असभ्य लगा। रीट्रीट या विद-ड्रॉ भी अस्वीकार कर दिया जिसे सी राजगोपालाचारी ने सुझाया था। तब सामाजवादी कांग्रेस नेता और तत्कालीन बॉम्बे के पार्षद युसुफ मेहरली ने गांधी को एक धनुष दिया जिस पर भारत छोड़ो अंकित था और यही बाद में नारा बन गया था।
पूरे देश से लाखों लोग आंदोलन के सहयोग में सड़कों पर उतर आए और उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने तक जेल में बंद कर दिया गया।
देश के अलग-अलग हिस्सों में आजादी के लिए आंदोलन में लोगों के गुस्से की अलग-अलग तस्वीर सामने आ रही थी। अरुणा आसिफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान पर भारत का झंडा फहराया जहां पर भारत छोड़ो आंदोलन का संकल्प लिया गया था।