देश के बंटवारे का दर्द और अपनों को खोने की बेबसी की दास्ता बयां करता पार्टिशन संग्रहालय

Update: 2017-06-11 12:19 GMT
बंटवारे के बाद पलायन करते लोग।

अमृतसर। 71 बरस पहले आजादी के साथ ही देश के नक्शे पर खिंची गई एक अनदेखी लकीर की वजह से अपने ही देश में परदेसी हो गए लाखों लोगों के इतिहास के सबसे बड़े पलायन और उससे जुड़े घटनाक्रम को यहां एक गेरुआ इमारत की चंद दीवारों में सहेजा गया है, जो यादों के ऐसे पन्ने खोलती हैं, जिसके लफ्ज कहीं आंसुओं से धुले हैं तो कहीं खून से तरबतर।

पंजाब के इस ऐतिहासिक शहर में स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग से कुछ ही दूरी पर स्थित ‘पार्टिशन म्यूजियम' की विभिन्न दीर्घाओं में देश के बंटवारे से जुड़े घटनाक्रम को बयान करने की कोशिश की गई है। अखबारों की बहुत सी कतरने और तस्वीरें उस वक्त की कैफियत बताती हैं। अखंड भारत का एक नक्शा बंटवारे से पहले के स्वरुप का गवाह है।

क्या है संग्रहालय में

संग्रहालय की दीवारों पर लगी तस्वीरों में कहीं अपने घरबार छोड़कर पैदल और बैलगाड़ी पर आते लोगों के रेले हैं तो कहीं पहले से लदी रेलगाड़ी पर सवार होने की जिद में मशक्कत करते लोगों की भीड़। कोई बूढ़ी मां को कंधे पर बिठाए महफूज जगह की तलाश में निकल पड़ा है तो कहीं कोई मां भीड़ में अपने बिछड़े बच्चों को ढूंढ रही है। कुछ तस्वीरें अपना सब कुछ गंवा चुके लोगों की बेबसी बयां करती हैं। तमाम तस्वीरों में मंजर भले जुदा है, लेकिन बंटवारे का दर्द और अपनों को खोने की बेबसी लगभग एक ही जैसी है।

रातोंरात अपने ही देश में परदेशी हो गए लोग

देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली, लेकिन उसके बाद लाखों लोगों को एक अनदेखी सीमा ने दो हिस्सों में बांट दिया। लाखों लोगों के लिए उनका अपना देश पराया हो गया। पंजाब और बंगाल में रातोंरात लोग अपने ही देश में परदेसी हो गए और फिर शुरु हुआ इतिहास का सबसे बड़ा पलायन। यह संग्रहालय उन्हीं अभागों की दास्तां बयां करता है।

दुनिया में नहीं है ऐसा संग्रहालय

संग्रहालय की सीईओ मल्लिका अहलुवालिया ने कहा, ‘‘बंटवारे पर यह अपनी तरह का पहला संग्रहालय है। दुनिया में कहीं ऐसा कोई और संग्रहालय नहीं है।'' उन्होंने बताया कि संग्रहालय में 5000 से अधिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं।

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