परंपरा को बचाने के लिए 12 साल बाद जनी शिकार पर निकलीं महिलाएं 

Update: 2017-04-29 18:07 GMT
शिकार के लिए निकलतीं महिलाएं।

लखनऊ। पुरुषों के ड्रेस में परंपरागत रूप से सजधज कर हाथों में तीर-कमान, भाला, गुलेल, कुल्हाड़ी और लाठी से लैस होकर जब दर्जनों महिलाएं अलग-अलग रोड पर निकली तो नजारा देखने लायक था।

शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची समेत वहां के विभिन्न गावों और शहरों में जनी शिकार उत्सव मनाया गया। झारखंड के आदिवासियों का अपनी परंपरा को बचाने का यह अनूठा त्योहार है। आदिवासी समाज में शिकार की समृद्ध परंपरा रही है। इस परंपरा को जीवित रखने के लिए हर साल उरांव आदिवासी समाज की महिलाएं और लड़कियां शिकार पर निकलती हैं, जिसे जनी शिकार कहा जाता है।

जनी शिकार महिलाओं की वीरता का परिचायक है। इस बारे में कहा जाता है कि मुगलों से लोहा लेने में पुरुषों की सेना ( लड़ाके ) जब कम पड़ गए तो आदिवासी महिलाओं ने शत्रु सेना से लोहा लेने के लिए पुरुषों का वेश धारण करके मुकाबला किया था।

माना जाता है कि मुगल सेना और जनी सेना के बीच 12 सालों तक जंग चलती रही और आखिर में मुगलों को पीछे हटना पड़ा था। आदिवासी इतिहासकार बताते हैं कि तबसे यह परंपरा चल रही है। हालांकि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम लागू होने के बाद जनी शिकार में जानवरों के शिकार पर रोक है लेकिन इसके बाद भी इसमें महिलाएं शिकार करती हैं। जनी शिकार में जिन जानवरों का शिकार किया जाता उसको पकाकार सामूहिक रूप से सभी लोग खाते हैं।

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