नौ महीनों से बंद टेनरियों का बुरा हाल, आरोप-प्रत्‍यारोप में फंसा कारोबार

Update: 2019-07-22 07:19 GMT

मिथिलेश दुबे/रणविजय सिंह

कानपुर (उत्तर प्रदेश)। कानपुर-उन्नाव की सैकड़ों टेनरियां बंद पड़ी हैं। अब तक हजारों लोगों का रोजगार छिन चुका है। करोड़ों रुपए का व्यवसायिक नुकसान हो चुका है। गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए कुंभ मेले के समय बंद हुई टेनरियों को 15 मार्च से ही शुरू होना था लेकिन 17 जुलाई तक काम शुरू नहीं हो पाया।

ऐसो क्यों हो रहा है, चमड़ा फैक्ट्रियों में काम क्यों नहीं शुरू हो पा रहा, इसके लिए जहां कानपुर जल निगम टेनरी संचालकों को दोषी बता रहा है तो वहीं फैक्ट्री मालिक जल निगम और सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं।

कुंभ मेले के समय गंगा को स्वच्छ रखने के लिए एनजीटी के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 18 नवंबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक कानपुर और उन्नाव की चमड़ा फैक्ट्रियों को बंद करा दिया था। 15 मार्च से इन्हें शुरू होना था, लेकिन सरकार और जल निगम कानपुर की ओर से महज 26 टेनरियों को ही चलाने का आदेश दिया है।

ऐसे में सवाल यह भी है लगभग 20 लाख लोगों को रोजगार देने वाला कानपुर का चमड़ा कारोबार क्या अब पूरी तरह से बंद हो जाएगा? टेनरी संचालकों का तो यही कहना है। इस आठ महीने के बंदी से अब तक इस कारोबार को 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। हालांकि नगर निगम कानपुर का कहना है कि इसके लिए टेनरी कारोबारी खुद जिम्मेदार हैं।

जल निगम का आरोप, मानकों के विपरीत हो रहा काम

कानपुर के जाजमऊ में स्थिति जल निगम कानुपर के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि टेनरी संचालक मानकों के विपरीत काम कर रहे हैं। एनजीटी का आदेश था कि उनकी फैक्ट्री में प्राथमिक ट्रीटमेंट करने के बाद ही पानी आगे छोड़ा जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।

अधिकारी ने हमें कुछ साक्ष्य भी दिखाए। टेनरियों से आने वाले पानी में ठोस अपशिष्ट कच्चा चमड़ा भी बहकर आ रहा था जिसे ट्रीटमेंट के जरिए जल निगम अलग कर रहा था। जबकि प्राथमिक ट्रीटमेंट में फैक्ट्रियों से बस तरल पदार्थ ही निकलना चाहिए।


वे आगे कहते हैं कि अभी मात्र 26 टेनरियों में काम चल रहा है फिर भी 10.78 एमएलडी सिवरेज रोज आ रहा है, जबकि ये मानकों के अनुसार 1.8 एमएलडी ही आना चाहिए था, मतलब 100 गुना ज्यादा फ्लो है प्रतिदिन का। ऐसे में समझा जा सकता है कि अगर सभी टेनरिया चलने लगे तो कितना सिवरेज निकलेगा।

चार साल पहले यानी 2014 में जाजमऊ और कानपुर के क्षेत्रों में 402 रजिस्टर्ड टेनरी यानी चमड़े के कारखाने संचालित थे। लेकिन प्रदूषण को लेकर उठते सवालों के कारण अब महज 260 टेनरियों ही चल रही हैं। बाकि लगातार घाटे के कारण या तो बंद हो गईं या फिर जिला प्रशासन द्वारा सीज कर दी गईं।

फिर इसका विकल्प क्या है? इसके बारे में वे कहते हैं कि सरकार की ओर से टेनरी मालिकों को कानपुर के नजदीक ही रमईपुर में बसाने का मास्टर प्लान तैयार किया गया था, लेकिन विरोध के चलते ही इस पर बात आगे नहीं बढ़ी। कोई भी टेनरी मालिक वहां जाना नहीं चाहता। क्‍योंकि यहां गंगा नदी है और गंगा में कुछ भी बहाया जा सकता है जिसे कोई मॉनिटर नहीं करेगा। ऐसे में उनके लिए यहां आसानी है।

टेनरी संचालाकों ने कहा- सीईटीपी ठीक काम नहीं करता

वहीं, टेनरी संचालकों का कहना है कि इसके हम दोषी नहीं है। जब कोई बीमार होता है तो उसका इलाज कराया जाता है न कि उसे मार दिया जाता है।

स्माल टेनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हफीजुर रहमान (बाबू भाई) आरोप लगाते हुए कहते हैं, "टेनरी संचालक हर साल सरकार को 78 लाख रुपए टैक्स के रूप में देते हैं। कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) ठीक से नहीं चलता, इसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल मई में जाजमऊ के सीईटीपी और पंपिंग स्टेशनों को ठीक करने के लिए 17.68 करोड़ रुपए का बिल पास किया था, उसका पता नहीं क्या हुआ।"

बाबू भाई आगे कहते हैं, "सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है। हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गये हैं। यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब कानपुर का चमड़ा कारोबार बस इतिहास के पन्नों में रह जाएगा।"


सीईटीपी के ठीक से न चलने की बात पर जल निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर घनश्याम द्विवेदी कहते हैं, ''हम ट्रीट कर रहे हैं और ट्रीट हो भी रहा है। हमारे यहां 9 एमएलडी का सीईटीपी है, फिलहाल टेनरियों से 11 से 12 एमएलडी फ्लो आ रहा है। यानी की डिस्‍चार्ज फुल है। इसका मतलब है कि बंद होने के बाद भी टेनरिया चल भी रही हैं, नहीं तो इतना फ्लो कैसे आता। इनके बिजली बिल निकलवाए जाएं तो साफ हो जाएगा कि यह चल रही हैं या नहीं।''

जल निगम कानपुर के ही एक अधिकारी दावा करते हैं कि टेनरियां सिर्फ कागजों पर बंद हैं। रात होते ही सभी टेनरियां चल पड़ती हैं। आप सड़क किनारे कई ट्रक खड़े देख सकते हैं, यह सभी कच्‍चे माल से भरे हुए हैं।

फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार के कानपुर, उन्नाव तथा इनके आसपास के इलाकों में स्थित चमड़े की फैक्ट्रियों को सशर्त खोलने का आदेश तो दे दिया है। सरकार ने फैक्ट्रियों के सामने यह शर्त रखी है कि वे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करेगी। हालांकि इस आदेश के बाद भी सिर्फ 26 टेनरिया भी चल रही हैं। बाकी की सभी टेनरिया बंद पड़ी हैं।

हाल ही में कानपुर के जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत ने कहा बताया था कि, चमड़े की फैक्ट्रियों के अपशिष्ट को सीधे गंगा नदी में गिरने से रोकने के लिए 617 करोड़ रुपये की परियोजना को प्रदेश सरकार ने मंजूरी दे दी है। इस राशि में से 480 करोड़ रुपये का उपयोग एक 20 एमएलडी प्रबंधन संयंत्र स्थापित करने में, वहीं शेष राशि का उपयोग संयंत्र के प्रबंधन में किया जाएगा।  

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