लखनऊ। ऐसा माना जाता है कि बुजुर्गों का सम्मान हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है लेकिन काम सिर्फ मानने से नहीं चलता। वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवयरनेस डे यानि विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस की पूर्व संध्या पर आए आंकड़ों के मुताबिक़ तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि अब भी भारतीय बुजुर्गों के सम्मान को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं।
हेल्पएज इंडिया द्वारा कराए गए सर्वे में 44 प्रतिशत बुजुर्गों ने यह कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है जबकि 53 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि भारतीय समाज बुजुर्गों के साथ भेदभाव करता है। यह अध्ययन 4,615 बुजुर्गों (2,377 पुरुषों और 2,238 महिलाओं) पर किया गया है। भारत के बगीचों के शहर यानि बंगलुरू में रहने वाले 70 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि पार्क में टहलना तक उनके लिए किसी बुरे सपने की तरह होता है।
चिंता का विषय है कि 64 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बुजुर्गों के प्रति कठोर होने से दूर रहना आसान है। इसमें सबसे ज़्यादा 92 प्रतिशत भुवनेश्वर में, उसके बाद 85 प्रतिशत गुवाहाटी में, 75 प्रतिशत लखनऊ में, हैदराबाद में 74 प्रतिशत, बंगलुरू में 71 प्रतिशत, चेन्नै में 64 प्रतिशत, कोलकाता में 62 प्रतिशत और मुबंई में 61 प्रतिशत लोगों का ऐसा मानना है जबकि दिल्ली में सिर्फ 16 प्रतिशत ही ऐसा मानते हैं।
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हेल्पएज इंडिया ने दिल्ली में बुधवार की शाम 'भारत कैसे अपनी बुजुर्गों के साथ व्यवहार करता है - एक राष्ट्रीय अध्ययन 2017' साझा किया। इस दौरान हेल्पएज इंडिया के मख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मैथ्यू चेरियन ने कहा कि आंकड़ों ने मुझे चौंका दिया। बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक संवेदनशील मुद्दा है। पिछले कुछ सालों से हम घरों के बंद दरबाज़ों के पीछे बुजुर्गों के साथ होने वाले बुरे बर्ताव पर अध्ययन कर रहे हैं। इस साल हमने सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ किस तरह का वर्ताव होता है इस बारे में जानने की कोशिश की।
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ज़्यादातर मापदंडों पर बंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर और चेन्नई में सबसे खराब पांच शहरों के रूप में सामने आए जहां बड़ों के साथ सार्वजनिक स्थानों पर बुरा व्यवहार हुआ। हालांकि हमेशा कठोर रहने वाला दिल्ली इस मामले में नरमदिल साबित हुआ। दिल्ली में सिर्फ 23 प्रतिशत बुजुर्गों के साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर अभद्रता के मामले सामने आए लेकिन सकारी अस्पतालों के स्टाफ द्वारा 36 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिकों से दुर्व्यवहार के मामले सामने आए और इस मामले में बंगलुरू 22 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
सेवानिवृत्ति के बाद काम करने की इच्छा को भी अध्ययन में शामिल किया गया, इसमें सामने आया कि लगभग 14 प्रतिशत लोग काम जारी रखने के पक्ष में थे जिसमें से 60 प्रतिशत का कहना था कि उन्हें वह नौकरी नहीं मिली जिसके लिए उन्होंने आवेदन किया था।
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