विश्व गौरैया दिवस: फुदकती गौरैया फिर आएगी आंगन

Update: 2019-03-20 06:17 GMT

लखनऊ। चीं-चीं, फुदकन, चिरैया ऐसे कई नामों से आप ने बचपन में जिस गौरैया को आंगन और मुंडेर पर चहकते देखा होगा वो अब कम ही दिखाई देती हैं। पक्के मकान, बदलती जीवनशैली और मोबाइल रेडिएशन से यह धीरे-धीरे विलुप्त जा रही है।

गौरैया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए पूरे विश्व में हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया है। इस दिवस को पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। लगातार घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी।

गौरैया के संरक्षण के बारे में लखनऊ जू के पशुचिकित्सक और पर्यावरण विज्ञानी बताते हैं, डॉ अशोक कश्यप बताते हैं, "जब तक लोग गौरैया के संरक्षण के लिए जागरूक नहीं होंगे तब तक इनका संरक्षण नहीं किया जा सकता। गौरैया ज्यादातर छोटे-छोटे झाड़ीनुमा पेड़ों में रहती है लेकिन अब वो बचे ही नहीं है। अगर आपके घर में कनेर, शहतूत जैसे झाड़ीनुमा पेड़ है तो उन्हें न काटे और गर्मियों में पानी को रखें।"

विश्व भर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं। नेचर फॉरेवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के विशेष प्रयासों से पहली बार वर्ष 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। महाराष्ट्र के नासिक जिले के मोहम्मद दिलावर वर्ष 2008 से गौरैया के संरक्षण को लेकर काम कर रहे हैं।

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दिलावर बताते हैं, गौरैया को कैसे बचाए जाए इसके लिए हमारी संस्था लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रही है। पिछले 20-25 वर्षों से हमारी जीवनशैली में बहुत ज्यादा बदलाव आया है। अभी जो पेड़ लगते हैं उसमें 90 फीसदी विदेशी है जिसमें गौरैया अपना घर नहीं बना सकती। खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग से भी इन पर काफी असर पड़ रहा है। दूसरे पक्षियों की तरह गौरैया पर्यावरण का अहम हिस्सा हैं।" पिछले चार साल से इनकी संस्था ऐसे लोगों को सम्मानित भी कर रही है जो पर्यावरण को बचाने का काम कर रहे हैं।

केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मानता है कि देशभर में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में शामिल हैं। गौरैया के जीवन संकट को देखते हुए वर्ष 2012 में उसे दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्जा भी दिया गया था।

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आंखों से ओझल हो रही गौरेया के बारे में यूपी स्टेट एनवायरेनमेंटल ऐससमेंट एथोरिटी के पर्यावरणविद् डा. एम.जेड हसन ने बताते हैं, "गौरेया काकून, बाजरा, धान पके हुए चावल के दाने आदि खाती है लेकिन अत्याधुनिक शहरीकरण के कारण उसके प्राकृतिक भोजन के स्त्रोत समाप्त होते जा रहे हैं। उनके आशियाने भी उजड़ रहे हैं। यही नहीं आजकल के बने घरों में घोसले बनाने की जगह ही नहीं रह गई है। गाँवों में भी घर बनने के तरीकों में बदलाव आया है इसीलिए गोरैया लगातार कम हो रही हैं।"


अपनी बात को जारी रखते हुए डा. हसन बताते हैं,''हजारों मोबाइल टावर अब शहरों और गाँव में लगाए जा रहे हैं जो गौरेया के लिए प्रमुख खतरा है। इलेट्रो मैगनेटिक किरणें उनको उत्तेजित करती हैं और उनकी प्रजनन क्षमता को कम करती है।"

ब्रिटेन की 'रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्डस' ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को 'रेड लिस्ट' में डाला है। वहीं इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि इनकी संख्या आंध्र प्रदेश में 80 फीसदी तक कम हुई है और केरल, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इसमें 20 फीसदी तक की कमी देखी गई है। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में यह गिरावट निश्चित रूप से 70 से 80 प्रतिशत तक दर्ज की गई है।

ऐसे बचा सकते हैं गौरैया

  • अगर गौरैया आपके घर में घोसला बनाए तो उसे बनाने दें उसे हटाए न।
  • रोजाना अपने आंगन, खिड़की, बाहरी दीवारों पर उनके लिए दाना-पानी रखें।
  • गर्मियों में गौरैया के लिए पानी रखें।
  • उनके लिए जूते के डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकियों में छेद करके इनका घर बना कर उन्हें उचित स्थानों पर लगाए।
  • प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। 

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