खेती को कारखाने से जोड़ने से बढ़ेगा गांवों में रोजगार और किसानों की आय             

Update: 2017-11-19 17:30 GMT
खेत और किसान।

नई दिल्ली (भाषा)। खेती-किसानी को सीधे कारखाने और उत्पादन को प्रभावी मूल्य श्रृंखला के जरिए प्रसंस्करण से जोड़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि के साथ किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वृद्धि के मुकाबले पर्याप्त रोजगार नहीं बढ़ने के बीच नीति आयोग की रिपोर्ट में यह बात कही गयी है।

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव का रोजगार तथा वृद्धि पर प्रभाव शीर्षक वाले परिचर्चा पत्र में यह भी कहा गया है कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों में ऐसे उपाय किए जाने की जरुरत है जिससे मासिक वेतन वेतन वाली मजदूरी के नए एवं बेहतर अवसर सृजित हो सके।

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, कृषि अर्थशास्त्री एस के श्रीवास्तव, नीति आयोग में सलाहकार जसपाल सिंह द्वारा संयुक्त रूप से लिखी रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार दशक (1970-71 से 2011-12) के दौरान देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सात गुना बढ़ोतरी हुई लेकिन रोजगार दोगुना भी नहीं बढ़ा। वर्ष 2004-05 के मूल्य पर 1970 से 2011-12 के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था 3199 अरब रुपए से बढ़कर 21,107 अरब रुपए की हो गयी लेकिन उसमें रोजी-रोजगार के अवसर 19.1 करोड़ से बढ़कर 33.6 करोड़ तक ही पहुंचे हैं।

रिपोर्ट में गांवों में रोजगार बढ़ाने के बारे में सुझाव देते हुए कहा गया है, खेती-बाडी को सीधे कारखाने से जोड़ने की जरुरत है, साथ ही उत्पादन को प्रभावी मूल्य श्रृंखला के जरिए प्रसंस्करण से जोड़ने तथा ठेका खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि के साथ किसानों की आय बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। पत्र में यह भी कहा गया है, देश को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में भी ऐसे उपक्रम करने की जरुरत है जिससे वहीं काम नए एवं बेहतर अवसर सृजित हो सके। यह वांछनीय है क्योंकि यह पहले से ही देखा जा रहा है कि कृषि से श्रमिकों के हटने से कुछ कृषि गतिविधियां तथा किसानों की आय प्रभावित हुई हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ ही कृषि में कुशल कर्मचारियों की गंभीर कमी है जबकि विशेष प्रकार के कार्यों तथा नई प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए ऐसे श्रमिकों की जरुरत है।

कार्यबल को कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में ही रोजगार देने की जरुरत पर बल देते हुए इसमें कहा गया है, विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी गहन उत्पादन को तरजीह तथा स्वचालन, रोबोट, इंटरनेट आफ थिंग्स जैसे उभरती प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन से रोजगार के जाने के खतरे को देखते हुए कार्यबल को कृषि से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में स्थानातंरित करने के परंपरागत रख पर पुनर्विचार की जरुरत है। रिपोर्ट के मुताबिक श्रमिकों के कृषि के मुकाबले दूसरे कार्यों को तरजीह देने का कारण कम मजदूरी, हाथ से काम का दबाव तथा रोजगार की अनिश्चितताएं हैं।

इसमें कहा गया है, इन तीनों समस्याओं का उत्पादन और फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में नये एवं अनूठे रख को अपनाकर समाधान किया जा सकता है, इसके लिए ज्ञान और कौशल आधरित कृषि तथा फसल कटाई के बाद कृषि मूल्य वर्द्धन के लिए नये कृषि माडल के विकास और संवर्धन की जरुरत है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, आधुनिक खेती-बाडी, मूल्य वर्द्धन तथा प्राथमिक प्रसंस्करण में जरुरी कौशल के विकास के लिये प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) अहम भूमिका निभा सकती है।

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