कभी आंखों की खूबसूरती को चार चांद लगाने वाले बरेली के सुरमे की मांग घटी

Update: 2018-03-31 15:08 GMT
समय के साथ-साथ नए-नए सौंदर्य प्रसाधनों ने सुरमे की मांग को कम कर दिया है।

बरेली। चेहरे की खूबसूरती को चार चांद लगाने वाला सुरमा कभी बरेली की पहचान हुआ करता था, लेकिन समय के साथ-साथ नए-नए सौंदर्य प्रसाधनों ने सुरमे की मांग को कम कर दिया है।

“पिछले कई सालों से सुरमा की मांग कम हो गई। दो-तीन दिन में एक दो ग्राहक आ जाते हैं। सुरमें के अलावा दुकान में बाम, मरहम, आई लोशन ये सब ज्यादा बिकता है।” ऐसा बताते हैं, बरेली के सुरमा विक्रेता सुलेमान अहमद (65 वर्ष)।

करीब 200 साल पहले बरेली में हुई थी सुरमा बनाने की शुरुआत

बरेली में सुरमा बनाने का कारोबार लगभग 200 साल पहले दरगाह-ए-आला हजरत के पास नीम वाली गली में हाशिमी परिवार ने की थी। तब यहां सिर्फ एक ही कारखाना था जो एम हसीन हाशिमी करते थे। वहीं, बड़ा बाजार में सुरमें की दुकान चला रहे मोहम्मद अजरुद्दीन (40 वर्ष) बताते हैं, “पिछली कई पीढ़ियों से सुरमे का कारोबार यहां हो रहा है। सुरमे की मांग को बढ़ाने के लिए उनके स्टाइल को भी बदला गया है, लेकिन पैकिंग की शानदार डिजाइनिंग भी लोगों को नहीं भाती। मेलों में लोग सुरमा खरीदते हैं।”

सुरमा बनाने के लिए सऊदी अरब से कोहिकूर नामक पत्थर लाया जाता है। पत्थर को छह माह गुलाब जल में, फिर छह माह सौंफ के जल में डुबोकर रखा जाता है। सूखने पर घिसाई की जाती है। इसके बाद इसमें सोना, चांदी और बादाम का अर्क मिलाया जाता है और तब सुरमा बनाया जाता है।

कई बीमारियों के उपचार में सहायक

आंखों में मोतियाबिंद, सबलबाई, रतौंधी, नाखूना, पानी आने समेत कई प्रकार की बीमारियों के उपचार के लिए कई तरह के सुरमा हैं। सुरमा के फायदे के बारे मोहम्मद काज़िम बताते हैं, “सुरमा आंखों व चेहरे की खूबसूरती बढ़ाता ही है, साथ ही आंखों को कई तरह की बीमारियों से भी बचाता है। कई इसे आंखों की दवाई के लिए प्रयोग करते हैं।

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