राष्ट्रपति भवन का होगा पहली बार विरासत संरक्षण

Update: 2017-03-25 11:42 GMT
राष्ट्रपति भवन।

नई दिल्ली (भाषा)। अपनी स्थापना के 85 साल पूरे कर चुके राष्ट्रपति भवन को विरासत स्थल का दर्जा मिलने के बाद पहली बार ‘हेरिटेज कंजर्वेशन प्लान (विरासत संरक्षण योजना)' के तहत यहां काम शुरु किया गया है।

विरासत स्थलों के संरक्षण से जुड़ी अग्रणी संस्था इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) की निगरानी में केंद्रीय लोकनिर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) संरक्षण योजना को मूर्त रुप देगा। परियोजना से जुड़े इंटेक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भवनों के संरक्षण से पहले होने वाला सर्वेक्षण आईआईटी रुड़की द्वारा किया जा रहा है। सर्वेक्षण में अत्याधुनिक ‘3डी लेजर स्कैनिंग' तकनीक से यह पता लगाया जा रहा है कि राष्ट्रपति भवन के किस हिस्से में संरक्षण का क्या और कितना काम किया जाना है।

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दुनिया भर में ऐतिहासिक महत्व के विरासत स्थलों में संरक्षण कार्य की रुपरेखा 3डी लेजर स्कैनिंग की मदद से ही तय की जाती है। इसमें वक्त के थपेडों से इमारत में आयी अतिसूक्ष्म दरार और क्षरण का बिल्कुल सटीक पता चल जाता है। परियोजना की शुरुआत साल 2013 में राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा सीपीडब्ल्यूडी के मार्फत इंटेक से राष्ट्रपति भवन की संरक्षण योजना बनाने का अनुरोध करने के साथ हुई थी। विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए प्रचलित अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक इंटेक ने समूचे परिसर की दो चरणों में पूरी होने वाली संरक्षण योजना को सीपीडब्ल्यूडी को साल 2015 में सौंप दिया था।

इस पर काम शुरु करने की मंजूरी मिलते ही कार्ययोजना के मुताबिक 330 एकड़ में फैले समूचे राष्ट्रपति भवन परिसर के बाहरी हिस्से में पहले चरण का संरक्षण कार्य पिछले साल शुरु किया गया। यह प्रेसीडेंट इस्टेट का वह हिस्सा है जिसमें राष्ट्रपति सचिवालय, कुछ ब्रिटिशकालीन बैरक, बंगले और आजादी के बाद निर्मित कर्मचारी आवासीय परिसर शामिल हैं।

अधिकारी ने बताया कि इस हिस्से में अधिकांश नई इमारतें होने के कारण इनकी 3डी लेजर स्कैनिंग नहीं करानी पड़ी लिहाजा बाहरी हिस्से का संरक्षणकार्य एक साल में पूरा हो गया। दूसरे चरण में राष्ट्रपति भवन की मुख्य इमारत का संरक्षण कार्य किया जाएगा। इस हिस्से में ऐतिहासिक महत्व की 70 चिह्नित इमारतों की 3डी लेजर स्कैनिंग सर्वेक्षण रिपोर्ट आईआईटी रुड़की से 31 मार्च तक मिलने की उम्मीद है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर इंटेक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बना कर सीपीडब्ल्यूडी को सौंपेगी। इसमें परियोजना की लागत और समय का जिक्र होगा। डीपीआर के मुताबिक संरक्षण का काम इंटेक की निगरानी में सीपीडब्ल्यूडी पूरा करेगा।

पुरातत्व कानून के मुताबिक 100 साल पुरानी इमारत को ‘विरासत स्थल' का दर्जा मिल जाता है। इसके साथ ही इन इमारतों की देखरेख का काम पुरातत्व विभाग के हाथ में आ जाता है लेकिन हाल ही में इंटेक के सुझाव पर भारत सरकार ने 1947 के पहले निर्मित सभी इमारतों को विरासत भवन की श्रेणी में सूचीबद्ध कर दिया है। इस तरह दिसंबर 1929 में निर्मित राष्ट्रपति भवन भी विरासत भवन की श्रेणी में आ गया। इसलिए इसके संरक्षण कार्य की जरुरत महसूस की गई।

इस पहल की अहम बात यह है कि राष्ट्रपति भवन का कंजर्वेशन प्लान भी संरक्षित योजना के दायरे में होगा जिससे भविष्य में भी राष्ट्रपति भवन के संरक्षण में कंजर्वेशन प्लान का सख्ती से पालन सुनिश्चित हो सके। इससे इस ऐतिहासिक इमारत का लंबे समय तक विरासत महत्व बरकरार रखा जा सकेगा।

इसमें राष्ट्रपति भवन में आजादी के बाद नई इमारतों के निर्माण, बिजली संयत्र, संचार उपकरण, एसी और सौर पैनल आदि के लिए किए गए बदलाव को मुख्य इमारत से दूर करने का प्रस्ताव भी संरक्षण योजना में शामिल होगा। साथ ही समूचे परिसर की बागवानी योजना का भी मूल रुप बरकरार रखने का प्रस्ताव लागू करने पर जोर दिया जाएगा। पूरी कार्ययोजना में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि इससे देश की सबसे महत्वपूर्ण इस इमारत के सुरक्षा इंतजामों पर कंजर्वेशन प्लान कतई बाधक न बने।

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