पश्चिम बंगाल: चाय बागानों में मजदूरों का उबाल बनेगा चुनावी मुद्दा
पश्चिम बंगाल में सात चरणों में चुनाव होने हैं। चाय बागान वाले क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा चाय के बंद पड़े बगान और श्रमिकों का न्यूनतम वेतन तय नहीं होना हो सकता है। उत्तर बंगाल में चाय बगान वाले क्षेत्र दार्जिलिंग, तराई और दोआर्स हैं
लखनऊ। पश्चिम बंगाल के चाय बागनों में काम करने वाले मजदूर लंबे समय से न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने पिछले कुछ महीनों में इस समस्या को सुलाझाने का प्रयास भी किया लेकिन बात नहीं बनी। पश्चिम बंगाल में दो चरणों में मतदान होने हैं। बंगाल में चार ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां चाय के बागान ही आय के प्रमुख साधन हैं। इन क्षेत्रों के तीन लाख से ज्यादा श्रमिक इन बागानों में काम करते हैं।
केंद्रीय श्रम संगठन सीटू के संयोजक जियाउल आलम चाय बागानों में कार कर रहे मजदूरों की आवाज लंबे समय से उठाते रहे हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया "प्रदेश सरकार न्यूनतम वेतन देना ही नहीं चाहती।
सरकार ने जबकि इसके लिए वादा किया था। बागानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बहुत खराब है। ऊपर से बहुत से चाय बागान बंद भी हो गये हैं। बागानों में काम करने वाले मजदूर घर का क्या अपना भी खर्च नहीं चला पा रहे हैं।"
पश्चिम बंगाल में सात चरणों में चुनाव होने हैं। चाय बागान वाले क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्य मुद्दा चाय के बंद पड़े बगान और श्रमिकों का न्यूनतम वेतन तय नहीं होना हो सकता है। उत्तर बंगाल में चाय बगान वाले क्षेत्र दार्जिलिंग, तराई और दोआर्स हैं।
यहां के करीब 300 बागानों में ऐसे तीन लाख श्रमिक काम करते हैं जो समय-समय पर बेरोजगार हो जाते हैं। तराई और दोआर्स के क्षेत्र में पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दार्जिलिंग और कूचबिहार जिले और असम का कुछ हिस्सा शामिल है।
यह भी पढ़ें- पाकिस्तान में बढ़ी भारतीय चाय की मांग
कूचबिहार और अलीपुरद्वार में 11 अप्रैल को मतदान होगा जबकि जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और राजगंज में 18 अप्रैल को चुनाव होंगे। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से जुड़ी ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वे लोग चाय बागानों में न्यूनतम वेतन लागू करने की मांग लंबे समय से करते आए हैं लेकिन यह मुद्दा सुलझा नहीं है।
चाय बागान के सूत्रों के अनुसार समाचार एजेंसी भाषा ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा गठित किए गए न्यूनतम वेतन परामर्श समिति में इस मुद्दे पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया है लेकिन अभी तक इस पर कुछ भी तय नहीं हुआ है।
सूत्रों ने भाषा को बताया कि परामर्श बोर्ड को चाय बगान के मालिकों और ट्रेड यूनियनों ने अपनी मांगों से जुड़े दस्तावेज सौंपे हैं और अब यह मामला सरकार के पास है। सूत्रों ने बताया कि चाय के सबसे बड़े उत्पादक राज्य असम में न्यूनतम वेतन लागू करने से जुड़ा फैसला नहीं लिया गया है।
प्रदेश की ममता बनर्जी सरकार 2015 चाय बागानों में काम कर रहे मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी सलाहकार कमेटी का गठन किया था। कमेटी में 29 लोगों को शामिल भी किया गया। तब से लेकर पिछले साल तक 10 से ज्यादा बैठके हो चुकी हैं लेकिन मामला जस का तस है।
फिलहाल पश्चिम बंगाल के चाय कर्मचारियों को राशन के अलावा 176 रुपए प्रतिदिन के हिसाब दिया जा रहा है। लेकिन मजदूर संगठन आरोप लगा रहे हैं कि प्रदेश सरकार इसमें में धांधली कर रही है।
इस बारे में चाय मजदूरों के लिए का कर रहे संगठन ज्वाइंट फोरम के संयोजक जेबी तमांग कहते हैं "पहले बागान मालिक राशन उपलब्ध कराते थे, लेकिन अब राज्य सरकार पीडीएस के तहत प्रत्येक परिवार को महीने में 35 किलो चावल दो रुपए किलो की दर से उपलब्ध करा रही है।
पिछली बार जो समझौता हुआ था उसके अनुसार न्यूनतम मजदूरी 289 रुपए तय हुई थी। इसमें से 132.50 रुपए का नकद भुगतान होना था। बाकी के 157 रुपए राशन, मेडिकल, जलावनी लकड़ी और अन्य सुविधाओं के बदले में थे। इसमें राशन का हिस्सा 24 रुपए का है। जबकि बागान मालिक नौ रुपए ही दे रहे हैं।"
पुलवामा, विकास और जाति-वर्ग में बंटी जंग
चाय बागान प्लाटेंशन लेबर एक्ट, 1951 के तहत आते हैं। इस एक्ट के तहत बागान मालिक श्रमिकों के रहने, खाने-पीने और शिक्षा संबंधी जरूरतें पूरी करते हैं। इसीलिए यहां काम करने वाले मजदूरों को अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा नगद भुगतान कम किया जाता है।
इंडिया टी बोर्ड के अनुसार भारत में भी अभी हर साल 123 मिलियन किलो ग्राम (एक अरब किलो से ज्यादा) का उत्पादन हो रहा है। इसमें से ज्यादा योगदान असम का है जहां का सालाना उत्पादन 642 मिलियन किलो ग्राम से ज्यादा का है।
इसके बाद दूसरे नंबर पर है जहां 357 मिलियन किलो ग्राम से ज्यादा का उत्पादन हो रहा है।