जानिए कौन थी 'हंटरवाली'

Update: 2019-01-08 05:11 GMT
फियरलेस नाडिया

जब 30 का दशक ख़त्म हो रहा था उस समय दुनिया आने वाले विश्व युद्ध की विभीषिका से डरी हुई थी। ये वो समय था दुनिया ऐसी सुपर हीरो की तलाश में थी जो युद्ध के बाद की परेशानियों से उन्हें बचाए। इस समय सुपर मैन (1938), बैटमैन (1939) और वंडर वुमेन (1941) जैसे किरदार अस्तित्व में आए। इसी समय भारत में भी एक महिला स्क्रीन पर आई। पहले एक राजकुमारी की तरह, फिर एक नकाब पहने, हाथ में चाबुक पकड़े, तलवार, बंदूक और यहां तक कि खाली हाथों से खलनायकों को धूल चटाते हुए। यह साल था 1935, जब देश की असली स्टंट वुमेन फियरलेस नाडिया स्क्रीन पर आई थीं।

भूरे बालों, नीली आंखों वाली नाडिया की पहली ही फिल्म हिट हो गई और 40 के दशक में उन्होंने बॉलीवुड पर राज किया। फियरलेस नाडिया का जन्म 8 जनवरी 1908 को ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में हुआ था। उनके पिता स्कॉटलैंड के और मां ग्रीस की थीं। उनके पिता हरबर्ट इवेंस ब्रिटेन की आर्मी में वालंटियर थे, और छोटी नाडिया का बचपन भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत (खैबर पख्तूनख्वा अब पाकिस्तान में) में बीता था।

कम उम्र में ही नाडिया को सिंगर और डांसर बनने का शौक था और वो अपने पिता से स्कॉटलैंड का डांस सीखती थीं। नाडिया अपने बचपन से ही दूसरे बच्चों से कुछ अलग थीं। जहां उनकी उम्र के दूसरे बच्चे नर्म मुलायम खिलौनों से खेलते थे नाडिया का समय एक पोनी (छोटे कद का घोड़ा) के साथ बीतता था। उन्होंने कम उम्र में ही घुड़सवारी, मछली पकड़ना जैसी चीज़े सीख ली थीं।

1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उनके पिता की मौत हो गई, जिससे उनका परिवार पेशावर में जाकर बस गया। बचपन में नाडिया का नाम मैरी इवेंस था। अपने दोस्तों के साथ एक टूर के दौरान उन्हें एक अर्मेनियाई भविष्य बताने वाला मिला जिसने ये सुझाव दिया कि वो अपना नाम बदल लें और नए नाम की शुरुआत 'एन' से हो। इसलिए उन्होंने अपना नाम नाडिया चुना।

अपने करियर की शुरुआत में नाडिया ने सबसे पहले बॉम्बे सेना में और उसके बाद नौसेना की दुकानों में बतौर सेल्सवुमन नौकरी की। उन्होंने ज़ार्को सर्कस में भी काम किया और जिमानास्ट सीखा। यहीं से उन्हें स्टंट में रुचि जगी। लाहौर के एक सिनेमा मालिक इरुच कांगा ने उन्हें एक प्रदर्शन करते हुए देखा और वाडिया मूविटोन नामक एक प्रमुख प्रोडक्शन हाउस के मालिक जेबीएच वाडिया व होमी वाडिया से उनको मिलवाया। नाडिया की निडर छवि से प्रभावित होकर वाडिया ने उनको हिंदी सीखने के लिए कहा और अपनी आने वाली छोटी फिल्मों 'देश का दीपक' व 'नूर -ए-यमन' में एक छोटा रोल दिया। पहली फिल्म में उन्होंने एक दास लड़की की भू्मिका निभाई और दूसरी में एक राजकुमारी की। दोनों ही किरदारों को दर्शकों ने खूब पसंद किया।

इसके बाद 1935 में आई उनकी फिल्म 'हंटरवाली' ने उनका जीवन बदल दिया। इस फिल्म में वाडिया मूवीटोन ने उन्हें लीड हीरोइन लिया था। यह पहली फिल्म थी जिसमें नाडिया की बिना डर वाले, उनकी खिलाड़ी क्षमता और स्टंट कला सामने आई थी। हालांकि वो एक यूरोपियन महिला थीं लेकिन भारतीयों ने उन्हें खुले दिल से स्वीकार किया। ये वो दौर था जब भारत की जनता में देश की आज़ादी की लड़ाई को लेकर भावनाएं उग्र थीं। ऐसे में एक महिला की स्टंट वुमने वाली छवि उन्हें खूब भा रही थी।

अगले दशक में, नाडिया ने 50 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, उनमें से हर एक में उन्होंने खुद स्टंट किया। झूमर से झूलते हुए और चट्टानों से कूदते हुए, एक तेजी से गाड़ी के ऊपर लड़ने और शेर से दोस्ती करना, उन्होंने यह सब आसानी से किया। इस दौरान उन्होंने कई बड़े कलाकारों के साथ काम किया और भारतीय सिनेमा में सबसे ज़्यादा पैसे कमाने वाली अभिनेत्री बन गईं। देश के कई बेल्ट, बैग, जूते और कपड़े के कई ब्रांड ने उनकी शिकारी की छवि को लगाया।

1961 में नाडिया ने होमी वाडिया से शादी कर ली। होमी वाडिया ने ही उन्हें फियरलेस नाडिया नाम दिया था, जब नाडिया एक शूट के दौरान ऊंची छत से कूद गई थीं। 1968 में 60 साल की उम्र में उन्होंने होमी वाडिया की फिल्म 'खिलाड़ी' में एक गुप्त एजेंट की भूमिका निभाई, जो उनकी आखिरी फिल्म थी। 1993 में उनके पड़पोते रियाद विंची वाडिया ने उनके ऊपर एक डॉक्युमेंट्री बनाई जिसका नाम 'फीयरलेस : द हंटरवाली' था। 9 जनवरी 1986 को 88 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।

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