लॉक डाउन में किसानों का तरबूज नहीं पहुंच पाया सऊदी अरब, सस्ती दरों में बेचने को मजबूर हुए किसान

Update: 2020-05-19 09:26 GMT

भोपाल। कम लागत में अच्छी पैदावार के लिए इन किसानों ने तरबूज की नई वैराईटी इजराइल तकनीक से लगाई जिससे ज्यादा मुनाफा हो सके लेकिन लॉकडाउन के चलते ये मुनाफा नहीं कमा सके। 

मध्यप्रदेश के धार जिले के पिंजराया गाँव के किसान कोरोना वायरस संक्रमण के चलते बहुत परेशान हैं। इन किसानों ने तरबूज की खेती में जो नवाचार किए गए थे उसका लॉकडाउन के चलते उन्हें लाभ नहीं मिल सका। अच्छी पैदावार हुई पर सस्ती दरों में इस तरबूज को सऊदी अरब के बजाए भोपाल में बेचना पड़ा।

पिंजराया गांव के किसान लगातार कुछ वर्षों से तरबूज-खरबूज की खेती कर रहे हैं। यहाँ इजराइल की तकनीक को खासा महत्व दिया जाता है। इस तकनीक से कम पानी में रसीला फल पूरी मिठास के साथ पकता है। इस बार इस गांव के किसानों ने तरबूज की नई किस्म बाहुबली तरबूज की खेती की थी। अच्छी पैदावार होने के बावजूद किसानों को निराशा हुई।

किसानों को नहीं मिल पा रहा है तरबूज का भाव.

किसान नारायण पाटीदार ने बताया, "हमारे यहां पर उन्नत खेती करने को लेकर विशेष रुप से ध्यान दिया जाता है। इसलिए गांव में कुछ सालों से तरबूज की खेती व्यापक स्तर पर हो रही है। हमें गुजरात की एक कंपनी ने संपर्क करके तरबूज की नई किस्म के बारे में जानकारी दी। तरबूज की इस किस्म को इस बार हमने दो बीघे में लगाया था। पैदावार भी काफी अच्छी हुई लेकिन जिस कारण से हमने इसका उत्पादन लेने की सोची थी, वह लाभ हमें नहीं मिल पाया।"

सामान्य तरबूज का वजन तीन से पांच किलाे होता है। लेकिन इस तरबूज का वजन सात से दस किलो तक रहता है। इस तरबूज को सऊदी अरब के लोग बहुत पसंद करते हैं। वहां इसकी मांग पूरे साल रहती है। सालभर मांग के कारण किसान इसकी खेती में रूचि ले रहे हैं। कम पानी में पैदा होने वाला ये तरबूज 70-75 दिन में तैयार हो जाता है। लम्बे समय तक यह खराब नहीं होता इसमें मुनाफा भी सामान्य तरबूज से ज्यादा मिलता है। 

"तरबूज बाजार में थोक भाव में पांच से छह रुपए किलो में बिकता है। लेकिन ये तरबूज 20 रु किलो तक बिक जाता है। लॉकडाउन में जब इस तरबूज को बाहर नहीं भेज पाए तो मजबूरन भोपाल के एक व्यापारी को बेचना पड़ा। इससे हमें नुकसान हुआ है, " नरायण पाटीदार ने फसल के नुकसान को लेकर बताया।

जिस तरबूज की सऊदी अरब में मांग थी लॉकडाउन में मजबूरन किसानों को भोपाल में बेचना पड़ रहा है.

यह तरबूज लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है। किसान उत्तम पाटीदार तरबूज की इस नई किस्म की कई खूबियाँ बताते हैं, "बीज में ही ज्यादा पैसा खर्च होता है वैसे ज्यादा लागत नहीं है। कम पानी में मल्चिंग बेड पद्धति से इसका उत्पादन किया जाता है। इसके पक जाने के बाद इसे 5000 किलोमीटर दूर तक परिवहन द्वारा भेजा जा सकता है। निर्यात करने लायक क्वालिटी है, क्योंकि इस पर यदि भारी वजन भी रखा जाए तो उससे यह क्षतिग्रस्त नहीं होता है। जबकि सामान्य तरबूज जल्द ही फट जाता है।"

कोल्ड स्टोरेज में भी इसे रखने पर खराब नहीं होता है। सबसे खास विशेषता यह है कि यह लंबे समय तक गर्मी में रखने के बावजूद भी इसके स्वाद में परिवर्तन नहीं आता है। दूसरे तरबूजों की तुलना में इसमें मिठास अधिक रहती है।  उत्तम पाटीदार बताते हैं, "तरबूज को इस बार सऊदी अरब भेजने के लिए कुछ समय से तैयारी कर रहे थे। निर्यात करने के लिए हम संपर्क करना शुरू कर चुके थे। लॉक डाउन के चलते ऐसा नहीं हो पाया। इस तरबूज को हम 20 रूपये  किलो बेच कर दोगुना मुनाफा कमाना चाहते थे, वह नहीं मिल पाया है।"

इसी गाँव के किसान सुनील पाटीदार ने बताया, "इस फसल में पानी बहुत कम लगता है। ये 70 से 75 दिन में तैयार हो जाती है। लॉकडाउन में परिवहन सुविधा नहीं मिलने के कारण हमने औने पौने दाम में इसे भोपाल में ही बेच दिए।" 

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