मोदी राज में खादी की बल्ले-बल्ले, एक साल में खादी और ग्रामीण उत्पादों ने की 50,000 करोड़ की बिक्री

Update: 2017-05-01 12:17 GMT
खादी की बिक्री 2016-17 में बढ़कर 2,005 करोड़ रुपये की हो गई।

नई दिल्ली। आमतौर पर लोग ग्रामीण उत्पादों और खादी पर ज्यादा पैसे नहीं खर्च करना चाहते। लेकिन पिछले साल पहली बार लोगों की नज़र में कम चढ़ने वाले इन दोनों उत्पादों ने कमाल करते हुए एक साल में 50,000 करोड़ की बिक्री की। प्रधानमंत्री मोदी ने जबसे सत्ता संभाली है तब से लगातार वह खादी और ग्रामोद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैँ। और अब उनका प्रयास रंग लाया है।

हैरान होने वाली बात यह है कि गांव में तैयार होने वाले सामान जैसे, साबुन, शहद, कॉस्मेटिक्स, फर्नीचर और जैविक खाद्य पदार्थों की बिक्री में काफी वृद्धि हुई है, इनमें से कई उत्पाद ऐसे हैं जो महिलाएं बनाती हैं।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) द्वारा एकत्रित डाटा के मुताबिक, गांव में बनने वाले उत्पादों या ग्रामोद्योग ने पिछले आर्थिक साल में 24 प्रतिशत की बढ़त के साथ 50,000 करोड़ की बिक्री की है। वहीं, खादी के उत्पादों की बिक्री में 33 प्रतिशत का उछाल आया है। 2015-16 में खादी उत्पादों की बिक्री जहां 1,635 करोड़ रुपये की हुई थी वहीं 2016-17 में यह बढ़कर 2,005 करोड़ रुपये की हो गई। जबकि पूरे केवीआईसी का टर्नओवर ने रोजमर्रा का सामान बनानेवाली देश की कई कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। अकेले खादी की बिक्री भी बॉम्बे डाइंग और रेमंड जैसे मशहूर ब्रैंड से मुकाबला कर रही है। हालांकि, इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2016-17 के अपने आंकड़ों का खुलासा नहीं किया है। अब आयोग का लक्ष्य खादी की बिक्री वित्त वर्ष 2018-19 तक दोगुनी कर 5,000 करोड़ रुपये करने का है।

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, ब्रांड एक्सपर्ट हरीश बिजूर कहते हैं कि पहले सिर्फ नेता ही खादी के कुर्ते और टोपी को वरीयता देते थे लेकिन अब बाकी लोग भी खादी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं जिससे खादी उद्योग को काफी फायदा हुआ है।

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अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इन उत्पादों के पहचान मिल रही है। बिजूर कहते हैं कि 21 देशों पर किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि योगा के बाद खादी ही सबसे पसंदीदा भारतीय ब्रांड है। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सरकारी संस्थान अब इसके निर्यात पर भी ध्यान दे रहा है। केवीआईसी के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना के मुताबिक, हम अभी प्रत्यक्ष निर्यात नहीं कर रहे हैं लेकिन जल्द ही इस दिशा में काम करेंगे और यह खादी को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनाने में काफी मदद भी करेगा।

केवीआईसी का मॉडल बिल्कुल अलग है। वे सरकारी दुकानों के साथ-साथ दूसरी दुकानों के द्वारा भी अपने उत्पाद बेचते हैँ। यह भी भारत की कम आंकी जाने वाली कंपनियों में से एक है जिसमें आगे लोगों के लिए काफी संभावनाएं हैं।
अरविंद सिंघल, संस्थापक, रिटेल कंसल्टेंसी टेक्नोपेक

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उत्पाद की गति धीमी पड़ी है फिर भी पिछले वित्त वर्ष के दौरान, खादी उत्पादन में 31% की बढ़ोतरी हुई और यह 1,396 करोड़ रुपये हो गया, जबकि ग्रामीण उद्योगों में 23% की बढ़ोतरी हुई और यह 41,110 करोड़ रुपये रहा।

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