MP Election 2018: ग्रामीणों के हाथ सत्ता की चाबी

चौंकाने वाले होंगे मध्य प्रदेश के नतीजे, मध्य प्रदेश की 72 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है

Update: 2018-11-27 06:30 GMT

भोपाल (मध्य प्रदेश)। कई कयासों और उम्मीदों के बीच सोमवार को मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार बंद हो गया। यहां 28 नवंबर को अपना मत देकर मतदाता एक नई गाथा लिखेंगे।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव कई मामलों में खास हैं, जहां भारतीय जनता पार्टी को अपना गढ़ बचाने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस के पास एक मौका है फिर से खोई हुई ज़मीन को वापस पाने का।

'गाँव कनेक्शन' की टीम ने मध्य प्रदेश के भिंड जिले से लेकर राजस्थान के सीमावर्ती जिले मंदसौर तक एक चुनावी यात्रा पूरी करके बीच में पड़ने वाले जिलों के शहरी और ग्रामीण लोगों से बात की। इस बार के विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से बिल्कुल अलग हैं। वोटर शांत है लेकिन एक तरह का गुस्सा जरूर दिखा।

नीमच के किसान अरविंद जेन सोनियाना कहते हैं "जो हमारा कर्ज माफ करेगा उसे वोट देंगे, हम भी उम्मीद में हैं। शिवराज ने पैसा दिया पर किसान खुश नहीं है। अभी बीमा का माफ किया लेकिन खुश नहीं है। किसान को लाइन में लगा दिया, सब ऑनलाइन है लेकिन किसान को लाइन में लगा दिया। मंडी में लाइन लगाना और पेमेंट के लिए चक्कर काटना किसान को झेला देता है।"

शिवराज सिंह चौहान के सामने इस बार कई चुनौतियां (फोटो- सुयश शादीजा, गांव कनेक्शन)

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश का 72 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है। सबसे अधिक आदिवासी जनसंख्या वाले राज्य मध्य प्रदेश के चुनावों में जाति का भी असर सबसे अधिक रहता है।

"इस बार के चुनाव में पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस ने मन से चुनाव लड़ा और ईमानदारी से टिकट बांटे। बीजेपी के दिग्गज उम्मीदवार प्रचार के लिए अपनी-अपनी सीटों पर ही सिमट के रह गए," इंदौर में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शुक्ला ने बताया, "जैसा पिछले चुनावों में हुआ कि कांग्रेस के छत्रपों के आपसी मनमुटाव और एक दूसरे की जड़ें खोदने जैसी स्थिति इस बार नहीं है। सभी बड़े कांग्रेसी नेता मिल के चुनाव लड़ रहे हैं।"

पिछले चुनावों में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता टिकट वितरण से लेकर अन्य मुद्दों पर लड़ते दिखे थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता एक मंच पर हैं। मध्य प्रदेश की सभी 231 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों को फंसा दिया। जबकि बीजेपी के लोगों को उम्मीद है कि सीटें भले पिछली बार से कम आएं लेकिन सरकार शिवराज सिंह चौहान की ही बनेगी।

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जहां शहरी मतदाता और व्यापारी वर्ग जीएसटी, नोटबंदी जैसे मुद्दों को दिल में रखे है तो वहीं ग्रामीण मतदाता के लिए अपनी उपज का सही मूल्य न मिलना बड़ा मुद्दा है।

"डीएपी आज 1400 की बोरी (50 किग्रा) मिल रही है, किसान कम खरीद रहा है। छुट्टा जानवरों से भी किसान परेशान हैं। इस सब का असर दिखेगा," भिंड में खाद और बीज की दुकानदार संजय मिश्र ने बताया। मध्य प्रदेश में किसान भावान्तर योजना और कई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य सही से लागू न होने से किसानों में नाराजगी है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश का 72 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है। सबसे अधिक आदिवासी जनसंख्या वाले राज्य मध्य प्रदेश के चुनावों में जाति का भी असर सबसे अधिक रहता है।

"शिवराज सिंह से लोग नहीं नाराज हैं, उनका गुस्सा सरकार से है, पिछली बार मोदी लहर में चुनाव जीते थे, तो इस बार भी जो गुस्सा केन्द्र सरकार से है, उसका दंश कहीं न कहीं तो झेलना ही होगा," वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शुक्ला बताते हैं।

प्रदेश में खेती-किसानी का मुद्दा पिछले दो वर्षों काफी छाया रहा है। मंदसौर में हुई गोली कांड के बाद किसानों का मुद्दा मध्य प्रदेश से निकलकर पूरे देश में पहुंच गया। सरकार ने डैमेज कंट्रोल के लिए भावांतर योजना लागू किया, लेकिन किसान इससे भी नाराज हैं। और तो और तो उत्तर प्रदेश की ही तरह मध्य प्रदेश के किसान भी छुट्टा पशुओं से परेशान हैं। इस बारे में जिला भिंड के प्रतापपुर के रहने वाले बहादुर सिंह कुशवाहा कहते हैं "गोवंश से किसान बहुत परेशान हैं, इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ सकता है।

"नोटबंदी और जीएसटी के बाद किसान को समय पर पेमेंट नहीं मिल पाता। उसे समय पर खाद बीज नहीं ले पाता। समस्याएं खड़ी हो रहीं हैं। किसान का पूरी तरह से बदलाव के मूड हैं। किसानों की मौत के बाद हमारी राजनीति बदली है। किसान के लिए कांग्रेस ने घोषणा पत्र में जगह दी है। कर्ज माफी का वादा कांग्रेस पूरी करेगी।" देवास जिले के किसान अशोक कुमार कहते हैं।

अशोक कुमार आगे कहते हैं "अगर कांग्रेस वादा पूरा नहीं करेगी तो आगे लोकसभा चुनाव में मुंह दिखाएंगे। किसानों का गुस्से का कारण नोटबंदी और जीएसटी था। कैश नहीं मिलता समय पर, उससे सभी लोग गुस्से में हैं। हम स्कूल की फीस नहीं देते। लेबर, स्कूल अधिकारी सब बोलते हैं किसान समय पर पैसे नहीं देता। पैसा कुछ कम मिले पर समय पर मिले तो किसान को दिक्कत नहीं होती। किसान कर्जा ही नहीं चुका पाता। युवा वर्ग ज़मीन पर उतर गया है।"

स्थिति को भांपते हए बीजेपी ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी दी है। मध्य प्रदेश के चुनावों में सबसे अधिक ग्रामीण मतदाताओं का ही असर रहता है। इसके प्यार और गुस्से का असर किसी भी पार्टी की सीटों पर साफ दिखता है। इस बार किसान गुस्से में दिख रहा है। "हम टमाटर की खेती करते हैं, लेकिन हमें भाव नहीं मिलता। हमें औसतन तीन से चार रुपये किलो टमाटर का भाव मिलता है। जब तक टमाटर का मूल्य 10 से 12 रूपये किलो नहीं मिलेगा खर्चा नहीं निकलेगा," शिवपुरी जिले में रहने वाले किसान प्रदीप यादव ने बताया, "भाव न मिलने से किसान गुस्से में है। हम भी गुस्से में हैं।"

गांव कनेक्शन टीम की चुनावी यात्रा ग्वालियर से ऐसी पहुंची भोपाल

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यह गुस्सा आज का नहीं वर्षों से किसानों के अंदर भर रहा है। छह जून, 2017 को सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस की फायरिंग से छह किसानों की मौत हो गई। प्रदर्शन कर रहे किसानों ने शहरों को भेजी जाने वाली सब्जियां और दूध की सप्लाई रोक दी थी।

किसानों के गुस्से की एक वजह और भी है राज्य में बढ़ते आवारा पशु। छुट्टा गायों की संख्या लगातार बढ़ने से किसान अपनी फसल नहीं बचा पा रहे। इसके लिए किसानों ने मांग की गाँव-गाँव गौसालाएं खुलवाने की मांग भी है। प्रदेश सरकार ने वादा भी किया था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

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"दोनों ही पार्टी की पूरा बहुमत होता नहीं दिखता। इस बार नया यह है कि वोट काटने वाले संगठन बहुत हो गए हैं, निवाड़-मालवा में आदिवासी संगठन जयेस, सपाक्स आदि। उत्तर प्रदेश के सटे इलाकों में सपा और बसपा का भी असर है। बसपा करीब तीन दर्जन सीटों पर कांग्रसे से भी आगे है।" मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इंडिया न्यूज की एक्जीक्यूटिव एडिटर दीप्ती चौरसिया ने बताया।


दीप्ती बताती हैं, "बीजेपी अगर सत्ता से बाहर जाती है तो उसे बड़ा झटका होगा, और अगर कांग्रेस वापसी नहीं कर पाती है तो उसका तो मध्य भारत में अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। इसलिए दोनों ही पार्टी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है, और मतदाता खामोश है।"

मध्य प्रदेश से ही बीजेपी और कांग्रेस को मजबूती मिली, दोनों का ही गढ़ माना जाता है। इस तरह से एक अपने अस्तित्व को बचाना चाहेगी तो दूसरी पार्टी उसे पाना चाहेगी। "ग्वालियर और चंबल में राजनीति जातिगत चीजों पर चलती है यही कारण है कि बसपा और सपा अपने पैर जमाते हुए जबरदस्त वोट कटवा बन रही हैं," दीप्ती कहती हैं, "मैंने अपने 20 साल के करियर में पहली बार देखा कि कांग्रेस के सभी नेता एक प्लेटफार्म पर आकर चुनाव लड़ रहे हैं।

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मध्य प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र में आगे उतना नहीं रहा, जो उद्योग थे भी वह धीरे-धीरे बंद होते चले गए। चाहे वो ग्वालियर का मालनपुर इंडस्ट्रियल क्षेत्र हो या फिर इंदौर की कताई मिलें। धीरे-धीरे इनके बंद होने के पीछे व्यापारी वर्ग सरकारों की नीतियों को ही जिम्मेदार मानता है। एक ओर इन औद्योगिक कारखानों को बंद होने का दर्द है तो उसे जीएसटी और नोटबंदी भी याद है।

मध्य प्रदेश चैंबर ऑफ कामर्स के सचिव प्रवीन कुमार ने बताया, "पुरानी सरकारों की गलत नीतियों और लालफीताशाही ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। जीएसटी और नोटबंदी ने व्यापारी वर्ग का काफी नुकसान किया।"

इन सभी समीकरणों को देखें तो इस बार के मध्य प्रदेश के चुनाव परिणामों पर ग्रामीण् जनता का मूड ज्यादा असरदार होगा। परिणाम जो भी हों लेकिन इस बार के चुनाव में दोनों पार्टिंयों में कांटे की टक्कर है।

(मध्य प्रदेश में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जो विकास की मूलभूत सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं। श्योपुर जिले की यह वीडियो स्टोरी भी यही कहानी बयां कर रही है )

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देश में एक ओर तो बुलेट ट्रेन की बात हो रही है तो वहीं दूसरी ओर श्योपुर और ग्वालियर के बीच चलने वाली इस ट्रेन की अधिकतम स्पीड ही २० किमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पास साधन का कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।

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